विश्व डाक दिवस पर विशेष : भारत में 100 वर्ष तक रहा ब्राह्मणी डाक सेवा का दबदबा
विश्व डाक दिवस पर विशेष : भारत में 100 वर्ष तक रहा ब्राह्मणी डाक सेवा का दबदबा

विश्व डाक दिवस पर विशेष : संयुक्त राष्ट्र महासंघ ने वर् 1969 में विश्व डाक दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी। तब से यह डाक दिवस संपूर्ण विश्व में प्रतिवर्ष 9 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह डाक दिवस स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की स्थापना की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। भारत में 9 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक प्रतिवर्ष डाक सप्ताह का आयोजन किया जाता है। भारत में लॉर्ड क्लाइव ने वर्ष 1766 में डाकघर की स्थापना की थी। स्थापना के 8 साल बाद भारत में पहला डाकघर वारेन हेस्टिंग्स ने 1774 में कोलकाता में खोला था। इससे पूर्व भारत में डाक का कार्य विशेष संदेश वाहक करते थे। भारत में सुनाई जाने वाली कहानियों में अनेक जगहों पर डाक ले जाने का कार्य कबूतर भी करते थे, यह पढ़ने को मिलता है । यह संदेश वाहक पूर्ण रूप से राजा के द्वारा नियुक्त किए जाते थे, जिन्हें हरकारा भी कहा जाता था। उस समय यह संदेश वाहक गांव गांव में पैदल, घोड़ा या ऊंट पर जाकर डाक गंतव्य तक पहुंचाते थे। उस समय देश में लगभग 600 से अधिक देशी रियासतें थी । यह सभी अपने-अपने हिसाब से व्यवस्था करती थी।
प्राचीन समय में मेवाड़ साम्राज्य का अच्छा खासा प्रभाव था। मेवाड़ रियासत के तत्कालीन महाराणा स्वरूप सिंह जी ने मेवाड़ में डाक सेवा प्रारंभ की थी। जब उन्होंने यह सेवा प्रारंभ की उस समय आबादी कम और जंगल सघन थे। एक स्थान से दूसरे स्थान तक डाक ले जाने के वक्त जंगलों में डाकुओं द्वारा डाक लूट लिए जाने का भय रहता था। इसलिए उन्होंने ब्राह्मणी डाक सेवा का शुभारंभ किया था। अन्य वर्गों की भांति ही डकैत भी ब्राह्मणों का सम्मान करते थे और वह ब्राह्मणों के किसी भी कार्यकलाप पर आक्रमण और लूटपाट नहीं करते थे। यही सोचकर महाराणा मेवाड़ उदयपुर ने 5 जून 1848 को बबाई (झुंझुनूं) के जादू राम लूणकरण ब्राह्मण को इस डाक व्यवस्था के लिए पट्टा दिया था।
जिन्होंने 100 वर्ष तक इस डाक कार्य का दक्षता के साथ सफलतापूर्वक संचालन किया। बताया जाता है कि उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों मध्य प्रदेश के नीमच, महाराष्ट्र के अकोला तक लगभग 100 से अधिक डाकघर स्थापित किए थे, जिनका सफलतापूर्वक संचालन किए जाने का उल्लेख मिलता है। मेवाड़ में यह ब्राह्मणी डाक सेवा राजस्थान के गठन होने तक 18 अप्रैल 1948 तक चालू रही। राजस्थान सरकार ने 27 मार्च 1950 को आदेश देकर इस ब्राह्मणी डाक सेवा को पूर्ण रूप से बंद कर दिया। इससे पूर्व अंग्रेजों को जब इस ब्राह्मणी डाक सेवा के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने न केवल इस डाक व्यवस्था की प्रशंसा की, बल्कि इसकी अनेक अच्छाइयों को अपनी डाक सेवा में भी शामिल किया ।
संसार में जब से डाक व्यवस्था का प्रचलन शुरू हुआ है तब से अब तक विश्व के सभी देशों में इस व्यवस्था में अनेकों प्रकार के परिवर्तन देखने को मिले हैं । भारतीय डाक प्रणाली में तुरंत सेवा के लिए टेलीग्राम का बहुत बड़ा योगदान था, जिसे पिछले साल से हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है, वही भारतीय डाक विभाग लेटर बॉक्स की अहम भूमिका के लिए अब उसे डिजिटल स्वरूप देने पर फोकस कर रहा है। डाक विभाग को बार-बार यह शिकायतें मिल रही थी की पोस्टमैन उन्हें कई बार नहीं खोलते इससे उनकी डाक गंतव्य पर विलंब से जाती है। इसको लेकर विभाग ने निर्देश जारी कर दिए हैं की अब पोस्टमैन जब भी लेटर बॉक्स खोलेगा तब वह अपने मोबाइल से उसकी फोटो खींचेगा। उन खींची गई फोटो में समय और दिनांक भी अंकित होगा। सरकार रजिस्टर्ड पत्रों को भी स्पीड पोस्ट की तरह से ही भेजने के लिए शीघ्र ही ठोस कदम उठाने जा रही है। सरकार का यह कदम प्रशंसनीय होगा।
लेखक : गोविन्द राम हरितवाल