
आज मैंने देखा सुबह से
मेरे लोहे के कबाड़ से बने ढाँचे को
खड़ा करके उसमें भरा जा रहा है कुछ विस्फोटक
ताकि मैं जल जाऊं जड़ से
और समाज से बुराइयों को भी जला जाऊं
तभी मेरे दशानन,दस दिशाओं में झांक के देख रहे है
कौन है जिसमें मैं नहीं हूँ
क्या उनको जलाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त होगा
क्योंकि जिस ऊँचाई पे मुझे खड़ा किया गया है
वहां से मैं देख सकता हूँ
कितने रावण और कुंभकर्ण इसी भीड़ का हिस्सा
बनके मुझे धुंआ होते देखना चाहते हैं
पर विभीषण ने किया था कर्तव्य पूर्ण
राम हित में, प्रजा हित में और देश हित में
पर कितने ऐसे देश को बेचने को आतुर भी
यहीं मेरे सामने खड़े हैं
कलुषित मन से न जाने कितनी सीताओं को
अपहृत करने के इरादे से अड़े हैं
तभी मैं अपने चीर परिचित अंदाज में हंस पड़ता हूँ
कितने रावण पैदा हो गए है
इतने विकराल स्वरूप तो मेरे दसमौलि में भी नहीं
इतने घातक हथियार तो मेरी बीस भुजाओं में भी नहीं
पर लगता है मनुष्य परपीड़क है
वह मुझे जलता हुआ देखकर प्रसन्न होगा
और मैं उसे देखकर स्तब्ध कि
सही मायने में आज जरूरत है इस देश को राम की
आज मैं स्वयं राम का आह्वान करता हूँ
तुम्हारी मूर्खता पे अट्टहास करता हूँ
और मैं स्वयं राम के आदर्शो का हृदय से पालन करता हूँ
मुझे तो तुमने हर वर्ष जला जला के
मेरे मन के रावण का तो कर दिया है वध
पर तुमने उसी अंशों को खुद में कर लिया है उत्पन्न
जिस दिन उसको कर सको भस्म, और दशहरा मना सको
तब यह अनुभूति करना कि तुमने दस शीशों को हरा के
दशहरा मना लिया है
और तुम सब से यह अरदास करता हूँ
कि अगली बार जब तुम मुझे खूंटे के सहारे बांध के खड़ा करो
तब देखना कि ”उमा”तुमने स्वयं में रचे बसे रावण को
मारा है या तुम आ गई हो प्रतीकात्मक रावण जलाने
राम की जगह मन में मुझे बसाने
– उमा व्यास, एस.आई. राज. पुलिस
वॉलंटियर, श्री कल्पतरु संस्थान