भारत का व्यापक शहरीकरण : विकास या विनाश की कुंजी ? (60% शहरी होने का अनुमान 2050 तक)
भारतीय शहरों को टिकाऊ बनाने के लिए प्रयासों में देनी होगी तीव्र गति

भारत का व्यापक शहरीकरण : विकास या विनाश की कुंजी ?
(60% शहरी होने का अनुमान 2050 तक)

विकास की राह:
- आर्थिक प्रगति : शहर रोजगार, उद्यमिता और नवाचार के केंद्र बनते हैं, जिससे आर्थिक विकास होता है।
- जीवन स्तर में समेकित सुधार: शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं तक बेहतर विकास समेकित रूप से जीवन स्तर को ऊँचा उठाती है।
- सामाजिक बदलाव: विविधता और समावेश का माहौल सामाजिक प्रगति और सकारात्मक बदलाव को प्रेरित करता है।
विनाश की ओर:
- बुनियादी ढांचे का बोझ: बढ़ती आबादी यातायात, बिजली, पानी और स्वच्छता जैसी सुविधाओं पर दबाव डालती है।
- असमानता का जहर: धन और अवसरों में असमानता गरीबी, अपराध और सामाजिक अशांति को जन्म देती है।
- पर्यावरणीय क्षरण: प्रदूषण, वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन पर्यावरण को खतरे में डालते हैं।
आज का भारत शहरीकरण की तूफानी गति का अनुभव कर रहा है। 2050 तक, 60% भारतीयों के शहरों में रहने का अनुमान है। यह बदलाव प्रगति का प्रतीक है,लेकिन यह अनिश्चित भविष्य की ओर ध्यान आकृष्ट करता ह। विश्व पर्यावरण दिवस धरती माँ की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने का अवसर है।भारत, दुनिया की दूसरी सबसे अधिक जनसँख्या वाला देश, पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है जो मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिक तंत्र के लिए विषम नकारात्मक परिस्थतिया पैदा कर रहे है ।विभिन्न रिसर्च रिपोर्ट्स एवं मैनेजमेंट विश्लेषकों के अनुसार भारत में शहरी आबादी 2050 तक 60% तक पहुंच सकती ह। भारत तेजी से शहरीकरण का सामना कर रहा है, जिसके कारण देश की सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव आ रहा है।यह अभूतपूर्व शहरीकरण कई चुनौतियों और अवसरों को जन्म देता है, जिनका भारत को सावधानीपूर्वक सामना करना होगा।भारत में बढ़ते शहरीकरण के कारण बढ़ती शहरी आबादी के साथ, आवास, परिवहन, जल और बिजली जैसे बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव बढ़ने की लगातार परिस्थितिया बन रही है।


