क्या राजस्थान विधान सभा के आगामी बजट सत्र में पेश होगा कोचिंग रेगुलेशन्स बिल?
केन्द्र सरकार की 'कोचिंग कंट्रोल एंड रेगुलेशंस गाइडलाइंस' 2024 (16 जनवरी 2024 को जारी), वर्षगांठ मनाए या बरसी...? कोचिंग के वायरस से नई शिक्षा नीति में भी आया एरर...

कोचिंग रेगुलेशन्स बिल : देश के शिक्षा क्षेत्र में यह एक बहुत गंभीर चर्चा का विषय है कि आज से एक वर्ष पूर्व आज ही के दिन 16 जनवरी 2024 को केंद्र सरकार ने बहु प्रतीक्षित कोचिंग रेगुलेशंस एंड कंट्रोल गाइडलाइंस जारी की थी। बहुत मेहनत, परिश्रम, गहराई से चिंतन के बाद विभिन्न शिक्षाविदों, विभिन्न संगठनों की बरसों से चली आ रही मांग और सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट्स के लगातार आदेशों के बाद केंद्र सरकार ने बहुत अच्छी और विस्तृत गाइडलाइंस जारी की थी। इससे पूरे देश के शिक्षा और प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया क्षेत्र में इसे एक बहुत ही स्वागत योग्य कदम माना गया था। सभी शिक्षाविदों, अभिभावकों, विद्यार्थियों ने इन गाइडलाइंस का खुले दिल से स्वागत भी किया था। चूंकि शिक्षा देश के संविधान की कॉन्करेंट लिस्ट/समवर्ती सूची में है।

अतः इन गाइडलाइंस को लीगल फ्रेमवर्क और कानून बनाकर लागू करने का दायित्व केंद्र ने राज्य सरकारों पर छोड़ा था। उस समय यह उम्मीद की जा रही थी कि कम से कम जिन 17 राज्यों में केंद्र सरकार की रूलिंग पार्टी की ही राज्य में भी सरकारें है। वहां यह कानून अति शीघ्र लागू भी होगा। जिसमें से कोटा जैसे शहर के कोचिंग हब होने का तथाकथित गौरव प्राप्त होने के नाते राजस्थान राज्य सरकार इसमें पहल करेगा ऐसा सबको विश्वास था। आशानुरूप राजस्थान सरकार ने पहल की भी। तुरंत ही राजस्थान राज्य के तकनीकी एवं उच्च शिक्षा विभाग ने 28 फरवरी 2024 को यह सरकारी आदेश जारी किया कि राजस्थान राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा जारी कोचिंग रेगुलेशंस एंड कंट्रोल गाइडलाइन को पूर्णतया अडॉप्ट करती है और उसकी अक्षरशः पालना करने के लिए सभी जिला कलेक्टर को पाबंद कर दिया। इस आदेश के जवाब में कोटा कलेक्टर ने भी तुरंत सभी कोचिंग सेंटर्स व होस्टल्स को आदेश जारी कर उसकी पालना सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए। मीडिया में भी इसकी भूरि भूरि प्रशंसा हुई। तब यह आशा बंधी थी कि अब तो स्कूलों के समानांतर चल रहे इन अवैध व अनावश्यक कोचिंग संस्थानों को कंट्रोल एवं रेगुलेट किया जाएगा।
ध्यातव्य है कि ये सभी आदेश कागजों में आज भी प्रभावी हैं। किंतु धरातल पर प्रभाव शून्य हैं। शुरू शुरू में इस पर कुछ कार्यवाही हुई भी किंतु शक्तिशाली कोचिंग लॉबी के सामने यह सरकारी साईकिल शीघ्र ही पंक्चर हो गई। बाद में यह जानकारी में आया कि “ऊपर से आए हुए तथाकथित मौखिक आदेशों” से इस पर आगे की कोई कार्रवाई आज तक नहीं हुई। अफसोस उस वक्त ज्यादा होता है जब केंद्र की रूलिंग पार्टी की ही सरकारें 17 राज्यों में होने के बावजूद किसी भी राज्य सरकार ने आज तक अपने राज्य में केंद्र की स्वयं की कोचिंग रेगुलेशंस गाइडलाइंस को 12 महीने के बाद भी कानून नहीं बनाया है।
तो क्या यह मान लिया जाए कि यह गाइडलाइंस मात्र दिखावा या हाथी के दांत ही थे!
राजस्थान में बार-बार हो रही आत्महत्याएं, घटनाएं, दुर्घटनाएं, अनियमिताओं की शिकायतें विद्यार्थियों के साथ हो रहे अन्याय व भेदभाव आदि की शिकायतें आम है। जिन पर स्वतः संज्ञान लेकर राजस्थान हाईकोर्ट में सन 2016 से चल रही सु मोटो/स्वप्रेरित याचिका क्रमांक 99/2016 में यह आदेश राज्य सरकार को बार-बार दिया कि तुरंत कोचिंग संस्थानों को रेगुलेट किया जाए। राज्य सरकार ने कोर्ट आदेश व केंद्र सरकार की गाइडलाइन्स की अनुपालना में कोचिंग रेगुलेशन्स बिल बनाया भी और वह बिल अपनी वेबसाइट पर 22 जुलाई 2024 को जारी कर 6 अगस्त 2024 तक सुझाव आमंत्रित करते हुए विधिवत स्टेक होल्डर्स की मीटिंग भी आयोजित कर ली। बस उसके बाद यह एक्ट न जाने किस गुमनामी में खो गया। वास्तविकता तो यह है कि जिनको यह एक्ट धरातल पर लागू करना था। वे ही लोग अपने राजनैतिक स्वार्थ वश व अधिकारीगण अपने आकाओं को खुश करने के चक्कर में अंकुश लगाने के स्थान पर कोचिंग संस्थानों के पक्ष में वकालत और मार्केटिंग खुले आम करने में लिप्त हो गए। बड़े-बड़े राजनेता और बड़े-बड़े अधिकारी सब कर्ताधर्ता मिलकर जिनका दायित्व कोचिंग संस्थानों को कंट्रोल व रेगुलेट करने का था व आज भी है वे ही लोग जन-विरोधी व नियम विरुद्ध अवैध कारोबार को संरक्षण देने में संलिप्त हो गए। उन कोचिंग माफियाओं और होस्टल उद्योग को खुले आम प्रोत्साहित व उनकी मार्केटिंग करने लग गए। अब तो यही कहा जाएगा कि जब “सैयां भए कोतवाल तो फिर डर काहें का?” इसी लिए केंद्र की गाइडलाइन्स को एक वर्ष पूर्ण हो जाने के बाद यह चिंतन करने की आवश्यकता पड़ी कि इसकी खुशी से वर्षगांठ मना कर इसके फलने फूलने की दुआएं मांगे या दुख में बरसी मना कर श्राद्ध व तर्पण करें? क्या केंद्र की गाइडलाइन्स को एक स्वप्न मान कर भूल जाएं? सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी राजस्थान सरकार ने प्रस्तावित एक्ट को आगामी विधानसभा के बजट सत्र की कार्यसूची में आधिकारिक रूप से सम्मिलित भी नहीं किया है। कोई भी इस एक्ट को लेकर गंभीर नहीं है। यदि सरकार में ज़रा सी भी इच्छाशक्ति हो तो बनी बनाई विस्तृत गाइडलाइन्स को एक्ट बनाने और विस्तृत प्रक्रिया, नियम, कानून कायदे ही नहीं ऑनलाइन पोर्टल आदि बनाने के लिए पर्याप्त टाइम लाइन, गुणी आईएएस व आरएएस तथा सुयोग्य तकनीशियन की टीम राज्य सरकार के पास उपलब्ध है। सवाल तो करने या ना करने के निर्णय व इच्छा शक्ति का ही तो है, वरना एक वर्ष का समय निकाल देने की भी कोई आवश्यकता नहीं थी।
लेकिन क्या करें, हाल ही में फिर हुई छात्रों की तथाकथित आत्महत्याओं की ताज़ा चींखें कमबख्त चैन से बैठने भी तो नहीं देती! संभवतया उन मासूमों की अंतिम आह और माता-पिता की बेबस हाय उस ऊंचाई पर एयरकंडीशंड कमरों में बैठे आकाओं तक पहुंच भी नहीं पा रही है। ऐसा लगता है कि आंखे मूंद कर बैठे हुए इन ताकतवर राजनेताओं, अधिकारियों, विदेशी इन्वेस्टर्स और कोचिंग माफियाओं के अपवित्र गठजोड़/नेक्सस को केवल और केवल अपने मोटे मुनाफे की ही चिंता है। लगातार ना थमने वाली आत्महत्याएं उनके लिए मात्र एक गिनती है, वे क्या जाने कि किसी ने अपने घर का चिराग और जिंदगी ही खो दी है। इसी वर्ष मुखर्जी नगर दिल्ली हो चाहे गुर्जर की थड़ी जयपुर की विभिन्न दुर्घटनाएं इनके लिए तो सब आम बात है। बड़े ही दुःख और तकलीफ के साथ यह भी लिखना पड़ रहा है कि कुछ कोचिंग घरानों और गिनती के होस्टल मालिकों को निहित स्वार्थवश संरक्षण और उनका पोषण करने के ऐवज में पूरे देश भर की स्कूली शिक्षा व्यवस्था व नई शिक्षा नीति तक को ताक पर रख दिया गया है। नतीजा यह निकल रहा है कि सरकारी तथा मान्यता प्राप्त सभी स्कूल बेरहम कोचिंगों के सामने ‘बौने’ व ‘डमी’ साबित हो कर रह गए हैं और समानांतर अवैध कोचिंग इंडस्ट्री फ्रंट सीट पर खतरनाक वायरस की तरह सिस्टम में समा चुकी है और मनचाही दिशा में देश को ड्राइव कर रही है। क्या इस तरह से हम भारत देश की महान गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था को रौंद कर व्यावसायिक कोचिंग उद्योग की बैसाखी पर चढ़ाकर विश्व गुरु बनाएंगे? पूरे देश की पवित्र शिक्षण संस्थाएं निजी और सरकारी सभी और उनके साथ उनके होस्टल, कर्मचारी, टीचर्स, स्पोर्ट्स तथा एक्टिविटी कोचेज, बस ड्राइवर्स, सपोर्ट स्टाफ सभी बेरोजगार होने लग गए हैं और उन संस्थानों को बंद करने की या इन कोचिंगों में विलीन कर देने की नौबत आ चुकी है। लेकिन इसके बाद भी सरकार इन अवैध कोचिंग संस्थानों पर नकल कसने के लिए कोई भी रेगुलेशन एक्ट लाने को तैयार नहीं है। राजस्थान हाईकोर्ट में बार-बार तारीखें पड़ रही है। वहां भी केवल लुका-छुपी व ज्यादा से ज्यादा टाइम पास का खेल खेला जा रहा है। दूसरी तरफ कोचिंग संस्थान नियमों और गाइडलाइंस को धत्ता बताते हुए पूरी अग्रिम फीस के साथ आगामी वर्ष के लिए भी धड़ल्ले से एडमिशन कर रहे हैं। इसे ही तो कहते हैं “अंधेर नगरी चौपट राजा”। बरसी क्यों हम तो खुशियों से वर्षगांठ मना लें, बशर्ते कोचिंग रेगुलेशन्स एन्ड कंट्रोल एक्ट बिना किसी कांट-छाँट के ज्यों का त्यों कानून बन कर धरातल पर पूरे मन से लागू तो हो।
लेखक- डॉ. दिलीप मोदी, शिक्षाविद, झुंझुनूं