जमात-उल-विदा क्यों मनाया जाता : इस पर्व को पूरे विश्व भर के मुस्लिमों द्वारा काफी धूम-धाम तथा उत्साह के साथ मनाया जाता है.
जमात उल विदा एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब है कि जुमे की विदाई. इस पर्व को पूरे विश्व भर के मुस्लिमों द्वारा काफी धूम-धाम तथा उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह पर्व रमजान के अंतिम शुक्रवार यानी जुमे के दिन मनाया जाता है. वैसे तो पूरे रमजान के महीने को काफी पवित्र माना जाता है लेकिन जमातुल विदा के इस मौके पर रखे जाने वाले इस रोजे का अपना ही महत्व है.

जमात-उल-विदा : रमजान के महीने की मुस्लिम समुदाय में एक अलग ही अहमियत है। इस महीने का सबसे खास दिन होता है वह है अलविदा जुमा। इस दिन का रोजेदारों का बहुत उत्साह से इंतजार होता है वहीं यह जुमा एक उदासी भी लिए आता है कि अब बरकतों और रहमतों वाला महीना जाने को तैयार है। इस दिन मुस्लिम पुरुष विशेष तौर से अपने शहर की जामा मस्जिद या शहर की बड़ी मस्जिदों में जाकर जुमे की नमाज अदा करते हैं। हालांकि अगर जामा मस्जिद दूर होती है या और कोई परेशानी होती है तो वह अपने घर की पास की मस्जिद में भी इसे पढ़ सकते हैं। खैर इस रमजान की बात करें तो इस बार 5 अप्रैल को जुमातुल विदा की धूम रहेगी। अक्सर ही लोग इस दिन ईद की तरह ही नए कपड़े पहनकर नमाज अदा करते हैं। इस दिन खास आपको मस्जिदों में और उसके बाहर नमाजियों का हुजुम नजर आता है।
जमात-उल-विदा क्यों मनाया जाता
इस पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन पैगम्बर मोहम्मद साहब ने अल्लाह की विशेष इबादत की थी. यही कारण है कि इस शुक्रवार को बाकी के जुमे के दिनों से ज्यादा महत्वपूर्ण बताया गया है. ऐसा माना जाता है कि जमात-उल-विदा के दिन जो लोग नमाज पढ़कर अल्लाह की इबादत करेंगे और अपना पूरा दिन मस्जिद में बितायेगें. उसे अल्लाह की विशेष रहमत और बरकत प्राप्त होगी.
जमात-उल-विदाल का महत्व
वैसे तो पूरे साल भर जुमे (शुक्रवार) की नमाज को खास माना जाता है पर रमजान का आखिरी जुमा जमात-उल-विदा के नाम से भी जाना जाता है, उसका अपना अलग ही महत्व है. ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति जमात-उल-विदा के दिन सच्चे दिल से नमाज पढ़ता है और अल्लाह से अपने पिछले गुनाहों के लिए माफी मांगता है, उसकी दुआ जरूर पूरी होती है. इसीलिए जमात उल विदा को इबादत के दिन के रूप में भी जाना जाता है.
जोहर के वक्त की है रौनक
जुमातुल विदा में जुमे की नमाज की एक अलग ही अहमियत है। इस दिन नमाज से पहले जो खुत्बा पढ़ा जाता है उसमें रमजान की फजीलत बताई जाती है। यह खुत्बा मस्जिदों के पेश इमाम पढ़ते हैं। इस दौरान रमजान में फितरा, जकात देने के बारे में जानकारी दी जाती है। जैसा कि आप सभी को विदत है कि मुस्लिम धर्म में जकात देना और ईद की नमाज से पहले फितरा देना तय होता है। फितरे में आपको कम से कम किसी गरीब को ढाई किलो अनाज या उसकी कीमत देनी होती है। इसके बाद दुआ की जाती है। इसमें जिस भी वतन में आप रहते हैं उसमें अमन और शांति की दुआ मांगी जाती है।
देश के मौजूदा हालातों पर भी प्रकाश डाला जाता है। माना गया है कि इस दिन ईबादत करने की अपनी एक अलग अहमियत है। जो भी इंसान इस दिन अपना वक्त नमाज हुए दीन को देता है उस पर अल्लाह मेहरबान होता है। इस दिन को मनाने के लिए मस्जिदों में खास तैयारियां की जाती हैं।
निकल आते हैं आंसू
यह जीवन का चक्र है यहां पर आना और जाना तय है। माहे रमजान का जिस तरह से इंतजार होता है वैसा ही जब यह जाने को तैयार होता है तो बुरा लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि लोग एक रुटीन को फॉलो करते हैं। जुमातुल विदा रमजान की रुखसत का संदेश भी अपने साथ लाता है। यही वजह है कि जुमे के दिन नमाज के बाद अक्सर हर आंख नम होती है। इस्लाम धर्म में माना जाता है कि खुशनसीब होता है वह इंसान जिसे रमजान नसीब होता है। बहुत लोग इस बात को भी सोचकर उदास होते हैं कि न जाने उन्हें अगला रमजान मिलेगा या नहीं।
महिलाएं भी करती हैं खास इबादत
ऐसा नहीं है कि मस्जिदों में ही पुरुष जुमातुल विदा को सेलिब्रेट करते हैं। इस दिन घर में भी कुछ खास उत्सवी और धार्मिक माहौल रहता है। जुमे की नमाज के साथ कुछ खास नमाजें अक्सर लोग पढ़ते हैं। खासतौर से नफिल पढ़े जाते हैं। अक्सर मुस्लिम महिलाएं इस दिन सलातुल तस्बीह की नमाज पढ़ती हैं। चूंकि रमजान तीन अशरों में बंटा है। हर अशरा दस दिन का होता है। इसका आखिरी अशरा मगफिरत का है। ऐसे में लोग नमाजों में अपनी गलतियों की माफी मांगते हैं। अपने लिए और अपने अपनों की खैर और मगफिरत की दुआ करते हैं। इस दिन के गुजरने के बाद लोग ईद की तैयारियों की शुरुआत कर देते हैं।