रोडवेज घोटाले में अब तक जांच शुरू नहीं:26 लाख से ज्यादा रुपए फंसे होने का मामला, चीफ मैनेजर ने किया था उजागर
रोडवेज घोटाले में अब तक जांच शुरू नहीं:26 लाख से ज्यादा रुपए फंसे होने का मामला, चीफ मैनेजर ने किया था उजागर
झुंझुनूं : राजस्थान रोडवेज के झुंझुनूं डिपो में करीब 26.50 लाख रुपए के फंसे हुए पैसे का मामला सामने आने के एक महीने बाद भी कोई जांच शुरू नहीं हो पाई है। नवलगढ़ डिपो की बुकिंग से जुड़ा यह गंभीर वित्तीय मामला खुद चीफ मैनेजर गिरिराज स्वामी ने उजागर किया था।
उनकी रिपोर्ट और मीडिया में खबर आने के बावजूद रोडवेज मुख्यालय की ओर से अब तक जांच कमेटी तक का गठन नहीं हुआ है, जिससे इस बात को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या एक और वित्तीय घोटाले को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।
क्या है पूरा मामला
पिछले पांच महीनों से नवलगढ़ डिपो में यात्रियों के टिकट का पैसा रोजाना बैंक में जमा होता रहा, लेकिन यह रकम झुंझुनूं डिपो से राजस्थान रोडवेज के मुख्यालय खाते में ट्रांसफर नहीं की गई। जब नए चीफ मैनेजर गिरिराज स्वामी ने पदभार संभाला और वित्तीय स्थिति की समीक्षा की, तब यह खुलासा हुआ कि लगभग 26.50 लाख रुपए अभी तक मुख्यालय के खाते में पहुंचे ही नहीं हैं।
दावा: हमने तो पैसे जमा करवाए
नवलगढ़ डिपो के बुकिंग क्लर्क निरंजन जांगिड़ और सुरेश फगेड़िया का कहना है कि उन्होंने रोजाना की टिकट बुकिंग के पैसे रोडवेज के अधिकृत खाते में समय पर जमा करवाए हैं। उनका दावा है कि आगे मुख्यालय खाते में रकम ट्रांसफर करना झुंझुनूं के फाइनेंस मैनेजर की जिम्मेदारी थी। गड़बड़ी की जानकारी मिलने पर उन्होंने तत्काल बैंक स्टेटमेंट चीफ मैनेजर को सौंप दिए थे।
चीफ मैनेजर ने खोली फाइल, मुख्यालय मौन
झुंझुनूं रोडवेज के चीफ मैनेजर गिरिराज स्वामी ने गहन जांच की। उन्होंने पूरे पांच महीने की लेनदेन रिपोर्ट निकलवाई और पाया कि रकम नवलगढ़ डिपो के बैंक अकाउंट में तो थी, लेकिन उसे आगे मुख्यालय के अकाउंट में ट्रांसफर नहीं किया गया। उन्होंने इस पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट बनाकर रोडवेज मुख्यालय को भेज दी थी। हालांकि, इस रिपोर्ट को भेजे हुए एक महीने से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन अब तक न तो कोई जांच शुरू हुई है और न ही किसी की जवाबदेही तय की गई है।
पुराने घोटाले के साए में नया मामला
यह गौरतलब है कि झुंझुनूं रोडवेज डिपो पहले भी 89 लाख रुपए के एक बड़े घोटाले के कारण सुर्खियों में रह चुका है। उस समय फाइनेंस मैनेजर चंद्रप्रकाश सहित 24 कर्मचारियों को निलंबित किया गया था। मौजूदा मामले में भी चंद्रप्रकाश की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इस अवधि में वित्तीय जिम्मेदारियां उन्हीं के पास थीं।
इससे पहले यह चार्ज जयकरण के पास था, जिन्होंने बाद में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। जयकरण के चार महीने के कार्यकाल में भी यही लापरवाही जारी रही, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह गड़बड़ी किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की सामूहिक चूक है।
जांच का एक महीना: न कमेटी बनी, न जवाब मिला
चीफ मैनेजर की ओर से भेजी गई फाइल पर मुख्यालय की ओर से आज तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। न तो कोई जांच कमेटी बनाई गई है और न ही संबंधित अधिकारियों या कर्मचारियों से पूछताछ हुई है। ऐसे में यह मामला भी पुराने घोटालों की तरह दफन हो जाने की कगार पर है।
हर महीने बैंक स्टेटमेंट निकाले जाते हैं, इसके बावजूद किसी भी अधिकारी ने पांच महीने तक यह नहीं देखा कि पैसे आगे ट्रांसफर नहीं हो रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि संभावित मिलीभगत हो सकती है, जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही है।