कविता : हमारा साथी, हमारा भाई
कविता : हमारा साथी, हमारा भाई
साथी आज आसमा का थानेदार बन गया
चाह थी कंधे पे सितारों की
खुद आज दूर कहीं सितारा बन गया ।
थी चाह हाथ पीले कर दे बहन के
थी जिम्मेदारी पिता की बिगड़ती हालत की
भर्ती रद्द की रट ने उसने भी ठानी पुन: परीक्षा देने की ।
सफेद चोलों की चालों ने उसके घर की रोशनी बुझा दी
उसकी बूढ़ी मां देख रही है राह उसकी
नाकाम तंत्र, लचर न्यायपालिका
और कुछ छुटभैया नेताओं ने उसकी घर की राह में
उसकी ही लाश बिछा दी ।
ओछी राजनीति, अंधी सरकार
करो मिलकर साजिशे, क्या कोई लौटा पायेगा
हमारा भाई, हमारा यार ।
क्या कोई चुका सकता है मूल्य
उस माँ के मातृत्व का जिसने सिंचा था उस पुत्र को
जो आज उसकी आंख का कभी न खत्म होने वाला
आंसुओं का सैलाब बन गया ।
क्या इसी दिन के लिए उसने कई नौकरियों से त्यागपत्र देके
इतना बड़ा बलिदान चुना
कहां तो उसे थी परवाह पूरे परिवार की
आज कैसे उसने यह मौत का हार चुना ।
लड़ेंगे ऐ योद्धा ! तेरे हक़ की भी हम मिलकर लड़ाई
नाहक न जाने देंगे तेरे अधूरे सपने ,
जाग कर बिताई रातें और तेरी आखिरी पढ़ाई
शहादत को सलाम ।।
(चयनित एस.आई. स्व. राजेंद्र सैनी को समर्पित)
– उमा व्यास, एस.आई. राज. पुलिस, वॉलंटियर, श्री कल्पतरु संस्थान
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