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झुंझुनू में स्थित कल्प वृक्ष


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झुंझुनू में स्थित कल्प वृक्ष

झुंझुनू में स्थित कल्प वृक्ष

झुंझुनू में स्थित कल्प वृक्ष : सेवा निवृत कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर डॉ आर बी गोड़ का महावीर इंटरनेशनल सनराइज सदस्यों के साथ बिबाणी उद्यान में वृक्षों के प्रति व्याख्यान, बहुत कम ही लोगों को ज्ञात होगा कि समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक पोराणिक महत्व का कल्प वृक्ष झुंझुनूं (राजस्थान) में भी है।

महावीर इंटरनेशनल सनराइज के संरक्षक डॉ. एस. एन. शुक्ला ने बताया कि वर्ष 2005 में श्री झाबरमल्ल पुजारी (सेवा निवृत्त बैंक मैनेजर) कल्प वृक्ष की पांच पौध बाहर से लेकर आये थे, जिन्हें झुंझुनूं के बीबाणीं मुक्ति धाम से सटे उद्यान में लगाया गया। आज चार पौधों ने विशाल वृक्ष का रुप ले लिया समुचित देखभाल से इस पर फल भी लगने लगें हैं।

वेद और पुराणों में कल्प वृक्ष का उल्लेख मिलता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक उर्जा होती है। इसे जीवन के चार पुरूषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष – की प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है। यह वृक्ष न केवल हिन्दू धर्म में बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी समान रूप से दिव्य और चमत्कारी माना गया है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक कल्प वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना “सुरकानन वन” (हिमालय के उत्तर में ) में कर दी थी।

भारत में कल्प वृक्ष की संख्या के बारे में अलग-अलग दावें है परन्तु दस्तावेजी प्रमाण के अनुसार उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के बोरोलिया स्थान पर कल्प वृक्ष की उम्र 5000 हजार साल से भी अधिक है। ग्वालियर के पास कोलारस में कल्प वृक्ष है जिसकी उम्र 2000 साल से अधिक बताई जाती है।

राजस्थान में अजमेर के पास नर -मादा के रूप में 800 साल पुराना कल्प वृक्ष है जहां हर वर्ष श्रावण बदी अमावस्या को विशाल धार्मिक मेला लगता है। इसी तरह जोधपुर जिले के बिलाड़ा शहर में भी कल्प वृक्ष है। किंवदंतियां के अनुसार इसे हजारों साल पहले असुर राजा बलि स्वर्ग से लाए थे। तब से यह पवित्र वृक्ष उसी स्थान पर स्थित है। बांसवाड़ा जिले के चाचाकोटा रोड पर भी करीब 300 साल पुराना कल्प वृक्ष है।

पुट्टपरथी के सत्य साईं बाबा के आश्रम, रांची, अल्मोड़ा, काशी, हरिद्वार, कर्नाटक में भी कल्प वृक्ष पाए गए हैं।
सेवा निवृत्त कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर (डॉ.) आर. बी. गौड़ ने बताया कि कल्प वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। भारत के अलावा यह यूरोप के फ्रांस व इटली, दक्षिण अफ्रीका और आस्ट्रेलिया के कई हिस्सों में पाया जाता है। यह वृक्ष लगभग 70 फुट ऊंचा होता है और इसके तने का व्यास 35 फुट तक हो सकता है। 150 फुट तक इसके तने का घेरा नापा गया है। इस वृक्ष का ओसत जीवन अवधि 2500-3000 साल है। कार्बन डेटिंग पद्धति से सबसे पुराने फर्स्ट टाइमर की उम्र 6000 साल आंकी गई है। इसके पत्ते कुछ कुछ आम के पत्तों की तरह 3-5-7 की संख्या में होतें है। इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी सी गेंद में निकले असंख्य रुपों की तरह होता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखता है। पीपल की तरह कम पानी में यह वृक्ष फलता फूलता है।

कल्प वृक्ष औषध गुणों से भी भरपूर है। इसमें विटामिन सी संतरे से 6 गुना ज्यादा और कैल्शियम गाय के दूध से दोगुना होता है। शरीर को जितने भी तरह के सप्लिमेंट्स की जरूरत होती है इसकी पांच पत्तियों से उसकी पूर्ति हो जाती है। इसकी पत्तियां उम्र बढ़ाने में सहायक मानी गई है क्योंकि इनमें भरपूर एंटी ऑक्सीडेंट पाये गये है। यह एलर्जी, दमा, मलेरिया और गुर्दे के रोगियों के लिए भी लाभदायक सिद्ध हुआ है। इसके बीजों के तेल में हाई डेंसिटी कोलेस्ट्रॉल होता है जो ह्रदय रोगियों के लिए लाभकारी है। डॉ. शुक्ला ने बताया कि यह हमारा अहोभाग्य है कि पौराणिक महत्व का कल्प वृक्ष दानवीरों की धरा झुंझुनूं में भी है। उन्होंने आशा जताई की आने वाले समय में झुंझुनूं के अन्य धार्मिक स्थलों की तरह यह कल्प वृक्ष भी पूज्यनीय होगा।

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