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जमीन का जेवर, जूनागढ़ दुर्ग बीकानेर


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जमीन का जेवर, जूनागढ़ दुर्ग बीकानेर

जमीन का जेवर, जूनागढ़ दुर्ग बीकानेर

संकलनकर्ता : किशोर सिंह चौहान, वरिष्ठ अध्यापक शिक्षा विभाग राजस्थान सरकार, विशेषज्ञ राजस्थान कला और संस्कृति

जमीन का जेवर, जूनागढ़ दुर्ग बीकानेर, यह दुर्ग धान्वन दुर्ग, भूमि दुर्ग व पारिख दुर्ग की श्रेणी में आता है। बीकानेर के संस्थापक राव बीका ने 1485 ई. में यहीं पर एक गढ़ बनवाया जिसे बीकाजी की टेकरी (बीकानेर का पुराना गढ़) कहा जाता है। बीकानेर गढ़ की स्थापना राव बीका ने प्रसिद्ध सवणियों (शकुनियों) नापा और नरा की सलाह से 1488 ई में आखातीज (वैशाख शुक्ल तृतीया)की थी।

बाद में उसी जगह जूनागढ़ की नींव 16वीं सदी में महाराजा रायसिंह द्वारा 1588 ई. (विक्रम संवत् 1645 की फाल्गुन शुक्ला-12) में रखी गई जो 1594 ई. में बनकर तैयार हुआ। यह दुर्ग राती घाटी नामक चट्टान पर निर्मित हैं अतः इस दुर्ग को राती घाटी का किला भी कहते हैं।

दयालदास री ख्यात के अनुसार नये गढ़ की नीव मौजूदा पुराने गढ़ के स्थान पर ही भरी गयी थी, अत इसी कारण इसे “जूनागढ़” कहा गया।

जूनागढ़ का शाब्दिक अर्थ है ‘पुराना दुर्ग।
इस दुर्ग को जमीन का जेवर” भी कहा जाता है। इस दुर्ग की आकृति चतुष्कोण या चतुर्भुजाकार है। यह राजस्थान का पहला दुर्ग है जिसमें लिफ्ट लगाई गई।

इस दुर्ग के बारे में प्रोफेसर दीनानाथ दुबे का कथन “सुना है कि दीवारों के भी कान होते हैं पर जूनागढ़ के महलों की दीवारें तो बोलती है।”

दुर्ग की प्राचीर एवं अधिकतर निर्माण कार्य लाल पत्थरों से हुआ है. अत इसे लालगढ़ भी कहा जाता है। जूनागढ़ के निर्माण में हिन्दू-मुस्लिम कला शैलियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।

इस दुर्ग की प्राचीर में 37 विशाल बुर्जे स्थित है। दुर्ग के चारों ओर 20 से 25 फीट गहरी तथा चौड़ी खाई है। किले में प्रवेश हेतु दो प्रमुख प्रवेश द्वार है- पूर्वी प्रवेशद्वार को “कर्णपोल” तथा पश्चिमी प्रवेश द्वार को “चौंदपोल” कहा जाता है। इन दो मुख्य द्वारों के अतिरिक्त पांचआ आंतरिक द्वार भी है- दौलतपोल, फतेहपोल, रतनपोल, सूरजपोल एवं ध्रुवपोल।

सूरजपोल इस दुर्ग का सबसे प्राचीन एवं मुख्य प्रवेश द्वार है। पीले पत्थरों से निर्मित सूरजपोल पर रायसिंह प्रशस्ति उत्कीर्ण है जिसके रचयिता जैनमुनि जैइयता थे। सूरजपोल के दोनों तरफ 1507 ई के चित्तौड़ के तीसरे साके में वीरगति पाने वाले जयमल मेड़तिया व आमेट के रावत पता सिसोदिया की गजारूढ़ प्रतिमाएँ स्थापित हैं। फासिसी यात्री बर्नियर ने अपनी पुस्तक “दी ट्रेवल्स इन दी मुगल एम्पायर” में इन प्रतिमाओं एवं औरंगजेब द्वारा तोड़े जाने का उल्लेख है।

इस दुर्ग के प्रमुख ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल फूल महल व चंद्रमहल (रायसिंह द्वारा निर्मित), दलेल निवास महल (महाराजा गंगासिंह द्वारा निर्मित), रायसिंह का बौबारा, गजमन्दिर महल, रतननिवास महल, अनूपमहल, छत्रमहल, लाल निवास महल, सरदार निवास महल, गंगा निवास महल, मोतीमहल, रंगमहल, कर्णमहल, चीनीबुर्ज सुनहरी बुर्ज आतिश (अश्वशाला), सूरतखाना (उष्ट्रशाला), सुजानमहल, फीलखाना, रामसर व रानीसर नामक दो कुएँ (जलाशय) डूंगरनिवास, घंटाघर (महाराजा दूँगरसिंह द्वारा निर्मित), इत्यादि।

अनूप महल का निर्माण महाराजा अनूपसिंह ने करवाया। इस महल में सोने की कलम से काम किया हुआ है। इस महल में बीकानेर के राजाओं का राजतिलक होता था। इसमें रखा हिंडोला कला की दृष्टि से उत्कृष्ट हैं।

इस दुर्ग में ‘तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का मन्दिर है. जिसमें दुर्लभ हेरम्ब गणपति की प्रतिमा है, जी मूषक पर सवार न होकर सिंह पर सवार हैं।

यहाँ स्थित हरमन्दिर में राजकीय विवाह गणगौर तथा अन्य उत्सवों का आयोजन किया जाता था। इस दुर्ग की प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र पगड़ियाँ, देवमूर्तियों, फारसी व संस्कृत में लिखित हस्तलिखित ग्रंथों का भंडार (संग्रहालय) हैं। यहाँ स्थित संग्रहालय में 1000 वर्ष पुरानी सरस्वती की प्रतिमा दर्शनीय है।

संकलनकर्ता : किशोर सिंह चौहान, वरिष्ठ अध्यापक शिक्षा विभाग राजस्थान सरकार, विशेषज्ञ राजस्थान कला और संस्कृति

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