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आरपीए डायरीज़,  ‘कैसा होता है गुजरी राह से गुजरना’


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आरपीए डायरीज़,  ‘कैसा होता है गुजरी राह से गुजरना’

आरपीए डायरीज़,  'कैसा होता है गुजरी राह से गुजरना'

‘कैसा होता है गुजरी राह से गुजरना’

कैसा होता है आरपीए में हरे-भरे दरख्तों के दरमियाँ सूखे शज़र का होना
कैसा होता है शज़र काट के उसी के साय की तलाब करना
कैसा होता है इबादत मैं हाथ उठना और सजदा ना करना
कैसा होता है मोहब्बत में रकाबत रखना
कैसा होता है मसीहा में आदमीयत होना होना
कैसा होता है कोने में गुलदान होके भी वीरान होना
कैसा होता है शिद्दत से बीज बोके सूखे पत्ते उठाना

कैसा होता है चेहरे पर हंसी दिल में रूहासा होना
कैसा होता है गुलों का शाख से जुदा होके जी जाना
कैसा होता है साख के जख्मों का हरा होना
कैसा होता है स्याह सी रातों में रोशनी की चाह रखना
कैसा होता है गुजरी राह से गुजरना
कैसा होता है ज़र्रे से आसमान की बुलंदी की चाह रखना

कैसा होता है मेरी आंखों में उसके ख्वाबों का ठहर जाना
कैसा होता है जिंदगी बेतरतीब करके जीना
कैसा होता है किताब को पढ़ना और हर्फ़ ना समझना
कैसा होता है आसमान में एक बिजली का चमक जाना और जमीन पर कयामत ला देना
कैसा होता है खुले आसमान तले घुटन से भर जाना
कैसा होता है सुबह को शाम समझ जाना
कैसा होता है एक पत्ते पर बारिश की बूंद का पल भर ठहर जाना

कैसा होता है एक ओस की बूंद का समंदर होना
कैसा होता है जानवर का इंसान और इंसान का जानवर होना
कैसा होता है जिस्म में हरारत होना और आत्मा का मर जाना
कैसा होता है दिल की कुछ लिखना “उमा” और लिख कर फाड़ देना-

उमा व्यास (एसआई, राज.पुलिस), कार्यकर्ता, श्री कल्पतरु संस्थान

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