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इस्लाम का स्वर्ण युग: गणितज्ञ मोहम्मद इब्नेमूसा अल-ख़्वारिज़मी, जिनके काम को “ख़तरनाक” और “जादू” माना जाता था


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आर्टिकल

इस्लाम का स्वर्ण युग: गणितज्ञ मोहम्मद इब्नेमूसा अल-ख़्वारिज़मी, जिनके काम को “ख़तरनाक” और “जादू” माना जाता था

'इस्लाम का स्वर्ण युग' की इस कड़ी में, लेखक और प्रसारक जिम अल-ख़लील हमें अल-ख़्वारिज़मी के बारे में बता रहे हैं.

मोहम्मद इब्ने मूसा अल-ख़्वारिज़मी एक फ़ारसी गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, ज्योतिषी, भूगोलवेत्ता और विद्वान थे, जो बग़दाद के बैतुल हिक्मत (हाउस ऑफ़ विज़डम) से जुड़े थे. उस समय, हाउस ऑफ़ विज़्डम वैज्ञानिक अनुसंधान और शिक्षा का एक प्रसिद्ध केंद्र था और इस्लामिक स्वर्ण युग के सर्वश्रेष्ठ दिमाग यहां इकट्ठा होते थे.

अल-ख़्वारिज़मी का जन्म 780 ईस्वी के आसपास फ़ारस में हुआ था और वह उन पढ़े लिखे लोगों में शामिल थे जिन्हें, ख़लीफ़ा हारून रशीद के बेटे ख़लीफ़ा अल-मामून के मार्गदर्शन में हाउस ऑफ़ विज़्डम में काम करने का मौक़ा मिला था.

“मान लें कि एक व्यक्ति बीमारी की स्थिति में दो ग़ुलामों को आज़ाद करता है. उनमें से एक ग़ुलाम की कीमत तीन सौ दिरहम और दूसरे की क़ीमत पांच सौ दिरहम है. जिस ग़ुलाम की क़ीमत तीन सौ दिरहम थी, थोड़े समय बाद उसकी मौत हो जाती है. वह अपने पीछे केवल एक बेटी को छोड़ जाता है. फिर उन ग़ुलामों के मालिक की भी मौत हो जाती हैं और उनकी वारिस भी उनकी इकलौती बेटी होती है. मृतक ग़ुलाम चार सौ दिरहम विरासत में छोड़ जाता है. तो अब विरासत में से हर किसी को कितना हिस्सा मिलेगा?”

गणित के इस भ्रामक प्रश्न को नौवीं सदी की शुरुआत में लिखी गई एक किताब से लिया गया है. यह सवाल वास्तव में उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति के वितरण पर मार्गदर्शन करता है. अरबी भाषा में लिखी गई इस किताब को दुनिया भर में इसके शीर्षक ‘किताब अल-जबर’ के नाम से जाना जाता है.

इस किताब के लेखक ही आज हमारे इस लेख का विषय हैं – मोहम्मद इब्ने मूसा अल-ख़्वारिज़मी.

उन्होंने मध्य पूर्व में कई विषयों में महारत हासिल की. मैंने (जिम अल-ख़लील) पहली बार उनका नाम एक इतिहास निबंध में उस समय सुना था, जब मैं इराक़ के एक स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहा था.

वह इस किताब में बीज गणित के विषय पर पहली बार लिखते हैं. इस शब्द को सीधे इस किताब के शीर्षक से लिया गया है और इसे गणित के ही एक उप विषय का दर्जा दिया गया है.

ख़्वारिज़मी 780 ईस्वी के आसपास पैदा हुए थे और जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, वह मध्य एशियाई देश उज़्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिज़्म प्रांत के थे.

हमें उनके जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है, लेकिन हम यह ज़रूर जानते हैं कि वह नौवीं सदी की शुरुआत में बग़दाद आ गए थे. उस समय, बग़दाद शक्तिशाली अब्बासिद ख़लीफ़ा द्वारा शासित एक विशाल इस्लामी साम्राज्य की राजधानी था.

वह ख़लीफ़ा अल-मामून के लिए काम करते थे. ख़लीफ़ा मामून, जो खुद भी यूनानी किताबों का अरबी भाषा में अनुवाद करवाने के प्रशंसक थे, और इतिहास में वैज्ञानिक अनुसंधान और इसके महत्व को समझने वाले अग्रणी व्यक्तियों में से एक थे.

इस्लाम का स्वर्ण युग
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अल-ख़्वारिज़मी ख़लीफ़ा के द्वारा बनाई गई ‘बैत अल-हिकमत'(हाउस ऑफ़ विज़्डम) नामक संस्था में काम करते थे. जो एक ऐसी संस्था थी जो सुनने में बिलकुल फ़र्ज़ी लगती थी. यह अनुवाद और विज्ञान में मूल शोध का केंद्र था, और यहां एक ऐसे युग के महान दिमाग इकट्ठा होते थे, जिन्हें अरबी विज्ञान के स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है.

यहां अरबी शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया है क्योंकि उस समय अधिकांश पुस्तकें अरबी में लिखी जाती थी.क्योंकि यह न केवल सल्तनत की आधिकारिक भाषा थी, बल्कि मुसलमानों की पवित्र किताब कुरान भी उसी भाषा में है.

इन वैज्ञानिक किताबों में दर्शन, चिकित्सा, गणित, प्रकाशिकी और खगोल विज्ञान सहित कई वैज्ञानिक विषयों को शामिल किया गया है. इस दौर की महान वैज्ञानिक उपलब्धियों में से हम उन कुछ उपलब्धियों का उल्लेख करेंगे जो सीधे अल-ख़्वारिज़मी से संबंधित थीं.

नौवीं सदी के दूसरे दशक में ख़लीफ़ा अल-मामून ने खगोलीय अनुसंधान के लिए बग़दाद में वेधशालाएं (ऑब्ज़र्वेटरी) बनवाई. इसके एक या दो साल बाद, यूनानी खगोल विज्ञान के आलोचनात्मक अध्ययन की शुरूआत हुई. इस दौरान अल-ख़्वारिज़मी की निगरानी में कई शोधकर्ताओं ने मिल कर सूर्य और चंद्रमा पर कई अवलोकन किए.

इस दौरान, एक ही स्थान पर स्थित 22 सितारों के अक्षांश और देशांतर की तालिका बनाई गई थी. इस बीच अल-मामून ने माउंट कासियन की ढलानों पर एक और वेधशाला के निर्माण का आदेश दिया,जहां से दमिश्क़ शहर साफ़ दिखाई देता था. इस वेधशाला के निर्माण का उद्देश्य इस संबंध में अधिक डाटा एकत्र करना था.

इस्लाम का स्वर्ण युग
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इस काम के पूरा होने पर अल-ख़्वारिज़मी और उनके सहयोगी कई सितारों के स्थान से संबंधित डाटा की तालिका बना चुके थे.

एक और शानदार प्रोजेक्ट जो इन स्कॉलर्स द्वारा शुरू किया गया वो और भी दूरदर्शी था.

यूनानी खगोलशास्त्री टोनॉमी ने अपनी मशहूर किताब ‘द जियोग्राफी’ में दुनिया के भूगोल से संबंधित जो कुछ भी मौजूद था हर चीज को दर्ज किया था. ऐसा कहा जाता है कि उनके काम के अरबी अनुवाद ने ही भूगोल में इस्लामी दुनिया की रुचि पैदा की.

अल-मामून ने अपने स्कॉलर्स को दुनिया का एक नया नक्शा बनाने का निर्देश दिया क्योंकि टोनॉमी के नक्शे में मक्का या राजधानी बग़दाद जैसे प्रमुख इस्लामिक शहर शामिल नहीं थे. टोनॉमी के दौर में मक्का शहर का इतना महत्व नहीं था और बग़दाद उस समय अस्तित्व में ही नहीं आया था.

अल-ख़्वारिज़मी और उनके सहयोगियों ने इन दोनों शहरों के बीच की दूरी को मापने का फ़ैसला किया. इस संबंध में उन्होंने चंद्र ग्रहण के दौरान पैमाइश के और आंकड़ों को जमा किया.

उस प्राचीन काल में उन्होंने इन दोनों शहरों के बीच की जो दूरी निकाली, वो वर्तमान समय के आंकड़ों की तुलना में दो प्रतिशत से भी कम ग़लत थी. इसके बाद उन्होंने अन्य महत्वपूर्ण स्थानों की, उन सीमाओं की फिर से जांच करने की कोशिश की, जिनसे इन स्थानों के केंद्र बिंदु का स्थान पता चल सके.

उदाहरण के लिए, उनके नक्शे में अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर को खुले जल मार्ग के रूप में दर्शाया गया है न कि ज़मीन से घिरे हुए समंदर, जैसा कि टोनॉमी ने अपनी किताब में बताया है.

अल-ख़्वारिज़मी की किताब ‘सूरत अल-अर्ज़’ यानी (दुनिया का नक़्शा) की वजह से उन्हें इस्लाम के पहले भूगोलवेत्ता होने का सम्मान प्राप्त है. यह किताब 833 ईस्वी में पूरी हुई थी. यह ख़लीफ़ा अल-मामून की मृत्यु का वर्ष भी है. इस किताब में पांच सौ शहरों के अक्षांश और देशांतर के टेबल मौजूद हैं.

इस किताब में, विभिन्न स्थानों को कस्बों, नदियों, पहाड़ों, समुद्रों और द्वीपों में विभाजित किया गया है. हर टेबल में, इन स्थानों को दक्षिण से उत्तर की ओर व्यवस्थित किया गया था.

हालांकि, गणित के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के सामने ये सभी उपलब्धियां धुंधली हो जाती हैं. संख्याओं और अंकों पर लिखे उनके शोध पत्रों के कारण ही मुस्लिम दुनिया में दशमलव संख्या प्रणाली(डेसिमल नंबर सिस्टम) शुरू की गई थी. गणित के उप विषय में उनकी किताब ‘अल-जुम वल-तफ्रीक बिल-हिंद’ का बहुत महत्व है.

यह किताब 825 ईस्वी के आसपास लिखी गई थी. लेकिन इसका कोई प्रामाणिक अरबी अनुवाद मौजूद नहीं है और किताब का शीर्षक भी केवल एक अनुमान है.

इस्लाम का स्वर्ण युग
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हालांकि, शायद दशमलव प्रणाली पर लिखी गई वह पहली किताब थी जिसका लैटिन भाषा में अनुवाद किया गया. इसकी शुरुआत लैटिन भाषा में लिखे गए इन शब्दों से होती है, “अल-ख़्वारिज़मी ने कहा कि…”

इस किताब में गणित से संबंधित कई चीज़ें बताई गई हैं और यहीं से एल्गोरिथम की शब्दावली अस्तित्व में आई जो वास्तव में लैटिन भाषा में अल-ख़्वारिज़्मी बोलने का तरीका है.

वास्तव में,अल-ख़्वारिज़मी के इस काम और इससे पहले किये गए कामों के जो अनुवाद किये गए. इन अनुवादों की यूरोप में आलोचना की गई. यह वो समय था जब यूरोप एक अंधेरे दौर से गुज़र रहा था. यही वजह थी कि ख़्वारिज़मी के काम को ‘ख़तरनाक’ या ‘जादुई’ माना जाता था.

उनका सबसे बड़ा काम निश्चित रूप से बीज गणित पर उनकी किताब थी. अल-ख़्वारिज़मी प्राचीन फ़ारसी धर्म ज़ोरेस्ट्रिन (पारसी) का अनुयायी था और हमें लगता है कि वह बाद में इस्लाम में परिवर्तित हो गए. किताब-अल-जबर के पहले ही पेज पर वो ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’ (शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम करने वाला है) लिखा गया है. आज भी, मुस्लिम लेखकों द्वारा लिखी गई अधिकांश किताबें इसी वाक्य से शुरू होती हैं.

हालांकि, यह भी हो सकता है कि अल-ख़्वारिज़मी ने परंपरा को ध्यान में रखते हुए यह लिखा हो. क्योंकि वह मुस्लिम ख़लीफ़ा को नाराज़ नहीं करना चाहते हों, जिनका उन्हें पूर्ण समर्थन प्राप्त था. इस किताब में, अल-ख़्वारिज़मी ने गणित के ऐसे अस्पष्ट नियमों को संयोजित किया, जिनके बारे में केवल कुछ ही लोग जानते थे.

इसके बाद उन्होंने इन नियमों का एक मसौदा तैयार किया, जिनके द्वारा विरासत, व्यापार और कृषि क्षेत्र से जुड़ी रोज़मर्रा की समस्याओं को हल किया जा सकता है.

अल-ख़्वारिज़मी के बाद आए मुस्लिम गणितज्ञों की सराहना करना भी ज़रूरी है, जिन्होंने उनके काम को प्रचारित किया और यूरोप पर उनके काम से पड़ने वाले प्रभाव के बाद इसकी प्रामाणिकता के सबूत भी दिए.

12 वीं सदी में उनकी किताब का लैटिन भाषा में दो बार अनुवाद किया गया था. एक बार ब्रिटेन के रॉबर्ट ओचेस्टर ने और एक बार इटली के जेरार्ड ऑफ क्रेमोना ने उनकी किताब का अनुवाद किया.

उनके काम के बारे में फैबनाची भी जानते थे, जो निस्संदेह मध्य पूर्व के सबसे महान गणितज्ञ थे. उन्होंने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘लेबर अबाची’ में भी अल-ख़्वारिज़मी के काम का हवाला दिया.

अल-ख़्वारिज़मी
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यहां हमें सावधान रहने की जरूरत है कि हम अल-ख़्वारिज़मी को गणित की एक शाखा का आविष्कार करने का श्रेय न दे बैठे.और वो भी केवल इसलिए कि आज हम इसके लिए जिस नाम का उपयोग करते हैं, ‘अलजेब्रा’, वह अल-ख़्वारिज़मी की किताब के नाम से अस्तित्व में आया.

उदाहरण के लिए, इस बात के प्रमाण हैं कि यूनानी और बेबीलोन के गणितज्ञ अल-ख़्वारिज़मी से बहुत पहले बीज गणित के समीकरणों को हल कर रहे थे. इसके अलावा, उनसे पहले महान यूनानी गणितज्ञ डायफेंट और हिंदू गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त भी इस पर काम कर चुके हैं. क्या इस विषय का शीर्षक उनकी किताबों से जोड़ कर नहीं रखा जा सकता था? मेरे अनुसार नहीं क्योंकि अल-ख्वारज़ी का मत था कि उनकी किताब एक मार्गदर्शिका थी जिसके अनुसार बीज गणित के ज़रिये से डाटा को बदला जा सकता था.

हालांकि, उनका उद्देश्य इससे बड़ा था. उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि उनकी किताब का उद्देश्य अर्थमेटिक्स में सबसे आसान और सबसे उपयोगी है कुछ चीज़ों को बताना था. जैसे कि पुरुषों को विरासत को बांटने की प्रक्रिया में न्यायिक प्रणाली के सामने व्यापार और संपत्ति को वितरित करने की ज़रुरत पड़ती है.

इसके अलावा उनके आपस के बीच लेन-देन, ज़मीनों की पैमाइश, नहरों की खुदाई, ज्यामितीय कंप्यूटिंग, और ऐसी दूसरी समस्याएं जिनमे गणित की ज़रूरत पड़ती है.

किताब अल-जबर को दो भागों में विभाजित किया गया है. एक सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी के रूप में, पहले भाग में मेरे लिए बहुत दिलचस्प सामग्री है. क्योंकि यहां अल-ख़्वारिज़्मी बीज गणित के नियमों को बनाते हैं. और प्रश्नों और विभिन्न समीकरणों को हल करने के लिए, विभिन्न एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं. हर एक इवेक्शन के साथ उनके उत्तर के सचित्र सबूत मौजूद हैं.

किताब का दूसरा भाग उनके तरीकों के उपयोग के बारे में है. जिसके द्वारा वे ऊपर लिखी दैनिक समस्याओं का हल ढूंढ़ते हैं. हालांकि, यह किताब आज बीज गणित पर मिलने वाली किताबों से बहुत अलग है. अपनी किताब के पन्नों को, प्रतीकों और समीकरणों के साथ भरने के बजाय, उन्होंने बहुत ही आम भाषा में ये सब कुछ लिखा है.

इससे ये ज़रूर हुआ कि जो बात बीज गणित के प्रतीकों के माध्यम से दो पंक्तियों में बताई जा सकती थी, उसे दो-पृष्ठों में स्पष्टीकरण के ज़रिये समझाई गई थी.

अगर मैं आपको यह बताऊं कि अल-ख़्वारिज़मी से बहुत पहले, डायफ़ैंट और हिंदू गणितज्ञ अपने समीकरणों को बुनियादी प्रतीकों के साथ समझा रहे थे लेकिन अल-ख़्वारिज़मी और उनका बीज गणित द्विघात समीकरणों से आगे नहीं बढ़ सका और डायफ़ेंट्स ने अधिक जटिल समस्याओं का हल तलाश किया अल-ख़्वारिज़मी के बीज गणित के प्रश्नों को हल करने के तरीक़े भी पुराने थे, जैसे कि ‘कप्लेटिंग द स्क्वॉयर’ को हल करने का तरीक़ा,तब उनके समर्थन में दिए जाने वाले तर्क कमज़ोर पड़ जाते हैं.

मैंने यह तर्क भी सुना है कि अल-ख़्वारिज़मी की लोकप्रियता की वजह यह है कि उनकी किताब की वजह से बीज गणित मशहूर हुआ. क्योंकि उन्होंने इसे इतना आसान कर दिया था कि बहुत से लोग इसका उपयोग कर सकते थे. हालांकि, यह एक कमज़ोर तर्क है.

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हम यह भी कह सकते हैं कि आज के दौर के मशहूर वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिंग्स के मशहूर होने का कारण उनकी किताब ‘ए ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ है, न कि कॉस्मोलॉजी में महत्वपूर्ण शोध और ब्लैक होल के बारे में उनका सिद्धांत.

इस सब के विपरीत, इस बहस में ये बाते महत्वपूर्ण नहीं है कि किसने प्रतीकों का इस्तेमाल किया, या क्या कोई ज्यामितीय साक्ष्य थे, ये समीकरण कितने जटिल थे और क्या उनका लेखन आम जनता तक पहुंचा या नहीं.

हालांकि, अल-ख्वारिज़्मी ने जो काम पहली बार किया और जिसकी वजह से वह अलग नज़र आते हैं. ज़ाहिरी तौर पर वह एक छोटी सी बात है, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण है. वह यह है कि,अल-ख़्वारिज़्मी विशिष्ट प्रश्नों को हल करने के बजाय, आम लोगों की समझ में आने वाले नियमों को सामने लाये हैं. जिनके द्वारा उन्हें हल किया जा सकता है,और इसी तरह चरणबद्ध तरीके से एल्गोरिदम के ज़रिये समीकरणों को हल कर सकते हैं.

इसी तरह अल-ख़्वारिज़मी ने यह सुनिश्चित किया कि बीज गणित को एक अलग विषय के रूप में देखा जा सकता है, न कि आंकड़ों को बदलने की एक तकनीक के रूप में.

यह वैसे ही है कि एक तरफ़ आप विशिष्ट उदाहरण देते हैं और पाठकों पर छोड़ देते हैं कि वो इस बारे में कोई निष्कर्ष निकाल लेगा.जबकि दूसरी तरफ अल-ख़्वारिज़मी ने इस चरण को आम भाषा में स्पष्ट कर दिया. बेशक वो बाद में इसे विशिष्ट संख्याओं के साथ समझाते हैं, लेकिन इसे हल करने के लिए जो तरीक़ा वो अपनाते हैं उसे सामान्य भाषा में समझा जाता है.

हालांकि अल-ख़्वारिज़मी ने प्रतीकों के बजाय शब्दों का उपयोग करते हुए बीज गणित को समझाया, जो डायाफैंट उनसे पहले कर चुके थे. लेकिन अल-ख़्वारिज़मी का बीज गणित आज उपयोग किए गए बीज गणित के बहुत करीब है.

अल-ख़्वारिज़मी की मृत्यु 858 में हुई, लेकिन उनका स्थान गणितज्ञ का है जिन्होंने अर्थमेटिक्स और ज्योमेट्री की उपस्थिति में गणित के उप विषय बीज गणित का परिचय कराया.

जॉर्ज सार्टन, विज्ञान की दुनिया के महान इतिहासकार, अपनी किताब जो कई खंडो में है, ‘द इंट्रोडक्शन टू साइंस’ के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं. इस किताब में, उन्होंने विज्ञान के इतिहास को कई भागों में विभाजित किया है. प्रत्येक भाग आधी सदी के इतिहास को कवर करता है. उस भाग का नाम उस दौर के सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है.

उसमें 800 से 850 ईस्वी तक के दौर का शीर्षक है ‘अल-ख़्वारिज़्मी का दौर.’

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