लाइफस्टाइल
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कविता : पिता की भावशून्यता
जंग लगा तंत्र, रद्दी गैंग के मंत्र या दो नेताओं के जंत्र हर किसी को चाह थी भर्ती रद्द की…
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कविता : हमारा साथी, हमारा भाई
साथी आज आसमा का थानेदार बन गया चाह थी कंधे पे सितारों की खुद आज दूर कहीं सितारा बन गया…
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कविता : भागती भीड़
क्या तुमने देखा है भागती भीड़ को भागते वह किस तरफ जाती है । क्या तुम्हें पता है,वो गुरूत्वाकर्षण की…
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गुटखा खाने वाली औरतें : जिन्हें लगता है यह भी है तरीका है नारीवादी होने की परम्परा निभाने का।
गुटखा खाने वाली औरतें जिन्हें लगता है यह भी है तरीका है नारीवादी होने की परम्परा निभाने का। वो थूक…
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कविता: मैं अखबार हूँ
सत्ता और जनता के बीच कभी तल्ख तकरार हूँ करा सकूँ वंचितों को न्याय की नदिया पार मैं ऐसी पतवार…
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तेरे नाम की ख़ामोशी
हर पल गुजरता रहा बस इक आस में, तेरी यादें नहीं, तू होता इस पल पास में, तेरे साथ बिताया…
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कविता : झूम-झूम के आया सावन
झूम-झूम के आया सावन मेघों नें मल्हार सुनाया, मंद मंद मुस्काया सावन! नाच उठा मन मोर मगन हो, झूम झूम…
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धर्म और सियासत
धर्म की सड़क पर सियासत का मेला है, इंसानियत बीच में खड़ी अकेली, हताश और बेसहारा है। नमाज़ छत पर…
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“एहसासों की स्याही”
ख़ुदा का शुक्रिया… तुझसे मिला तो मन में ख़याल आ गया, इंसान है या बवाल — ये सवाल आ गया।…
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पितृ दिवस : पिता एक छांव
पिता एक छांव की तरह है इर्दगिर्द मेरे नहीं लगने दी तपिश उन्होंने बनकर वटवृक्ष मेरे । सच्चाई, ईमानदारी और…
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