सुष्मिता सेन , नितेश राठौर , अंकुर भाटिया , कृतिका देव , ऐश्वर्या नारकर , विक्रम भाम और अनंत महादेवन आदि
लेखक
क्षितिज पटवर्धन
निर्देशक
रवि जाधव
निर्माता
अर्जुन सिंह बरन और कर्तक डी निशानदार
ओटीटी
जियो सिनेमा
रिलीज
15 अगस्त 2023
रेटिंग
2.5/5
वेब सीरीज ‘ताली’ की शुरुआत संत तुकाराम की मराठी उक्ति/कविता ”जे कां रंजले गांजले, त्यासि ह्मणे जो आपुले, तोचि साधु ओळखावा, देव तेथेचि जाणावा” से होती है। इसका हिंदी में भावार्थ है, ‘जो व्यक्ति निराश्रित और वंचितों की सेवा करता है वह भगवान से कम नहीं है’। इस पूरी सीरीज का सार देखा जाए तो इसी एक पंक्ति में छुपा है। ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट गौरी सावंत के जीवन की सच्ची घटना पर बनी है ये सीरीज। गौरी ने न सिर्फ ट्रांसजेंडर के उत्थान के लिए काम किया बल्कि ट्रांसजेंडर के हितों के लिए अदालती लड़ाई लड़ी और उन्हें समाज की मुख्य धारा से उन्हें जोड़ने का प्रेरक काम किया। गौरी सावंत को उनके समुदाय के लोग भगवान का दर्जा देते हैं। सुष्मिता सेन ने इस सीरीज में इन्हीं ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट गौरी सावंत का किरदार निभाया है।
ताली रिव्यू – फोटो
‘खुद को निहारु, खुद को सवारूं, सुध बुध खोयो जिया’ जैसे गीत से माहौल साधती ये कहानी वहां से शुरू होती है जहां क्लास में एक मासूम से बच्चे से पूछा जाता है कि वह बड़ा होकर क्या बनना चाहता है। वह कहता है कि मां बनना है। इस जवाब को सुनकर सभी बच्चे हंसते है और टीचर की डांट भी पड़ती है। फिर भी उसके मन में सवाल है कि मर्द कभी मां क्यों नहीं बन सकते? टीचर से जवाब मिलता है कि मर्द बच्चा पैदा नहीं कर सकते, इसलिए वह मां नहीं बन सकते। पांच -छह साल के बच्चे के मन में यह जवाब बैठ जाता है। और, इसका जवाब उसे बड़ा होने के बाद खुद से मिलता है। देवकी नहीं बन सकती तो क्या हुआ यशोदा ही सही, दोनों ही मां हैं। इसी भावना के साथ गौरी सावंत अपने समुदाय के हितों के लिए काम करती हैं।
ताली रिव्यू – फोटो
गौरी सावंत जब अपने समुदाय के लोगों को पढ़ा लिखाकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास करती है, तो उसे बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। गौरी सावंत कहती है कि यूएसए में किसी को भी ताली बजाकर कर भीख मांगते नहीं देखा। उसकी समुदाय के लोग कहते हैं कि यह तो सालों से चली आ रही हमारी परंपरा है। गौरी सावंत कहती है, ‘हमारी परंपरा में शिखंडी भी एक ऐसा राजा था जो बिल्कुल हमारी तरह से था। लेकिन वह लड़ा और जीता भी। हमें भी लड़ाई जीतनी है और हम अपनी लड़ाई तभी जीतेंगे जब हम शिक्षित होंगे। शिक्षित होंगे तो काम और इज्जत दोनों मिलेगी और कोई उल्लू नहीं बना सकेगा।’
ताली रिव्यू – फोटो
सीरीज ‘ताली’ के कुछ दृश्य बेहद मार्मिक हैं, मसलन गणेश बड़ा होकर गहन सर्जरी से गुजरकर ट्रांसजेंडर बनने का फैसला करता है। एक तरह हॉस्पिटल में सर्जरी चल रही है और, दूसरी तरफ उसके पिता उसका अंतिम संस्कार कर रहे हैं। जब सुप्रीम कोर्ट से ट्रांसजेंडर को समान अधिकार मिल जाता है और गौरी सावंत टीवी इंटरव्यू में कहती है, “तू मुश्किल दे दे भगवान, मैं आसान करूं, तू दे तपती रेत, मैं गुलिस्ता करूं, तू पहाड़ बना दे जितने, मैं उसमें सुरंग बनूं, तू लाख गिरा दे बिजली मुझ पर, मैं तो सतरंग बनूं।” यह सुनकर गौरी सावंत के पिता का सीना गर्व से फूल जाता है लेकिन सामाजिक भेदभाव के चलते उन्होंने गणेश (गौरी सावंत) को कभी भी अपने बेटे का दर्जा नहीं दिया। गौरी सावंत को इस बात का दर्द जीवन भर रहा। अपनी अलग पहचान बनाने के लिए गौरी सावंत को पहली लड़ाई अपने लोगों से ही लड़नी पड़ती है। और, इस किरदार में सुष्मिता सेन ने अपने अभिनय से प्राण फूंक दिए हैं। उनका एक एक भाव, एक एक संवाद देखने लायक है।
ताली रिव्यू – फोटो
वेब सीरीज ‘ताली’ का निर्देशन रवि जाधव ने किया है। उनकी बनाई मराठी फिल्म ‘बालगंधर्व’ को उन्हें तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला थे। इन दिनों वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी की बायोपिक ‘मैं अटल हूं’ का निर्देशन कर रहे हैं। रवि ने वेब सीरीज ‘ताली’ में ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्याओं और उनके उत्थान की बात को बहुत ही गहराई से पेश किया है। हालांकि, छह एपिसोड की इस सीरीज की दो से लेकर पांच एपिसोड की कहानी बहुत ही सुस्त है। पटकथा थोड़ी सी बिखरी हुई है। सीरीज को छह एपिसोड की बजाय अगर पांच एपिसोड में बनाया गया होता तो कहानी का फ्लो बना रहता।
ताली रिव्यू – फोटो
सुष्मिता सेन ने ट्रांसजेंडर गौरी सावंत की भूमिका को बहुत ही प्रभावी ढंग से निभाया है। वेब सीरीज की पूरी बागडोर उन्हीं के कंधों पर टिकी है और इस किरदार के साथ पूरी तरह से उन्होंने न्याय करने की कोशिश भी की है। सीरीज के बाकी कलाकारों में नितेश राठौर, अंकुर भाटिया, कृतिका देव, ऐश्वर्या नारकर, विक्रम भाम और अनंत महादेवन अपनी अपनी भूमिकाओं पर खरे उतरे हैं। सीरीज की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। खास करके टॉप एंगल से लिए गए शॉट्स तो बहुत ही खूबसूरत है। सीरीज का संपादन सुस्त है। बहुत सारे ऐसे दृश्य है कि उन्हें फास्ट फॉरवर्ड करने का मन करता है। ऐसे दृश्यों को एडिट करके सीरीज को और भी रोचक बनाया जा सकता था। सीरीज की पृष्ठभूमि चूंकि महाराष्ट्र है और इसका कलेवर भी पूरी तरह मराठी है लिहाजा उत्तर भारतीय दर्शको को इसमें अपने स्वादानुसार रस की कमी दिख सकती है।