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“एहसासों की स्याही”


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लाइफस्टाइल

“एहसासों की स्याही”

ख़ुदा का शुक्रिया…

तुझसे मिला तो मन में ख़याल आ गया,
इंसान है या बवाल — ये सवाल आ गया।
मैं उम्र भर ख़ुदा का शुक्रगुज़ार रहूंगा,
उसके करम से बंदे में ये कमाल आ गया।
मुझे फिक्र तुम्हारी, तुम्हें दुनिया की लगी है,
तेरे होने से एहसास-ए-बेमिसाल आ गया।

दुनिया के ज्ञानी…

सुबह को देखिए ना, अब शाम देखिए,
क्या मुझसे है कोई काम? — अपना काम देखिए।
बनावटी तिलहासों की ज़रूरत नहीं,
जाने वाला गया अंजाम देखिए।

जुदाई…

दुनिया से मैं लड़ गया था तेरे वास्ते,
आज हो गए हैं अलग — तेरे-मेरे रास्ते।
ज़िंदगी का नाम हमने ‘मौत’ रख लिया,
ना मौत भी हमको आई ज़िंदगी के वास्ते।

पछतावा…

ये ज़िंदगी को हांकता कहार देखिए,
दोबारा जी उठने की अब बहार देखिए।
मैंने कहा था — दुश्मन कमज़ोर नहीं,
वो जीत गया, अब अपनी हार देखिए।
मैंने कहा था — दुनिया धोखेबाज़ है बहुत,
अब कारवां गुज़र गया — गुबार देखिए।

ख़ुद सही और दुनिया ग़लत…

दुनिया को कटघरे में रखना बंद कीजिए,
गिरते पर फिकरे कसना अब बंद कीजिए।
आईने में झांकना ज़रूरी है सनम,
ज़माने के तमाशे पर हँसना बंद कीजिए।

हौसला अफज़ाई…

एहसास-ए-कमतरी में रहना बंद कीजिए,
“मुझसे कुछ न होगा” — ये कहना बंद कीजिए।
परों से नाप डालिए इस आसमान को,
बुलंदी से ज़मीं ताकना अब बंद कीजिए।

कल की फिक्र न कर, जो होगा देखा जाएगा,
तू हाल को संभाल — सब लपेटा जाएगा।
बुज़ुर्गों की उम्मीद तेरे सर का ताज है,
आज ताज को संभाल — तेरा राज आएगा।

कुंवर पंकज सिंह, ढाणी बाढान, झुंझुनूं (राजस्थान)

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