[pj-news-ticker post_cat="breaking-news"]

श्रावण मास में सैर करें कुंडा धाम बबाई की, पिकनिक स्पॉट : बबाई का गलता कुंडा धाम


निष्पक्ष निर्भीक निरंतर
  • Download App from
  • google-playstore
  • apple-playstore
  • jm-qr-code
X
धर्म/ज्योतिष

श्रावण मास में सैर करें कुंडा धाम बबाई की, पिकनिक स्पॉट : बबाई का गलता कुंडा धाम

श्रावण मास में सैर करें कुंडा धाम बबाई की, पिकनिक स्पॉट : बबाई का गलता कुंडा धाम

राजस्थान प्रांत के झुंझुनू जिला अंतर्गत बबाई उप तहसील क्षेत्र में स्थित मंदिर बिहारी जी कुंडा धाम श्रावण मास के महीने में हरियाली की खूबसूरती से लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है । मंदिर के पास बना शिवलिंग का मंदिर और कुंड लोगों की भक्ति और शक्ति तथा श्रद्धा का प्रमुख आस्था स्थल है। श्रावण मास के पवित्र महीने में आने वाले सभी सोमवार को भक्तों का सैलाब देखने को मिलता है।

बबाई के उत्तर पश्चिम की ओर लगभग 5 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमाला की उपत्यका के मध्य एक प्राचीन मंदिर बिहारी जी महाराज का बना हुआ है । मंदिर के चारों ओर एक मजबूत पत्थरों की दीवार चिनाई की बनी हुई है। इस दीवार को देखने से पता चलता है कि यह मंदिर अति प्राचीन है। पहाड़ की गोद में स्थित इस मंदिर के पास ही शिवालय बना हुआ है। शिवालय और मंदिर बिहारी जी में जाने के लिए बनी सीढ़ियों के पास ही एक अति प्राचीन कुंड बना हुआ है। यह कुंड कुए के आकार का है। इसमें पानी लाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई । कुंड में पानी पहाड़ी में से ही आता है। वर्षा ऋतु में यहां जल का नृत्य देखने लायक है।

12 महीने इस स्थान से पानी कल कल की आवाज करता हुआ आगे बढ़ता है आगे बहता है, फिर पानी पत्थरों में आगे चला जाता है। श्रावण मास में इस दृश्य को देखने के लिए श्रद्धालु भक्तों, दर्शकों और कावड़ियों का प्रतिदिन मेला भरा रहता है। पानी के इसी महत्व के कारण आमजन इस जगह को मंदिर के नाम के बजाय कुंडा धाम के नाम से पुकारते हैं। यह स्थान धार्मिक पुरा संपदा का एक महत्वपूर्ण स्थल है । बताया जाता है कि इस स्थान पर अनेक तपस्वियों ने वर्षों तक घोर तपस्या की थी। रात्रि समय में जब देवता विचरण करते हैं तब इसी पहाड़ी क्षेत्र पर से वे चक्कर लगाते हैं। इससे इस स्थान का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

इस पर्वतीय क्षेत्र में पानी की सरलता से उपलब्धता के कारण यहां की अपनी कुछ विशेषताएं हैं। यहां चारों ओर घना जंगल है। जिसमें नाना प्रकार की आयुर्वेदिक और वन औषधियां प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं। जिन में चिरमी, खेजडी, धो , खैरी, बेर , खरीदी बाबची , पलास, साल आदि वृक्षों की अधिकता है। गत वर्ष वन विभाग ने बिना तैयारी के लगभग 200 छायादार , फलदार और फूलदार पौधे लगाए, लेकिन लगाए गए इन पेड़ों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कार्यवाही नहीं की। कुछ ग्राम वासियों ने पेड़ों की सुरक्षा के लिए लोहे के ट्री गार्ड बनवाकर मंदिर की देखरेख करने वाले कार्यकर्ताओं को दिया। जिससे 25 _ 30 पौधे जीवित रह पाए। कार्यकर्ता वन विभाग से लगातार संपर्क कर इस क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण करवाने के इच्छुक हैं, किंतु वनi विभाग के अधिकारियों की अकर्मण्यता और उदासीनता के चलते इस क्षेत्र में कोई ठोस कार्यवाही अब तक नहीं की गई है। इसका क्षेत्र के लोगों को मलाल है।

बताया जाता है कि इस वन क्षेत्र के 51 हेक्टर क्षेत्रफल में संघन वृक्षारोपण, वन्यजीवों के लिए पानी के वाटर होल बनाए जाने हैं , किंतु अभी तक कोई कार्यवाही नहीं होने से क्षेत्र के लोगों में आक्रोश है। इस वन क्षेत्र में पहले नाना प्रकार की वन औषधियां पाई जाती थी। जिनमें खैरी का गोंद, डांसर, गंगेड़े, खीरखप, खडुला, कैर, थोर खरीदी , बाबची आदि पर्याप्त मात्रा में पाए जाते थे। इस स्थान पर अनादि काल में अनेक साधु संतों और महात्माओं ने पहाड़ की चोटियों पर घोर तपस्या की थी। जिसका प्रमाण आज भी मिलता है। कई साधु संतों के धुनों में आज भी चिमटे गड़े हुए देखने को मिलते हैं। सामरिक दृष्टि से भी यह स्थान प्रमुख है। पाकिस्तान की ओर भारत की पश्चिम दिशा में यह सबसे ऊंची चोटी है। इस क्षेत्र में अनेक प्रकार के वन्य जीव नीलगाय, गीदड़, सेइं, सांडा , तथा विभिन्न प्रकार की चिड़िया कबूतर और बंदर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। पक्षियों और बंदरों के लिए यहां आने वाले भक्त केले, रोटियां और अनाज डालते रहते हैं। श्रावण मास में यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है किआने वाले समय में यह स्थान सैलानियों और पर्यटकों के आकर्षण और एक अच्छे पिकनिक स्पॉट का का प्रमुख स्थान होगा। गोविन्द राम हरितवाल_(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं इतिहासकार है)

Related Articles