झालावाड़ : राजस्थान में पहली बार एडवांस टेक्नोलॉजी से 125 फीट ऊंचा बांध बनाया जा रहा है, जिसे इंजीनियर मोबाइल से ही ऑपरेट कर सकेंगे। इतना ही नहीं मोबाइल से कहीं पर भी बैठकर बांध के गेट भी खाेल सकेंगे।
राजस्थान में राणा प्रतापसागर डैम, माही और बीसलपुर के बाद चौथा सबसे बड़ा बांध परवन नदी पर बन रहा है। इसका 60 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। साल के अंत तक काम पूरा होने की बात कही जा रही है।
ये बांध तीन जिलों की प्यास बुझाएगा। बिजली बनाई जाएगी। दो लाख हेक्टेयर भूमि को फसलों के लिए पानी मिल सकेगा।
सात साल से बांध का काम चल रहा है। इस दौरान सबसे बड़ी मुसीबत बना MP से तूफानी रफ्तार से आया पानी, जिसकी वजह से क्रेशर प्लांट डूब गया। मशीनें खराब हो गईं। हालात ऐसे थे कि साल में सिर्फ 5-6 महीने ही काम हो पाता था।
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
झालावाड़ से 45 KM की दूरी पर परवन डैम
मध्यप्रदेश से परवन नदी राजस्थान में आ रही है। 2017 में झालावाड़ से 45 किलोमीटर दूर में अकावद कलां में परवन नदी पर डैम बनाने का काम शुरू हुआ था।
परवन डैम की भराव क्षमता करीब 490 मिलियन घन मीटर की होगी। करीब 25 किलोमीटर में इसका फैलाव क्षेत्र रहेगा। बांध की ऊंचाई करीब 125 फीट की होगी।
सरकार ने जब डैम बनाने की अनुमति दी थी, तब इसकी लागत 2498 करोड़ रुपए थी। बाद में किसानों के मुआवजे और पुनर्वास को जोड़ कर ये आंकड़ा 7355 करोड़ रुपए तक पहुंच गया।
केवल डैम की लागत कीमत 673 करोड़ रुपए की है। 325 करोड़ रुपए वनविभाग को दिए गए हैं। 3600 करोड़ रुपए लोगों को राहत पैकेज के लिए दिए गए। इसमें 29 गांवों की आबादी इफैक्ट होगी। जिन्हें मुआवजा देकर दूसरी जगहों पर शिफ्ट किया जा रहा है।
पहाड़ में भूकंप से 6 से 14 मीटर की दरार
एसई अजीत कुमार ने बताया कि प्रोजेक्ट को शुरू करने के साथ ही कई चुनौतियां भी सामने आई। डैम के फाउंडेशन के लिए काम शुरू करने लगे तो पता लगा कि पहाड़ में 6 से 14 मीटर की दरारें आई हुई है।
ये दरारें भूकंप की वजह से थी। बडे रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर चट्टानें खिसक जाती हैं। ऐसे में कई जगहों से सैंपल लिए गए थे।
ड्रिलिंग करके चट्टान के अंदर सरिए डाले गए। सैंपल के लिए बड़े-बड़े होल्स किए गए। सीमेंट व बजरी का मसाला इन होल्स में डाला गया। दरारों को आपस में जोड़ा गया।
डैम के फाउंडेशन का काम इन्हीं दरारों की वजह से रोका गया। क्योंकि सौ फीट गहराई तक सैंपल्स लिए गए थे। रिपोर्ट आने के बाद डेढ़ साल बाद काम शुरू किया गया था।
सबसे बड़ी चुनौती नदी का पानी रोककर काम करना
डैम पर काम कर रहे इंजीनियरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी नदी का पानी रोककर काम करना। डैम पर काम शुरू करने से पहले बड़े एनीकट बनाए गए।
एनीकट से पानी के बहाव को रोकने के बाद डैम का एक-एक फाउंडेशन बनाया गया। डैम में 15 गेट बनाए जा रहे हैं। सभी गेट के लिए फाउंडेशन बनाना बहुत जरूरी था।
टीम ने बताया कि बारिश के मौसम में परवन नदी परवान पर होती है। इसके अलावा बारिश के मौसम में ही एमपी के मोहनपुर डैम से करीब दो लाख क्यूसेक पानी छोड़ दिया जाता था।
इस पानी को रोकना बहुत मुश्किल होता था। लोगों के खेताें में पानी भर जाता था, फसलें बर्बाद हो जाती थीं। ऐसे में कई बार डैम के काम को रोकना पड़ता था।
2022 में इतना पानी आया कि क्रेशर प्लांट डूब गए
2022 में मोहनपुर डैम से इतना पानी छोड़ दिया गया था कि डैम पर काफी ऊंचाई पर बने क्रेशर प्लांट भी डूब गए थे। पास में मंदिर में भी पानी भर गया था।
डैम के लिए अमेरिका और चाइना से मंगाई गईं मशीनें पानी भरने से खराब हो गई थी। पास में बन रही वाटर टनल में भी पानी अंदर तक घुस गया था।
करीब दो महीने तक मशीनें और पूरा प्लांट पानी में डूबा रहा था। काम पूरी तरह से ठप पड़ गया था। ऐसे में जब नदी से पानी नीचे उतरा और बहाव कम हुआ तो मशीनों को ठीक कराया गया था। इसके लिए बाहर से इंजीनियर बुलाने पड़े।
टीम ने बताया कि हर मानसून सीजन में काम में परेशानियां आती हैं। इंजीनियरों को डैम पर काम करने के लिए 5 से 6 महीने का ही समय मिल पाता है।
बारिश खत्म होने के बाद भी परेशानियां खत्म नहीं होतीं। पानी उतरने के बाद काफी कीचड़ हो जाता है, जिसे साफ कराना पड़ता है।
बिजली बनाने, सिंचाई और पीने के लिए मिलेगा पानी
परवन पर डैम बनने के बाद पानी का बंटवारा किया जाएगा। डैम में 490 मिलियन घनमीटर पानी का भराव होगा। इसमें से 462 मिलीयन घन मीटर पानी का इस्तेमाल किया जाएगा।
50 मिलियन घन मीटर पानी पीने के लिए सप्लाई किया जाएगा। कोटा, बारां और झालावाड़ के 1821 गांवाें में ये पानी पाइपलाइन से पहुंचाया जाएगा।
इसके अलावा अडानी पावर और छबड़ा थर्मल के 2 संयंत्र बिजली बनाने के लिए लगे हुए है। दोनों संयंत्रों के लिए बिजली बनाने के लिए पानी डैम से भेजा जाएगा।
झालावाड़ में शेरगढ़ वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है। परवन डैम से ही सेंचुरी में जानवरों के लिए 16 मिलियन घन मीटर पानी पीने के लिए पहुंचाया जाएगा।
कोटा, बारां और झालावाड़ के 317 मिलियन घन मीटर पानी सिंचाई के लिए काम में लिया जाएगा। इसके लिए तीन जिलों के 637 गांवों को नहरों से जोड़ा जाएगा। करीब 2 लाख हेक्टेयर भूमि पर फसलों के लिए पानी दिया जाएगा।
डैम में हाईड्रोलिक सिलेंडर हालैंड से मंगाए
डैम में काफी एडवांस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। हाईड्रोलिक सिलेंडर हॉलैंड से मंगाए गए है। ये स्मार्ट कंट्रोल पर वर्किंग करते हैं। एक बार सेट करने के बाद काफी कम जगह लेते हैं। इनको ऑपरेट करने के लिए तीन ऑपरेशन पाइंट होंगे।
1. डैम को गेट के पास पहुंच कर हर डैम की तरह से मैन्यूली चलाया जा सकेगा।
2. डैम के लिए अलग से कंट्रोल रूम बनाया गया है। यहां से भी गेट और पूरे डैम को कंट्रोल कर सकेंगे।
3. कंट्रोल रूम को इंटरनेट से कनेक्ट किया गया है। इसी वजह से पूरी मॉनिटरिग मोबाइल से की जा सकेगी। मोबाइल ऐप से डैम की लाइव अपडेट देख सकेंगे। कहीं से भी कंट्रोल किया जा सकेगा।
डैम से पहली नहर 89 Km और दूसरी 54 KM जुडेंगी
डैम से वाटर टनल को कनेक्ट किया गया है। इसके साथ दो नहरों को भी जाइंट किया जा रहा है। पहली नहर 89 किलोमीटर लंबी होगी। जिसमें बारां, अटरू, छीपाबडौद, अंता के कई गांव और ढाणियां जुड़ी रहेगी।
दूसरी नहर 54 किलोमीटर लंबाई की होगी। इसमें झालावाड़ के खानपुर सहित अन्य गांव व कोटा के सांगोद से आगे तक जोड़ा जाएगा।
नहरों से पानी को वेस्ट होने से बचाने के लिए भी प्लान किया गया है। नहरों से एक डिग्गी को जोड़ा जाएगा। इनमें 80 सर्विस एरिया होंगे। एक सर्विस एरिया में 1000 से ज्यादा पाइंट रहेंगे। यहां से पानी को पाइपों के जरिए सीधे आगे खेतों तक ले जाया जा सकेगा।
55 मेगावाट सोलर प्लांट लगाकर बचाएंगे बिजली
किसान के खेतों तक पानी का पूरा प्रेशर देने के लिए आउटलेट बनाए जाएंगे। प्रेशर पंप लगे होंगे। जो सोलर से चलेंगे। 55 मेगावाट सोलर पावर सैट लगाने के लिए अभी जगह देखी जा रही है।
बिजली बचाने के लिए ही सोलर सेट लगाए जाएंगे। इनसे 80 पंप चलेंगे। इससे किसान सीधे आउटलेट से पाइप लगाकर फव्वारे से फसलों में पानी लगा सकेगा। किसानों को पानी के लिए कोई रुपए नहीं देने होंगे।
47 गांव डैम में हमेशा के लिए डूब जाएंगे
डैम का काम पूरा होेने के बाद परवन नदी के एनीकेट को तोड़ दिया जाएगा। पीछे से जो भी पानी आएगा वो डैम पर आकर रूक जाएगा। करीब 25 किलोमीटर के ढलान के एरिया में नदी का पानी फैल जाएगा।
ऐसे में डैम के आसपास 47 गांवों की 10 हजार हेक्टेयर जमीन पूरी तरह डूब जाएगी। यहां पर अभी किसान खेती कर रहे हैं, लेकिन पानी आने के कोई भी खेती नहीं कर सकेगा।
डैम से करीब 29 गांवों की आबादी प्रभावित होगी। उनके लिए 10 पुनर्वास कालोनी बनाई गई है। बारां, अटरू में 10 हजार प्लॉट्स की स्कीम बनाई गई है। यहां पर 2916 परिवारों को बसाने की प्लानिंग है।
इसके अलावा झालावाड़ सहित अन्य जगहों पर भी कालोनियां बनाई जा रही हैं। जहां पर 3879 परिवारों को बसाया जाएगा। पूरी प्लानिंग में 6795 परिवारों को प्लाॅट देकर सेटल किया जाएगा। अभी तक 5300 परिवारों को प्लॉट अलॉट कर चुके हैं।
डीएलसी के हिसाब से किसानों को रुपए दिए जा रहे हैं। विस्थापित परिवारों को 5.25 लाख रुपए दिए जा रहे हैं। किसी भी परिवार में अगर कोई संतान 18 साल से ऊपर है तो उसे भी रुपए दिए जाएंगे। अगर शादीशुदा है तो एक परिवार मानते हुए उसे प्लॉट भी अलग से दिया जा रहा है।
जैसे अगर किसी व्यक्ति के दो बेटे शादीशुदा हैं तो पिता के साथ दोनों बेटों को अलग से दो प्लॉट दिए जाएंगे। साथ ही उन्हें अलग से रुपए भी मिलेंगे। काॅलोनियों में अस्पताल, मंदिर से लेकर स्कूल भी बनवाए जा रहे हैं।
650 कर्मचारी कर रहे रात-दिन काम
डैम और नहरों के साथ टनल पर 650 से अधिक कर्मचारी रात-दिन काम कर रहे हैं। प्रोजेक्ट पर एक एसई के साथ एक्सईएन, 25 एईएन, 75 जेईएन लगे हुए है। डैम पर 300 कर्मचारी और नहर के प्रोजेक्ट पर 350 कर्मचारी काम कर रहे हैं।
डैम का काम HCC कंपनी देख रही है। वहीं पहली नहर का काम JBPR हैदराबाद और दूसरी नहर का काम JWYL दिल्ली कर रही है।
सीमेंट का मिक्चर प्लांट लगाया हुआ है, जिसमें सब कुछ कम्प्यूटर से तैयार होता है। टनल से निकलने वाले पत्थरों को पीस कर क्रेशर बनाया जाता है। सीमेंट से यहीं पर मिक्चर तैयार किया जाता है। रोड़ी व गिट्टी भी पत्थरों से बनाई जा रही है।
कंपनी के अधिकारियों का दावा है कि एक साल में डैम का काम पूरा कर लिया जाएगा।