अगस्त क्रांति दिवस: स्वतंत्रता का सशक्त शंखनाद भारत छोड़ो आंदोलन
अगस्त क्रांति दिवस: स्वतंत्रता का सशक्त शंखनाद भारत छोड़ो आंदोलन

लेखक – धर्मपाल गांधी
अगस्त महीना भारतीय इतिहास में क्रांति का महीना है। भारतीय इतिहास में आजादी की प्राप्ति और आजादी के लिए किए गए आंदोलनों का संबंध अगस्त माह से है। महात्मा गांधी ने आजादी के लिए प्रथम देशव्यापी आंदोलन 1 अगस्त 1920 को शुरू किया था, जिसे इतिहास में ‘असहयोग आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। आजादी के लिए महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया अंतिम आंदोलन 8 व 9 अगस्त 1942 को शुरू किया गया था, जिसे इतिहास में अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है। भारत को आजादी भी 15 अगस्त 1947 को मिली थी। इस तरह से अगस्त माह क्रांति दिवस और आजादी का जश्न मनाने का महीना है। 8 अगस्त, 1942 को बॉम्बे में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान, ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की मांग करते हुए ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया गया। गांधीजी का स्पष्ट आह्वान, “करो या मरो,” पूरे देश में गूंज उठा, जिसमें भारतीयों से औपनिवेशिक अधिकारियों के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध में शामिल होने का आग्रह किया गया। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ 1942 में आजादी के लिए किया गया ऐतिहासिक और निर्णायक आंदोलन था। महात्मा गांधी ने अपने जीवनकाल में 50 वर्षों से भी ज्यादा समय तक अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया और दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारत तक अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया। महात्मा गांधी ने अपने जीवन में और आजादी की लड़ाई में कहीं भी हिंसा का प्रयोग नहीं किया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र करने की मांग की लेकिन ब्रिटिश हुकूमत भारत को स्वतंत्रता देने के पक्ष में नहीं थी। इसलिये 73 वर्ष की उम्र में महात्मा गांधी ने आजादी के लिए अंतिम लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया। जुलाई 1942 में महात्मा गांधी ने कांग्रेस नेताओं से इस संबंध में चर्चा की और आजादी के लिए एक बड़ा आंदोलन करने की बात कही। कांग्रेस नेताओं ने आपस में विचार-विमर्श के बाद महात्मा गांधी को आंदोलन नहीं करने की सलाह दी।
गाँधीजी ने कांग्रेस को चुनौती देते हुए कहा कि ‘मै देश की बालू से ही कांग्रेस से बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दूंगा।’ कांग्रेस के नेताओं को महात्मा गांधी ने अपने दम पर आंदोलन करने का निर्णय सुनाया। इसके बाद वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक (14 जुलाई 1942) में ब्रिटिश सरकार से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया । इस मसौदे में यह प्रस्ताव था कि अगर ब्रिटिश सरकार ने मांगें नहीं मानीं तो बड़े पैमाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन किया जायेगा। हालांकि, यह पार्टी के भीतर विवादास्पद साबित हुआ। कांग्रेस के एक प्रमुख राष्ट्रीय नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इस निर्णय के कारण कांग्रेस छोड़ दी, और कुछ स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर के आयोजकों ने भी ऐसा ही किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू और मौलाना आज़ाद इस आह्वान से आशंकित और आलोचक थे, लेकिन उन्होंने इसका समर्थन किया और अंत तक गांधीजी के नेतृत्व में बने रहे। सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, बाबू जगजीवन राम और अनुग्रह नारायण सिन्हा ने खुले तौर पर और उत्साहपूर्वक इस तरह के अवज्ञा आंदोलन का समर्थन किया। जयप्रकाश नारायण, अशोक मेहता, युसूफ मेहर अली, अच्युत पटवर्धन आदि समाजवादी नेताओं ने खुलकर इस आंदोलन का समर्थन किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी विदेश में रहते हुए भारत छोड़ो आंदोलन का समर्थन किया। आंदोलन की रूपरेखा इस तरह से तैयार की गई, 7 अगस्त 1942 की शाम को बॉम्बे में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक हुई और इस बैठक में ये तय हुआ कि अगले रोज बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) में अंग्रेजों से सत्ता हासिल करने की मुहिम में एक विशाल जनसभा होगी। अगले दिन शाम को इसी मैदान में महात्मा गांधी ने चर्चित भाषण दिया था। 8 अगस्त 1942 को बम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया। महात्मा गांधी के आह्वान पर ‘करो या मरो’ के नारे के साथ ऐतिहासिक आंदोलन का आगाज़ हुआ। 8 अगस्त 1942 को बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में स्वतंत्रता सेनानियों के भाषण देने का सिलसिला शाम 6 बजे से शुरू हुआ और ये रात 10 बजे तक चलता रहा। इस दिन कुल चार लोगों ने भाषण दिया था और ये भाषण इतिहास में दर्ज हो गया।
सबसे पहला भाषण कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने दिया, इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस की कार्यसमिति के प्रस्ताव को पढ़ा। इसके बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने भाषण दिया और नेहरू के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी। चौथे वक्ता के रूप में महात्मा गांधी ने जनसभा को संबोधित किया। महात्मा गांधी ने इस अधिवेशन में कुल तीन भाषण दिए थे। इनमें से एक भाषण अंग्रेज़ी में था जिसमें उन्होंने ‘क्विट इंडिया’ का ऐतिहासिक नारा दिया। ‘क्विट इंडिया’ नारे का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया और इसे हिंदी में ‘भारत छोड़ो’ कहा गया, मराठी में इसे ‘चले जाओ’ कहा गया। स्वतंत्रता सेनानी यूसुफ़ मेहर अली ने ‘क्विट इंडिया’ का सुझाव दिया और महात्मा गांधी ने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया। इससे पहले जब साइमन आयोग के ख़िलाफ़ आंदोलन हुआ था, तब यूसुफ़ मेहर अली ने ही ‘साइमन गो बैक’ का नारा दिया था। उस दौर में यूसुफ़ महर अली कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे, वो कांग्रेस के समाजवादी विचारधारा वाले नेताओं में प्रमुख नेता थे। वो बम्बई शहर के मेयर भी थे, जहां इस ऐतिहासिक आंदोलन की घोषणा हुई थी।
‘भारत छोड़ों’ नारे ने समूचे भारत में लोगों को प्रभावित किया और वो अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ अंतिम लड़ाई में कूद पड़े। महात्मा गांधी आज़ादी की इस अंतिम लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार थे। दूसरी तरफ़ भारतीय भी अभूतपूर्व संख्या में इस आंदोलन के साथ जुड़ रहे थे। आंदोलन की तीव्रता को देखते हुए ब्रितानी सरकार ने आंदोलन के नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेना शुरू कर दिया। 9 अगस्त को सुबह गोवालिया टैंक मैदान में झंडा फहराकर क्रांति का आगाज करना था, लेकिन दिन निकलने से पहले मैदान में भाषण देने वाले चारों नेताओं महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद और सरदार पटेल को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया। महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद कस्तूरबा गांधी ने तिरंगा फहराकर भाषण देने की जिम्मेदारी उठाई; लेकिन उन्हें भी मंच पर पहुंचने से पहले गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद अरुणा आसफ अली ने 9 अगस्त 1942 को तिरंगा फहराकर क्रांति का आगाज किया और आजादी का अंतिम निर्णायक ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू हुआ। भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज होते ही कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और साथ ही देश में आपातकाल जैसी स्थिति बनाकर प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कई जगहों पर कर्फ्यू लगाया गया व शांतिपूर्ण प्रदर्शनों और हड़तालों पर भी रोक लगा दी गई। महात्मा गांधी ने पहले ही आशंका जाहिर कर दी थी की अंग्रेजी हुकूमत आंदोलन शुरू होते ही हमें गिरफ्तार करेगी। लेकिन उन्होंने देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा था कि अबकी बार किसी भी कीमत पर आंदोलन रुकना नहीं चाहिए।
अगर कांग्रेस के नेताओं को ब्रिटिश हुकूमत जेल में डालती है तो जनता स्वयं आंदोलन का नेतृत्व करें। जब तक आजादी नहीं मिल जाती आंदोलन रूकना नहीं चाहिए। 1942 के आंदोलन में महात्मा गांधी का अलग ही रूप देखने को मिला। वृद्धावस्था में 25 वर्ष के नौजवानों वाला जोश और आजादी प्राप्त करने का जुनून महात्मा गांधी के जोशीले भाषणों में देखने को मिला। करो या मरो के नारे के साथ महात्मा गांधी ने कहा- अबकी बार हम किसी भी कीमत पर आजादी हासिल करके रहेंगे। या तो हम आजादी हासिल करेंगे या फिर आजादी की राह में अपनी जान कुर्बान कर देंगे। अब हम गुलामी का बोझ ढोने के लिए जिंदा नहीं रहेंगे। महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में सभी वर्गों के लोगों ने सभी प्रकार की जाति, पंथ, या धर्म से ऊपर उठकर एवं एकजुट होकर एक उद्देश्य के लिए काम किया। यह एक पुनर्जागरण था। यह लोगों की विभिन्न पीढ़ियों का संघर्ष और बलिदान था, जिसके परिणामस्वरुप स्वतंत्रता प्राप्त हुई और राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हजारों लोग शहीद हो गये और लाखों लोगों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। कमला देवी चट्टोपाध्याय, कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू, मीरा बेन, डॉ. सुशीला नायर, राजकुमारी अमृत कौर आदि अन्य क्रांतिकारी महिलाओं ने भी इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया था। भूमिगत आंदोलन के नेतृत्व में अच्युत राव पटवर्धन, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, उषा मेहता, दलजीत सिंह और नाना पाटिल जैसे नाम शामिल थे। वर्तमान परिदृश्य में केंद्र सरकार आजादी के अमृत महोत्सव के पोस्टर पर जिन नेताओं के चित्र अंकित कर रखे हैं, उनमें से कई नेताओं ने आजादी के आंदोलन में भाग नहीं लिया। हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर और डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी, मोहम्मद अली जिन्ना और उनकी पार्टी मुस्लिम लीग, डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनकी पार्टी, आरएसएस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने आजादी की अंतिम लड़ाई ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग नहीं लिया। उन्होंने इस आंदोलन का बहिष्कार किया था। मुस्लिम लीग के नेता तथा संघ और हिंदू महासभा के नेता गांधीजी और कांग्रेस पार्टी की आलोचना करके राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहे थे। कांग्रेस नेतृत्व तीन साल से ज़्यादा समय तक बाकी दुनिया से कटा रहा।
गांधीजी की पत्नी कस्तूरबा गांधी और उनके निजी सचिव महादेव देसाई की जेल में रहते हुए कुछ ही महीनों में मृत्यु हो गई और गांधीजी का स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा था, इसके बावजूद गांधीजी ने 21 दिन का उपवास रखा और निरंतर प्रतिरोध के अपने संकल्प को बनाए रखा। हालाँकि 1944 में अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को उनके स्वास्थ्य के कारण रिहा कर दिया, लेकिन उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व की रिहाई की मांग करते हुए प्रतिरोध जारी रखा। 1945 में, जब द्वितीय विश्व युद्ध लगभग समाप्त हो गया था, यूनाइटेड किंगडम की लेबर पार्टी ने भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने के वादे के साथ चुनाव जीता। जेल में बंद राजनीतिक कैदियों को 1945 में रिहा कर दिया गया। 1946 में ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को आजाद करने की घोषणा की। जिसके परिणामस्वरूप संविधान सभा का गठन और पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन किया गया। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया। अगस्त क्रांति दिवस पर आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करता है। लेखक – धर्मपाल गांधी