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हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए संविधान संशोधन किया जाए, देश में भाषाओं के आधार पर राजनीति और भेदभाव नहीं होना चाहिए- के के गुप्ता


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हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए संविधान संशोधन किया जाए, देश में भाषाओं के आधार पर राजनीति और भेदभाव नहीं होना चाहिए- के के गुप्ता

भाषाओं के आधार पर राजनीति करना न केवल व्यक्ति के मौलिक अधिकारों एवं मानवाधिकारों का हनन है वरन् राजभाषा हिन्दी का भी अपमान है - के के गुप्ता

विश्व वैश्य महासम्मेलन के राजस्थान में कार्यवाहक अध्यक्ष,पश्चिम क्षेत्र अग्रवाल सम्मेलन राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष और स्वच्छ भारत मिशन अभियान (ग्रामीण)के कॉर्डिनेटर तथा डूंगरपुर नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष के के गुप्ता ने केन्द्र सरकार से विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा बनाने के लिए संविधान में संशोधन करने का आग्रह किया है। साथ ही कहा है कि सभी क्षेत्रीय भाषाएं थर्ड लैंग्वेज के रूप में राज्यों में पढ़ाई जानी चाहिए।

गुप्ता ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि यह बहुत ही दुःखद और वेदना पूर्ण है कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर एक ग्रूप विशेष द्वारा चलाई सौची समझी राजनीति और विद्वेष पूर्ण ढंग से एक मुहिम चला कर राजभाषा हिन्दी और अन्य भाषाओं को बोलने वाले लोगों को अनैतिक धमकियाँ दी जा रहीं है।उन्होंने इस मुहिम की आलोचना करते हुए कहा कि देश में भाषाओं के आधार पर किसी भी प्रकार की राजनीति और भेदभाव नहीं होना चाहिए तथा केन्द्र सरकार को इसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

उन्होंने हिन्दी भाषा को लेकर महाराष्ट्र और देश के दक्षिणी और अन्य राज्यों में पूर्वाग्रहों से ग्रसित राजनीति की भर्त्सना करते हुए कहा कि देश का संविधान राजभाषा हिन्दी और हर मान्यता प्राप्त भाषा तथा अन्य सभी क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करता है लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि किसी अन्य प्रदेश का व्यक्ति राज्य विशेष में जाकर हिन्दी अथवा अन्य भाषा नहीं बोल सकता । यह सरासर गलत है कि भारत के ही नागरिक को अपने ही देश में किसी अन्य प्रदेश में जाने पर वहाँ की क्षेत्रीय भाषा में ही बोलने को बाध्य होना पड़े अन्यथा उसे वहाँ रहने और काम करने की इजाज़त नहीं दी जाए। ऐसा करना न केवल व्यक्ति के मौलिक अधिकारों एवंमानवाधिकारों का हनन है वरन् राजभाषा हिन्दी का भी अपमान है।जब भाषा के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव किया जाता है जैसे नौकरियों के अवसरों में, सरकारी सेवाओं में या राजनीतिक भागीदारी से उससे वंचित किया जाता है,तो वह भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिकअधिकारों और व्यापक मानवाधिकार मानकों का उल्लंघन ही है।

भारत में संविधान के अनुच्छेद 29(2) में भाषा के आधार पर संस्थानों में प्रवेश में भेदभाव पर रोक है।अनुच्छेद 19(1)(ए) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें अपनी भाषा में बोलने–लिखने की स्वतंत्रता भी शामिल है। विश्व मानवाधिकार घोषणा का अनुच्छेद 2 हर व्यक्ति को बिना किसी तरह के भेदभाव के अधिकारों का उपभोग करने की गारंटी देता है, जिसमें भाषा के आधार पर भेदभाव भी शामिल है।हालाँकि भारत की नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा के अधिकार की गारंटी दी गई है लेकिन हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा बनाने से क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के मार्ग में कोई बाधा आएगी ऐसी शंका करना भी उचित नहीं है।

गुप्ता ने कहा कि भारत में वर्तमान में कोई “राष्ट्र भाषा” नहीं है। आधिकारिक रूप से हिन्दी और अंग्रेज़ी राजभाषाएं है। हालांकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार राज्यों को अपनी भाषाएं चुनने का अधिकार है लेकिन राष्ट्रीय एकता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए संविधान में संशोधन कर हिन्दी को भारत की राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाना चाहिए। वर्तमान समय में भाषाई विवादों को देखते हुए यह इस वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता है ।जिसे स्वयं केन्द्र सरकार को आगे आकर पूरा करना चाहिए। विश्व में लगभग सभी देशों की अपनी राष्ट्रीय भाषा है । हिन्दी को भारत की राष्ट्र भाषा बनाने से आए दिन संविधान की आठवीं अनुसूची में नई भाषाओं को जोड़ने की मांग भी नहीं होगी और पूरे देश में राजभाषा हिन्दी को अपना राष्ट्रीय गौरव हासिल होगा।

हिन्दी को भारत की राष्ट्र भाषा बनाने से राष्ट्रीय एकता सुदृढ़ और हिन्दी माध्यम से संवाद में देश के सभी नागरिकों को सुविधा होगी। साथ ही प्रशासन और न्याय व्यवस्था में एक जैसी भाषा को भी बढ़ावा मिलेगा।

गुप्ता ने माँग की कि संविधान में एक नया अनुच्छेद 350 सी जोड़ा जाए जिसके अन्तर्गत शिक्षा में तीन-भाषा सूत्र केंद्र और राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करेंगी कि स्कूली शिक्षा में राष्ट्र भाषा, अंग्रेज़ी और क्षेत्रीय भाषा का अध्ययन कराया जाए। साथ ही राज्यों में क्षेत्रीय भाषाएं तृतीय भाषा के रूप में अनिवार्य हों ।

कुल मिला कर राष्ट्र का उद्देश्य राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी को संवैधानिक मान्यता देना होना चाहिए ।साथ ही सभी भाषाओं का सम्मान और विकास सुनिश्चित करना होना चाहिए ।

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में शिक्षा समवर्ती सूची में है यानी केंद्र और राज्य दोनों नीतियां बना सकते हैं। लेकिन राज्यों को अपनी भाषा को प्राथमिकता देने का संवैधानिक अधिकार भी है।हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए दो तिहाई बहुमत से संविधान संशोधन करना होगा जोकि तकनीकी रूप से संभव है लेकिन राजनीतिक और सामाजिक रूप से यह अत्यंत संवेदनशील है लेकिन हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा बनाने एवं राष्ट्रव्यापी संवाद की भाषा बनाने के लिए भारत सरकार को कठोर निर्णय करना होगा ।

गुप्ता ने कहा कि भारत सरकार हिन्दी को प्रोत्साहन देने के हर संभव प्रयास कर रही है। हर वर्ष हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उपनिवेशवाद परंपरा के विरुद्ध है तथा 2014 से उनके शासन में आने से ही उन्होंने हर काम हिन्दी में करने की शुरुआत कराई है। वे स्वयं अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी हिन्दी में ही भाषण देते है।

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