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हिन्द की क्रांतिकारी बेटी: स्वतंत्रता सेनानी कमला नेहरू


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आर्टिकल

हिन्द की क्रांतिकारी बेटी: स्वतंत्रता सेनानी कमला नेहरू

हिन्द की क्रांतिकारी बेटी: स्वतंत्रता सेनानी कमला नेहरू

लेखक- धर्मपाल गाँधी, अध्यक्ष, आदर्श समाज समिति इंडिया

कमला नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में से एक स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने वाली हिन्द की क्रांतिकारी बेटी और स्वतंत्रता सेनानी थीं। वे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पत्नी और देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की माँ थीं। कमला नेहरू को आज भी सौम्यता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति के रूप में याद किया जाता है। कमला नेहरू, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से बहुत प्रभावित थीं। उन्होंने महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन और ऐतिहासिक दांडी यात्रा में भाग लिया था। आजादी के आंदोलन में भाग लेने पर कमला नेहरू को जेल भी हुई थी।

कमला नेहरू दिल्ली के प्रमुख व्यापारी पंड़ित जवाहरमल और राजपति कौल की बेटी थीं। एक भारतीय परंपरागत कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में कमला का जन्म 1 अगस्त 1899 को दिल्ली में हुआ था। कमला कौल के दो छोटे भाई और एक छोटी बहन थी जिनके नाम क्रमश:- चंदबहादुर कौल, कैलाशनाथ कौल और स्वरूप काट्जू थे। कमला कौल का सत्रह साल की उम्र में 8 फरवरी 1916 को पंडित जवाहरलाल नेहरू से विवाह हो गया था। सौम्य, छरहरी तथा विनम्रता की मूर्ति कमला नेहरू ने 19 नवम्बर 1917 में बेटी इंदिरा प्रियदर्शनी को जन्म दिया। जिसने अपने पिता की तरह ही भारत का नेतृत्व किया और कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष भी रहीं। कमला ने नवंबर 1924 में एक लड़के को भी जन्म दिया था, किंतु वह समय से पहले पैदा हो गया और 2 दिन बाद ही उसका निधन हो गया। कमला नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने पति जवाहरलाल नेहरू का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। नेहरू के राष्ट्रीय आंदोलन में कूदने पर कमला नेहरू को भी अपनी क्षमता दिखाने का अवसर मिला।

1920 में महात्मा गाँधी द्वारा शुरू किये गये असहयोग आंदोलन में कमला नेहरू ने बढ़-चढ़कर कर भाग लिया। इस आंदोलन के दौरान उन्होंने इलाहाबाद में महिलाओं का एक समूह गठित किया और विदेशी वस्त्र तथा शराब की बिक्री करने वाली दुकानों का घेराव किया। उनके अंदर गजब का आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता थी, जिसका परिचय उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान कई बार दिया। एक बार जवाहरलाल नेहरू को सरकार विरोधी भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया तो कमला नेहरू ने आगे बढ़कर उस भाषण को पूरा किया। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार ने उनकी गतिविधियों के लिए उन्हें दो बार गिरफ्तार कर जेल में डाला। कमला नेहरू का पूरा परिवार आजादी के आंदोलन में सक्रिय था। कमला नेहरू एक निडर और निष्कपट महिला थीं। वह जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक लक्ष्यों को समझती थीं और उन्हें हर संभव मदद भी करती थीं।

इलाहाबाद में आजादी के आंदोलन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी रही है। महिलाओं ने अपने तरीके से अंग्रेजों की कार्रवाई का विरोध किया था। कमला नेहरू आंदोलन में काफी सक्रिय रहती थीं। उन्होंने उस दौर में बहुत सी महिलाओं को स्वाधीनता आंदोलन से जोड़ने में मुख्य भूमिका निभाई। कमला नेहरू का व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक एवं प्रभावशाली था। उस समय नेहरू परिवार में रामेश्वरी नेहरू, उमा नेहरू, विजयलक्ष्मी पंडित जैसी विदुषी और प्रभावशाली महिलाएं थीं, किंतु इन सबके बीच कमला नेहरू ने अपनी अलग पहचान बनाई थी। कमला नेहरू सार्वजनिक सभाओं में बहुत ओजस्वी भाषण देती थीं। एक बार उन्होंने एक सभा में कहा कि- ‘बहनों भारत माता पुकार रही है। उसकी रक्षा के लिए अपने बेटों को कुर्बान कर दीजिए। मेरे तो बेटा नहीं है, सिर्फ एक बेटी है परंतु जरूरत पड़ने पर मैं उसे देश के लिए आग में झोंक सकती हूँ। इस बात का लोगों पर बड़ा जादुई असर होता था। आजादी की लड़ाई के दौरान कमला नेहरू बहुत समय तक महात्मा गाँधी के आश्रम में भी रही थीं। यहाँ उनकी मुलाकात महात्मा गाँधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गाँधी और जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी से हुई। आश्रम में रहते हुए कमला नेहरू और प्रभावती देवी की गहरी मित्रता हो गई। प्रभावती देवी ने मित्रता का यह रिश्ता कमला नेहरू की मृत्यु के बाद भी निभाया।

जयप्रकाश नारायण और प्रभावती देवी इंदिरा गाँधी को बेटी मानते थे। कस्तूरबा गाँधी, सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू और प्रभावती देवी ने देश की महिलाओं को आजादी के आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। 1930 में महात्मा गाँधी की ऐतिहासिक दांडी यात्रा से शुरू किए गए नमक सत्याग्रह में कमला नेहरू ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। सन् 1930 में जब कांग्रेस के सभी नेता जेलों में बंद थे तो कमला नेहरू ने राजनीति में जमकर रुचि दिखाई। मजेदार बात यह थी उस समय सारे देश में औरतें सड़कों पर संघर्ष के मैदान में उतर पड़ीं। मैदान में उतरने वाली औरतों में सभी वर्गों और समुदायों की औरतें थीं। नेहरूजी ने ‘हिंदुस्तान की कहानी’ में इसका जिक्र किया है। उस समय मोतीलाल नेहरू ने बीमारी की हालत में कांग्रेस के आंदोलन का नेतृत्व किया और बड़ी संख्या में औरतों ने उस आंदोलन में हिस्सा लिया। यह घटना 26 जनवरी 1931 की है। इस दिन सारे देश में आज़ादी की सालगिरह मनाने का फैसला लिया गया। देश में हजारों जलसे हुए उनमें एक यादगार प्रस्ताव पास किया गया। यह प्रस्ताव हर सूबे की भाषा में था।

कमला नेहरू ने इसके पहले 1921 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया था। कमला दिखने में सामान्य थीं, लेकिन कर्मठता के मामले में असाधारण थी। आजादी के आंदोलनों में भाग लेने और जेल जाने से कमला नेहरू का स्वास्थ्य खराब हो गया और उन्हें क्षयरोग हो गया। उनकी क्षयरोग के कारण 28 फ़रवरी 1936 में स्विटजरलैंड में अल्पायु में मृत्यु हो गई। 1935 में जब कमला नेहरू की तबियत ज्यादा खराब होने लगी तो उन्हें स्वीटजरलैंड ले जाया गया। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत की जेल में बंद थे। इसलिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विदेश में कमला नेहरू का इलाज करवाया। उस समय उनकी बेटी इंदिरा प्रियदर्शनी और डॉक्टर अटल भी साथ थे। कमला नेहरू टी. बी. से पीड़ित थी और उस समय टी. बी. एक खतरनाक बीमारी मानी जाती थी। एक बार उनके स्वास्थ्य में थोड़ा सुधार हुआ लेकिन धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरता ही गया।

28 फरवरी 1936 को स्विटज़रलैंड के लोज़ान शहर में कमला नेहरू ने अंतिम साँस ली। स्वरूप रानी, इंदिरा प्रियदर्शिनी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरू अंतिम समय में कमला नेहरू के पास थे। कमला नेहरू का अंतिम संस्कार स्विटज़रलैंड में ही किया गया। सच में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने शारीरिक और मानसिक काफी यातनाएं झेलीं थीं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अंतिम समय का वर्णन करते हुए लिखा है, “ज्यों-ज्यों आखिरी दिन बीतने लगे, कमला में अचानक तब्दीली आती जान पड़ी। उसके जिस्म की हालत, जहां तक हम देख सकते थे, वैसी ही थी, लेकिन उसका दिमाग़ अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों पर कम ठहरता। वह मुझसे कहतीं कि कोई उसे बुला रहा है या कि उसने किसी शक़्ल या आदमी को कमरे में आते देखा, जबकि मैं कुछ नहीं देख पाता था। 28 फ़रवरी को, बहुत सबेरे उसने अपनी आखिरी साँस ली। इंदिरा वहां मौजूद थी, और हमारे सच्चे दोस्त और इन महीनों के निरंतर साथी डाक्टर अटल भी मौजूद थे। सुभाष चंद्र बोस और कुछ मित्र स्विटजरलैंड के पास के शहरों से आ गए और हम उसे लोज़ान के दाहघर में ले गए। चंद मिनटों में वह सुंदर शरीर और प्यारा मुखड़ा, जिस पर अकसर मुस्कराहट छाई रहती थी, जलकर ख़ाक हो गया। और अब हमारे पास सिर्फ़ एक बरतन रहा, जिसमें उस सतेज, आबदार और जीवन से लहलहाते प्राणों की अस्थियां हमने भर ली थीं।”

नेहरू जब कमला की अस्थियां लेकर लौट रहे थे तो उनका मन एकदम खिन्न और उदास था, उस क्षण को याद करते हुए लिखा है, “मैंने ऐसा महसूस किया कि मुझमें कुछ नहीं रह गया है और मैं बिना किसी मकसद का हो गया हूँ। मैं अपने घर की तरफ़ अकेला लौट रहा था, उस घर की तरफ़ जो अब घर नहीं रह गया था, और मेरे साथ एक टोकरी थी, जिसमें राख़ का एक बरतन था। कमला का जो कुछ बच रहा था, यही था। और हमारे सब सुख सपने मर चुके थे और राख़ हो चुके थे। वह अब नहीं रही, कमला अब नहीं रही- मेरा दिमाग़ यही दुहराता रहा।” नेहरूजी ने अपनी आत्मकथा कमला को समर्पित करके बेहतरीन श्रद्धांजलि दी। महान स्वतंत्रता सेनानी कमला नेहरू के नाम पर देश में बहुत से संंस्थानों का निर्माण किया गया है। हिन्द की क्रांतिकारी बेटी महान स्वतंत्रता सेनानी कमला नेहरू को आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार नमन करता है। – लेखक- धर्मपाल गाँधी, अध्यक्ष, आदर्श समाज समिति इंडिया

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