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कारगिल दिवस पर विशेष : हमारे जवानों ने बर्फबारी के बीच तोप के गोलों का सामना कर फतेह किया ऑपरेशन


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कारगिल दिवस पर विशेष : हमारे जवानों ने बर्फबारी के बीच तोप के गोलों का सामना कर फतेह किया ऑपरेशन

कारगिल दिवस पर विशेष : हमारे जवानों ने बर्फबारी के बीच तोप के गोलों का सामना कर फतेह किया ऑपरेशन

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : जेपी महरानियां

गुढ़ागौड़जी : मझाऊ निवासी कैप्टन सीताराम धींवा ने बताया कि बिशनपुरा निवासी शीशराम गिल और मैं एक ही बटालियन में शामिल थे। वैसे तो टुकड़ी में काफी जवान थे। लेकिन झुंझुनूं जिले से हम दोनों ही थे। वो मेरे पीछे वाली टुकड़ी में और मैं आगे वाली में शामिल था। ऑपरेशन के दौरान भी दुश्मन की तरफ से गोले बरस रहे थे, जिसमें बिशनपुरा निवासी हवलदार शीशराम गिल,नायक आजाद सिंह रेवाड़ी, सिपाही बिचित्र व सिपाही नरेंद्र हिसार व हवलदार लक्ष्मण सिंह शहीद हो गए। साथी जवानों को नजरों के सामने शहीद होते देखा तो हमारा खून खोलने लगा। एक बार तो मैं स्तब्ध रह गया फिर आव देखा न ताव अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी। उन्होंने बताया कि करगिल युद्ध के दौरान वे नायक पद पर 8 जाट रेजीमेंट में थे। ऑपरेशन के दौरान 109 इन्फेंट्री ब्रिगेड में केन्जलवाल में 8 जाट ही नियुक्त थी। धींवा उस कमांडो प्लाटून के हिस्सेदार थे। स्नाइपर राइफल के बेस्ट शूटर होने के करगिल युद्ध में स्पेशल टास्क दिया गया। उस दौरान कमांडिंग ऑफिसर कर्नल आर सुरेश सीओ सेना का नेतृत्व कर रहे थे। एसएम सूबेदार फूलसिंह थे। तथा कमांडो प्लाटून का कमांडर मेजर बीएस मनकोटिया थे।

7 जुलाई 1999 को दुश्मनों की पोस्ट पर कब्जा करने का हमारी टीम को आदेश मिला। उस दिन वे दुश्मन की पोस्ट के नजदीक रातभर नाले में बर्फ के अंदर छिपे रहे। 8 जुलाई को दिन में पोस्ट की रैकी की तथा रात को मार्च किया। उनके सामने पाकिस्तानी 24 मुजाहिद बटालियन थी।

बेस्ट शूटर होने से करगिल युद्ध में स्पेशल टास्क दिया गया था
बर्फबारी के दौरान ही हमने दुश्मनों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी, जिससे दुश्मन पोस्ट छोड़कर भाग गए। इसके बाद सैनिक आगे बढ़ते गए तथा 17 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर पहुंच गए। दुश्मनों की बड़ी पोस्ट वहां से केवल 150 फीट दूरी पर ही थी। दुश्मनों ने भी फायरिंग शुरू कर दी गई। लेकिन हमारी टीम वहीं बर्फ की ओट में डटकर सामना करती रही। टीम ऊंचाई पर होने तथा दुश्मनों की फायरिंग के कारण हमारा हैडक्वार्टर से सम्पर्क टूट गया था। उस दौरान हमें 9 जुलाई से 14 जुलाई तक खाने के लिए कुछ नहीं मिला। उस दौरान उन्होंने केवल गर्म पानी पीकर ही गुजारा किया।

18 जुलाई को जंग तेज हो गई। उस दौरान दुश्मनों की ओर चढ़ाई करनी शुरू कर दी। पहले सेडल पोस्ट पर कब्जा किया तथा दुश्मन के ऑब्जर्वर को मार गिराया। वहां से आगे बढ़ते हुए शूटर धींवा ने दुश्मन के दो बंकरों को नष्ट किया। इसके बाद सैनिक आगे बढ़ते गए तथा दुश्मनों को मारकर उनकी पोस्ट पर कब्जा करते रहे। 25 जुलाई की रात को वीर सैनिकों ने त्रिशूल पहाड़ी पर पहुंचकर वहां मौजूद दुश्मनों को मार गिराया तथा पाकिस्तान की सभी पोस्ट पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद 26 जुलाई 1999 को उसी जगह जीत का तिरंगा फहराया गया। करगिल ऑपरेशन में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए थल सेना अध्यक्ष ने सैनिक धींवा का सम्मान किया। फरवरी 2013 को सीताराम कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए।

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