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राजस्थान चुनाव 2023: अभी रानी के किले पर नहीं हुआ हमला, इसलिए चुप हैं वसुंधरा


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राजस्थान चुनाव 2023: अभी रानी के किले पर नहीं हुआ हमला, इसलिए चुप हैं वसुंधरा

वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार में मंत्री रहे राजपाल सिंह शेखावत को उनका बहुत करीबी नेता माना जाता है। वे जयपुर की झोटवाड़ा सीट से 2008 और 2013 में विधायक रह चुके हैं। पिछले चुनाव में वे कांग्रेस के लालचंद कटारिया से चुनाव हार गए थे। लेकिन बदली हवा में इस बार यहां से उनकी जीत पक्की मानी जा रही थी, लेकिन भाजपा ने उनका नाम काट दिया है...

राजस्थान चुनाव 2023 : भाजपा ने राजस्थान के लिए घोषित की गई 41 सीटों में से वसुंधरा राजे सिंधिया के करीबी नेताओं को किनारे लगा दिया है। राजपाल सिंह शेखावत और नरपत सिंह राजवी जैसे वसुंधरा के अनेक करीबियों पर भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की गाज गिरी है। पहली लिस्ट में एक भी चेहरा ऐसा शामिल नहीं है, जिसे वसुंधरा का खास आदमी कहा जा सके। अभी तक अटकलें लगाई जा रही थीं कि वसुंधरा करीबियों को टिकट न मिलने पर रानी का विद्रोह सामने आ सकता है। लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ नहीं हुआ है। वसुंधरा के कुछ समर्थकों ने अपना टिकट कटने पर विरोध जरूर जताया है, लेकिन स्वयं वसुंधरा ने इस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। क्या उन्हें किसी बात की प्रतीक्षा है,या महत्त्वाकांक्षी रानी ने समय की नजाकत को भांपते हुए केंद्रीय नेतृत्व के सामने हथियार डाल दिए हैं?

सबसे करीबी को नहीं मिला टिकट

वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार में मंत्री रहे राजपाल सिंह शेखावत को उनका बहुत करीबी नेता माना जाता है। वे जयपुर की झोटवाड़ा सीट से 2008 और 2013 में विधायक रह चुके हैं। पिछले चुनाव में वे कांग्रेस के लालचंद कटारिया से चुनाव हार गए थे। लेकिन बदली हवा में इस बार यहां से उनकी जीत पक्की मानी जा रही थी, लेकिन भाजपा ने उनका नाम काट दिया है। उनकी जगह राज्यवर्धन सिंह राठौर को चुनाव में उतारा गया है। उनका विरोध अवश्य हो रहा है, लेकिन राठौर का विरोध भी उस स्तर पर नहीं हो रहा है, जिसकी आशंका जताई जा रही थी।

सबसे चौंकाने वाला निर्णय, लेकिन विरोध नहीं

वसुंधरा राजे सिंधिया खेमे के माने जाने वाले नरपत सिंह राजवी इस समय जयपुर की विद्याधर नगर सीट से लगातार तीसरी बार विधायक हैं। वे पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत के दामाद भी हैं। इस सीट पर उनके प्रभाव के कारण इस पर उनका नाम लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन उनका टिकट कट गया है। उनके सीट पर सांसद दिया कुमारी को मैदान में उतार दिया गया है। अनुमान यही लगाया जा रहा था कि वसुंधरा के करीबी और शेखावत परिवार का सदस्य होने के कारण उनका टिकट कटने से विरोध हो सकता है। लेकिन भाजपा ने पहली लिस्ट में जिन सात सांसदों को टिकट थमाया है, उनमें दिया कुमारी ही एकमात्र सांसद हैं, जिनका अभी तक खुलकर विरोध नहीं हो रहा है।

क्या वसुंधरा तब भी चुप रह जाएंगी?

इसी प्रकार संदीप चौधरी जैसे कई वसुंधरा के करीबी हैं, जिन्हें फिलहाल अभी तक टिकट नहीं दिया गया है। यूनूस खान, अशोक परनामी, कालीचंद सर्राफ, प्रह्लाद गुंजल और कई अन्य करीबियों को अभी तक टिकट नहीं मिला है। यदि भाजपा की अगली सूची में भी वसुंधरा समर्थकों को टिकट नहीं मिला तो क्या वसुंधरा राजे सिंधिया तब भी चुप रह जाएंगी?

बगावत की थी आशंका

चर्चा है कि वसुंधरा ने अपने कम से कम 52 विशेष समर्थकों को चुनाव में जुटने का संदेश दे दिया है। यदि इन समर्थकों को भाजपा से टिकट मिलता है, तो वे पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन यदि उन्हें टिकट नहीं मिला, तो वे स्वतंत्र चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहें, ऐसा निर्देश उन्हें दे दिया गया है। यदि ऐसा होता है और वसुंधरा समर्थक उम्मीदवार पांच-दस हजार वोट भी काटते हैं तो इससे भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है।

‘अभी रानी के किले पर हमला नही हुआ’

राजस्थान की राजनीति के जानकार अजय राज शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि अभी से यह कहना सही नहीं होगा कि वसुंधरा राजे सिंधिया के करीबियों को पूरी तरह अलग कर दिया गया है। भाजपा ने पहली सूची में उन्हीं क्षेत्रों को शामिल किया है, जहां या तो भाजपा कभी नहीं जीतती थी, या जिन सीटों पर उसकी जीत हमेशा सुनिश्चित मानी जाती थी। लेकिन अभी वसंधरा राजे सिंधिया के मूल इलाके झालावाड़ और इसके आसपास के इलाकों की सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा नहीं हुई है। ऐसे में अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि वसुंधरा करीबियों को पूरी तरह किनारे लगा दिया गया है।

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