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जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद हुई थी ये घटना, पूरी दुनिया देखती रह गई थी इस भारतीय को


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जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद हुई थी ये घटना, पूरी दुनिया देखती रह गई थी इस भारतीय को

जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद हुई थी ये घटना, पूरी दुनिया देखती रह गई थी इस भारतीय को

सरदार उधम सिंह : माइकल ओ’डायर 13 अप्रैल, 1919 में हुए जलियावाला बाग कांड का खलनायक था। इस पार्क में 9 अप्रैल, 1919 को महात्मा गांधी आने वाले थे, लेकिन वह गिरफ्तार कर लिए गए। 10 अप्रैल को सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू भी बंदी बना लिए गए। फिर भी जलियांवाला बाग में 20,000 लोगों की भीड़ एकत्र हो गई। डायर ने तीन तरफ से बंद इस पार्क में बेगुनाह लोगों पर फायरिंग के आदेश दिए थे। ब्रिटिश सरकार मानती थी कि इस गोलीबारी में 379 जानें गईं।

कांग्रेस ने मृतकों की संख्या 1500 बताई थी। घटना से आहत रवींद्रनाथ टैगोर अंग्रेजों की ‘नाइट हुड’उपाधि लौटा चुके थे। मामले की जांच के लिए हंटर कमेटी बनी। लेकिन कमेटी ने इस गोलीबारी के लिए सरकार को दोषी नहीं पाया। कहा गया – ‘भीड़ इतनी ज्यादा थी कि गोली चलाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।’डायर ने केवल ‘फैसला लेने में भूल’की थी।

चर्चिल जैसे नेता ने भी ब्रिटिश संसद में ‘इस अमानवीय हत्याकांड को ब्रिटिश इतिहास में एक धब्बा बताया था। ’डायर को हटा दिया गया। निहत्थों पर गोली चलाने के लिए उसे कोई सजा नहीं दी गई। इसके उलट हाउस ऑफ लॉर्ड्स के अनुदारवादी मेंबरान ने डायर को ब्रिटिश हुकूमत की हिफाजत के सम्मान में एक तलवार और 26 हजार पौंड की रकम भेंट की।

jaliya wala bag hatyakand 100 years udham singh had revenge-after-21-years‘ ओ’ ड्वायर पंजाब का गर्वनर था, और लोगों पर गोली चलवाने वाला जनरल डायर था। – फोटो : फाइल फोटो

क्या हुआ था जलियांवाला बाग में उस दिन?  
13 अप्रैल 1919 को हजारों लोग रौलट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। जनरल डायर करीब 100 सिपाहियों के साथ बाग के गेट पर पहुंचा। वहां उसके करीब 50 सिपाहियों के पास बंदूकें थीं। वहां पहुंचकर बिना किसी चेतावनी के उसने गोलियां चलवानी शुरू कर दीं। गोलियां चलते ही सभा में भगदड़ मच गई। जलियांवाला बाग कांड के समय माइकल ‘ ओ’ ड्वायर पंजाब का गर्वनर था, और लोगों पर गोली चलवाने वाला जनरल डायर था। कई इतिहासकारों का मानना है कि यह हत्याकांड ओ’ ड्वायर व अन्य ब्रिटिश अधिकारियों का एक सुनियोजित षड्यंत्र था, जो पंजाब पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए पंजाबियों को डराने के उद्देश्य से किया गया था। यही नहीं, ओ’ ड्वायर बाद में भी जनरल डायर के समर्थन से पीछे नहीं हटा था।

जब उधम सिंह ने लंदन में लिया इस कांड का बदला 
बहरहाल, पंजाब के एक लड़के उधम सिंह ने डायर को सजा – ए – मौत देने का फैसला कर लिया था। लंदन में उसका हर दिन ड्वायर के इंतजार में बीत रहा था। जलियांवाला बाग कांड के कोई बीस साल बाद वह मौका आ गया था। जलियावांला कांड की बरसी के ठीक एक महीने पहले 13 मार्च, 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में हुई ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की सभा में उधम सिंह ने ड्वायर की गोली मारकर हत्या कर दी थी। आपको बता दें कि जहां ड्वायर की हत्या हुई वहीं डायर की मौत आर्टेरिओस्क्लेरोसिस (धमनियों की बीमारी) और सेरेब्रल हैमरेज के कारण 1927 में हुई थी। इस कांड में लॉर्ड जेटलैंड, लॉर्ड लैमिंग्टन, सर लुइस डेन घायल भी हुए थे। जब महात्मा गांधी ने यह खबर 14 मार्च की सुबह अखबारों में पढ़ी तो वह रायगढ़ में थे। यहां 15 से 19 मार्च तक कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होनी थी। 14 मार्च को उन्होंने अखबारों में जारी अपने वक्तव्य में इस घटना और निंदा की।

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सरदार उधम सिंह का नाम भारत की आजादी की लड़ाई में पंजाब के क्रांतिकारी के रूप में दर्ज है। – फोटो : फाइल फोटो
21 साल इंतजार के बाद सरदार उधम सिंह ने लिया था बदला  
सरदार उधम सिंह का नाम भारत की आजादी की लड़ाई में पंजाब के क्रांतिकारी के रूप में दर्ज है। इस नरसंहार का बदला लेने के लिए वीर उधम सिंह ने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ’ड्वायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली थी। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। खास बात यह है अपना बदला लेने के लिए 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली।

भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ’ड्वायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा। 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक चल रही थी। जहां उधम सिंह हाथ में एक किताब लिए पहुंचे। उन्होंने उस किताब के पन्नों को काटकर उसमें एक बंदूक छिपा रखी थी।  बैठक के खत्म होने पर उधम सिंह ने किताब से बंदूक निकाली और माइकल ओ’ड्वायर पर गोली चला दी। ड्वॉयर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई। ओ’ड्वायर को गोली मारने के बाद वो वहां से भागे नहीं बल्कि वहीं खड़े रहे। ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला और 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनमानस शेखावटी न्यूज़ उत्तरदायी नहीं है. आप भी अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं. लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें.

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