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बाबा रामेश्वर दास के आश्रम में नहीं चढ़ाई जाती नगद राशि


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आर्टिकलधर्म/ज्योतिष

बाबा रामेश्वर दास के आश्रम में नहीं चढ़ाई जाती नगद राशि

बाबा रामेश्वर दास के आश्रम में नहीं चढ़ाई जाती नगद राशि

हरियाणा और राजस्थान की सीमा पर टीबा बसई गांव के दक्षिण दिशा में हरियाणा राज्य के बामनवास गांव के नजदीक नदी किनारे बाबा रामेश्वर दास का एक भव्य आश्रम बना हुआ है। इस भव्य आश्रम में सभी हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां, रामायण और गीता के श्लोक से सुसज्जित कक्षों का निर्माण करवाया हुआ है। रामायण और महाभारत के दृश्य का चित्रांकन आने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस आश्रम में वास्तुकला , मूर्तिकला और चित्रकला की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। कारीगरों की हथौड़ी और छेनी , चित्रकार की कुची ने आश्रम की शोभा में चार चांद लगा दिये है। आने वाले दर्शक जब इन सब चीजों को देखते हैं तब उनका मन और आंखें उन दृश्यों को देखने से हटती ही नहीं है। आश्रम के पास लगे पेड़ पौधों पर बसेरा करने वाले मोर , पपिहा, कोयल और विभिन्न प्रकार की चिड़िया की आवाजों से यह शांत आश्रम और चहकता हुआ नजर आता है।

संत रामेश्वर दास जी महाराज का जन्म नांगल चौधरी के पास स्थित सिरोही बहाली गांव में विक्रम संवत 1970 मैं ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम मुरलीधर झिरमरीया था। जब यह 5-6 साल के थे उसी समय विक्रम संवत 1974 में प्लेग़ की महामारी आई उसमें इनका सारा परिवार नष्ट हो गया। बताया जाता है कि इस प्लेग की बीमारी में गांव के गांव खाली हो गए थे। इनके परिवार में एक मात्र इनकी चाची और यही जीवित बचे थे। बालक रामेश्वर अनाथ हो गए थे। इस संकट की बेला में इन्हें जो भी भोजन कराता, उसी के यहां कर लेते थे और गांव में घूमते रहते थे।

इस बात की जानकारी जब इनके पिता के मित्र को चली तो वह उनकी चाची से पूछ कर बालक रामेश्वर को अपने साथ नरनोल ले आए और एक ब्राह्मण के घर में उसे रख दिया। यह ब्राह्मण सेठ मोतीलाल की धर्मशाला में पानी पिलाया करता था । एक रोज वह पंडित अपने साथ बालक रामेश्वर को भोजन कराने के लिए सेठ मोतीलाल के घर लेकर गया । सेठ को उस बालक के विषय में जब यह जानकारी मिली तो उसने भाव विभोर होकर इस शिशु को अपने पास छोड़ देने के लिए कहा और पंडित जी को इसे पढ़ाने का वचन दिया। वह ब्राह्मण सेठ मोतीलाल की प्याऊ पर पानी पिलाने का कार्य किया करता था। सेठ ने अपने वचन के अनुसार बालक रामेश्वर को नारनौल में संस्कृत भाषा में प्रथमा तक का अध्ययन करवाया। बालक रामेश्वर का 10 वर्ष तक अच्छा समय व्यतीत हुआ, किंतु सेठ की मृत्यु के बाद रामेश्वर का मन नारनौल नहीं लगा और यह अपने किसी साथी के साथ कोलकाता चले गए। वहां जाकर यह ब्राह्मणवाटी में रहने लगे। इन्होंने यहां पूजा पाठ, कथा वाचन का कार्य शुरू कर दिया। इससे उनके पास में अच्छी रकम जमा हो गई। जमा रकम को इन्होंने न्यौली में भरकर कमर के बांध लिया।

एक दिन रामेश्वर गंगा जी स्नान करने गए तो इन्होंने वह न्यौली अपने कपड़ों के नीचे रख दी और संध्या वंदन करने लग गए। इसके पश्चात इन्होंने जब कपड़े पहने तो वह न्यौली गायब मिली । इस घटना का उनके जीवन पर इतना असर पड़ा कि इन्होंने जीवन पर्यंत पैसे के हाथ ही नहीं लगाया। इसके बाद यह अपने गांव आ गए। इनको वापस आया देख उनकी चाची ने इनसे कहा कि कुल वंश चलाने के लिए अब मैं तुम्हारा विवाह करूंगी। इस पर इन्होंने विनम्रता पूर्वक अपनी चाची को मना कर दिया और यह संत की खोज करने के लिए नारनौल आकर ढोसी के संत नंद ब्रह्मचारी जी के शिष्य बन गए। नंद ब्रह्मचारी जी कर्मकांडी ब्राह्मण थे। वह अपने साथ रामेश्वर दास को भी ले जाने लगे। इससे इन्हें जो दक्षिणा  मिलती थी वह दक्षिणा  यह गुरु जी को ही सौंप देते थे। ब्रह्मचारी जी महाराज के पास अकूत संपत्ति थी। जिसे वह गड्ढा खोदकर दबा देते थे। इस बात की भनक कुछ लुटेरों को लग गई तो वह उसे प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचारी जी के पास आए और उन्हें बुरी तरह से मारपीट कर वह सारा धन लेकर चले गए। इस घटना को रामेश्वर दास जी ने अपनी आंखों से देखा था तब उनके मन में पैसे से और ज्यादा विरक्ति हो गई और इन्होंने कभी भी पैसे को हाथ नहीं लगाने का संकल्प ले लिया। ब्रह्मचारी जी की मृत्यु के उपरांत इन्होंने बीघोपुर मैं अपना आश्रम बनाया किंतु इनका मन यहां नहीं लगा और यह अन्य जगह आश्रम बनाने की खोज में कई स्थानों का भ्रमण करने में जुट गए। इन्होंने सुनारी,खोह मनक सास, पपुरना आदि गांव का भ्रमण करने के बाद विक्रम संवत 2014 में आपने टीबा वसई से डेढ़ किलोमीटर दक्षिण दिशा के जंगल में नदी किनारे अपना आश्रम स्थापित किया।

आपके वर्ष 1984 में ब्रह्मलीन होने तक आप ही इस आश्रम की देखरेख करते रहे । इनके चमत्कारों की अनेक लोग चर्चा करते हुए आपको आश्रम परिसर में देखने को मिल जाएंगे। बताया जाता है कि वर्षा ऋतु कल में भयंकर बिजली की गर्जना और नदी में तेज ऊफान आया हुआ था । तब इन्होंने अपने पास उपस्थित लोगों से कहा कि तुम जाकर नदी में से मोदी को निकाल कर लाओ। नदी में जाकर देखा तो पाया कि नीमकाथाना के मोहनलाल मोदी आए थे। इस बात की जानकारी जब मोदी जी को हुई तो वह आश्चर्यचकित रह गए। वह बाबा जी से यह जानने के लिए आए थे कि उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं, क्योंकि उस साल कांग्रेस ने मोदी की टिकट काटकर मदद दीवान को दे दी थी। जिसकी जानकारी वह संत को देने आए थे और मार्गदर्शन चाहा था। इस पर बाबा ने कहा की टिकट नहीं मिली तो कोई बात नहीं तुम तो गाड़ी में चढ़ जाओ बिना टिकट ही। इसके बाद मोदी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और वे विजई हुए। इसी तरह के अनेक किस्से आपको आश्रम में आने वाले भक्तों से सुनने को मिलते हैं।

आज इस आश्रम की चर्चा सुदूर वृत्ति राज्यों में भी होती है। आश्रम को देखने के लिए प्रतिदिन लोगों का ताता लगा रहता है। बाबा रामेश्वर दास जी को अन्नपूर्णा की सिद्धि थी। यह वैष्णव संप्रदाय के संत माने जाते हैं। आश्रम परिसर में मुख्य द्वार के सामने दक्षिणी दिशा में देखते हुए हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा, नंदी महाराज की मूर्ति, अन्नपूर्णा की मूर्ति, दुर्गा की मूर्ति, गणेश जी की मूर्ति, राम दरबार, राधा कृष्ण की लीलाओं से सुसज्जित तथा अन्य अनेक देवी देवताओं के मंडप , करनी भरनी के दृश्य, लालच बुरी बला जैसे अनेक दृश्य इस विशाल आश्रम की ऐतिहासिक धरोहर हैं। आश्रम के पास ही गौशाला का सफल संचालन भी अब बाबा रामेश्वर दास ट्रस्ट के सौजन्य से सफलतापूर्वक संचालित हो रहा है। संत रामेश्वर दास के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उनकी भी मूर्ति आश्रम में स्थापित करवा दी गई है। आश्रम में आने वाले हर भक्त के लिए प्रसाद और जल का माकूल प्रबंध है। देश का यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर नगद राशि नहीं चढ़ाई जाती। चढ़ावे में सिर्फ प्रसाद ही चढ़ाया जाता है। इस विशाल आश्रम का निर्माण कार्य ट्रस्ट द्वारा करवाया गया है। श्रद्धालु भक्त जो भी सहयोग राशि देते हैं वह ट्रस्ट मैं जाम की जाती है। आश्रम में अन्नकूट, शरद पूर्णिमा, संत समाधि के अवसर पर तथा प्रत्येक एकादशी पर भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

हरियाणा और राजस्थान सरकार दोनों मिलकर इस भव्य ऐतिहासिक आश्रम को पर्यटन की दृष्टि से बढ़ावा देने के लिए प्रयास करें तो दक्षिणी भारत की तर्ज पर यह एक ठोस कदम हो सकता है। इससे इन दोनों ही राज्यों के विकास में नई इबारत लिखी जा सकती है। एक बार झुंझुनू जिला कलेक्टर ने जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए टीबा बसई, पिलानी , झुंझुनू का रानी सती मंदिर, सालासर मंदिर, जीण माता और खाटू श्याम जी के मंदिरों को जोड़ने के लिए एक ड्राफ्ट तैयार किया था, किंतु वह ठंडे बस्ते में चला गया। दोनों ही राज्यों के सीमावर्ती जिलों के कलेक्टरों को आपसी समन्वय बना कर इस दिशा में एक अच्छी पहल करनी चाहिए। यह दोनों ही राज्य सरकारों के हित में एक अच्छा कदम होगा। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं इतिहासकार है) संपादक

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