[pj-news-ticker post_cat="breaking-news"]

6 साल की कथावाचक की ‘नानी बाई रो मायरो’ कथाः रथ पर बैठाकर निकाली गई कलश यात्रा, शहर वासियों ने की जगह-जगह फूलों की बारिश


निष्पक्ष निर्भीक निरंतर
  • Download App from
  • google-playstore
  • apple-playstore
  • jm-qr-code
X
टॉप न्यूज़फतेहपुरराजस्थानराज्यसीकर

6 साल की कथावाचक की ‘नानी बाई रो मायरो’ कथाः रथ पर बैठाकर निकाली गई कलश यात्रा, शहर वासियों ने की जगह-जगह फूलों की बारिश

6 साल की कथावाचक की 'नानी बाई रो मायरो' कथाः रथ पर बैठाकर निकाली गई कलश यात्रा, शहर वासियों ने की जगह-जगह फूलों की बारिश

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : राज वर्मा

फतेहपुर : जब आप किसी UKG क्लास में पढ़ने वाले बच्चे से मिलते हैं, तो आपकी उस बच्चे से क्या बात होगी। यही कि, आपका नाम क्या है, आप किस स्कूल में पढ़ते हो? आपको कोई कविता याद है, लेकिन आज हम ऐसी बच्ची के बारे में बात करने जा रहे हैं जो महज 6 साल की उम्र में ही हजारों लोगों को ‘नानी बाई रो मायरो’ कथा सुना रही है।

कथा का आयोजन गुरुवार से सीकर जिले के फतेहपुर में शुरू हुआ। जहां पहली बार इस बच्ची ने कथा सुनाई। आयोजन की तैयारियां कई दिनों से की जा रही थी।

कथा में लोगों की उत्सुकता केवल कथावाचक को लेकर थी कि कैसे इतनी छोटी बच्ची कथा सुनाएगी, लेकिन जब बच्ची ने नरसी मेहता की भाव भरी भक्ति और श्रीकृष्ण के प्रेम को अपनी मासूम सी आवाज में सुनाना शुरू किया तो वहां मौजूद हर कोई जैसे सुनना भूल गया और बस एकटक देखता ही रह गया।

कथा वाचक कृष्णा व्यास को सुनने के लिए पंडाल खचाखच भर गया।
कथा वाचक कृष्णा व्यास को सुनने के लिए पंडाल खचाखच भर गया।

जिस उम्र में बच्चे सही तरह से बोलना, पढ़ना और समझना नहीं जानते, उस उम्र में वह ‘नानी बाई रो मायरो’ कथा बिना पढ़े ऐसे सुना और समझा रही है जैसे न जाने कितने सालों से कथा कर रही हो। सैकड़ों लोगों के सामने न घबराई, न झिझक रही। बल्कि उन्हें अपने भजनों और मार्मिक कथा से ऐसा बांधा कि हर कोई बस भाव-विभोर हो गया। कथा के पहले दिन पहुंचे श्रद्धालुओं ने कहा उन्हे ऐसा आनंद पहले कभी नहीं आया।

कृष्णा किशोरी व्यास के भजनों पर डांस करती बुजुर्ग महिला।
कृष्णा किशोरी व्यास के भजनों पर डांस करती बुजुर्ग महिला।

चार साल की उम्र से ही कथा समझने लगीं

कृष्णा किशोरी व्यास के परिवार में पिता महेश व्यास, मां विजय श्री, दादी अनुसुइया, तीन बड़ी बहनें और एक भाई है। फतेहपुर के वार्ड 25 में छोटा सा घर है।

पिता महेश व्यास बताते हैं कि कृष्णा जब महज चार साल की थी तब से ही भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उन्हें भक्ति भाव आने लगा। जब भी वह भगवान श्रीकृष्ण और राधा की फोटो देखती तो कहती थी कि ये मेरे मामा और मामी हैं। एक बार परिवार का वृंदावन जाना हुआ तबसे वह यही मानती है कि वह वहां अपने मामा-मामी के घर जाकर आई है।

कृष्णा किशोरी व्यास ने भास्कर को बताया कि उन्होंने 4 साल की उम्र में कथा सुनना और याद करना शुरू कर दिया।
कृष्णा किशोरी व्यास ने हमारे मीडिया कर्मी को बताया कि उन्होंने 4 साल की उम्र में कथा सुनना और याद करना शुरू कर दिया।

गुरुवार को फतेहपुर में पहली कथा के बाद हमारे मीडिया कर्मी ने कृष्णा किशोरी व्यास से बात की। इतनी छोटी उम्र के बावजूद बच्ची ने इतने विस्तार से अपने बारे में बताया-

सवाल: इतनी कम उम्र में कथा करने का विचार कैसे आया?

जवाब: भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी से मैं प्यार करती हूं। वो मेरे मामा-मामी हैं। उनकी कथा करना मुझे अच्छा लगता है और भगवान की कथा करने का कोई उम्र नहीं होता।

सवाल: आपको कथा करने की कहां से प्रेरणा मिली और आपका आइडियल कौन हैं।

जवाब: दादा स्व. बनवारी लाल व्यास भी नानी बाई रो मायरो कथा वाचन करते थे। मैंने मेरे दादा जी की रिकॉर्डेड कैसेट्स सुने। मुझे ये कथा बहुत अच्छी लगी। मैंने उन कैसेट्स को सुन कर ही पूरी कथा याद कर ली। मैं एक अच्छी कथावाचक बनूं ये मेरे पिता जी का भी सपना है।

सवाल: क्या परिवार वालों ने मना नहीं किया? पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए नहीं कहते?

जवाब: नहीं, मेरे पिता महेश व्यास जी कहते हैं कि पढ़ाई जरूरी है। इसके साथ-साथ भगवान की भक्ति भी जरूरी है। मेरे पिता मुझे हमेशा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के बारे में बताते हैं। भगवान कृष्ण और राधा रानी के बारे में मैंने अपने पिता जी से काफी चीजें जानी हैं।

सवाल: नानी बाई रो मायरो की कथा के अलावा और क्या-क्या आता है?

जवाब: मुझे कथा के साथ राधा-कृष्ण के भजन, शिव-पार्वती के भजन और दूसरे धार्मिक भजन भी आते हैं। मैं नई-नई चीजें सीखती हूं।

कथा वाचक कृष्णा किशोरी कथा से मिली चढ़ावे को मंदिर में चढ़ाती हैं।
कथा वाचक कृष्णा किशोरी कथा से मिली चढ़ावे को मंदिर में चढ़ाती हैं।

लोग बोले- पूरी जिंदगी याद रहेगी ये कथा

कथा सुनने आए गिरधारीलाल चोटिया ने कहा कि ये छोटी सी बच्ची जिस तरह से कथा पढ़ रही है, यह देश की बड़ी कथा वाचक बनेंगी। लोगों ने कहा कि आज के समय में जहां बच्चे सोशल मीडिया और मोबाइल में गेम खेलने में अपना समय बीता रहे हैं, वहां एक नन्ही बच्ची अपने अभिभावकों के मार्गदर्शन में बहुत अच्छा काम कर रही है। कथा सुनने आईं मीना जांगिड़ ने कहा कि कृष्णा किशोरी की सुनाई ये कथा हमें जिंदगी भर याद रहेगी।

कथामंडली के माउथ ऑर्गन प्लेयर मोहम्मद जमील ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि, 25 साल से मैं ऑर्गन बजा रहा हूं। बड़े से बड़े कलाकारों और भजन गायकों के साथ मैंने काम किया है, लेकिन इस बच्ची में सबसे अलग हुनर है। सुर और साज की अच्छी समझ है। इसके भजन को इतने सुरीले हैं कि हमारी मंडली भी हैरान है। आज बच्ची का मायरा देखकर लगा कि, ये चमत्कार से कम नहीं है।

कृष्णा ने घर में सुनाई थी सबसे पहली कथा

चार साल की उम्र में ही कृष्णा किशोरी श्रीकृष्ण की भक्ति करने लगी थीं। कथा सीखने के बाद वह घर में ही कुर्सी पर बैठकर घर वालों को कथा सुनाने लगती। भजन गाती। उसकी कथा सुनकर परिवार वाले भी आश्चर्यचकित रहने लगे। पहले तो उन्होंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर धीरे-धीरे आस पड़ोस के लोग भी कृष्णा कुमारी से कथा सुनने लगे।

इसके बाद तय हुआ कि फतेहपुर में ही पूरे शहरवासियों के लिए कथा का आयोजन किया जाए, जिसमें कृष्णा कुमारी कथा करेंगी। करीब एक महीने से शहरवासी इसकी तैयारी कर रहे थे। अब 9 मई को शुरू हुई कथा 11 मई तक चलेगी।

सवेरे पांच बजे उठती है, लहसुन-प्याज नहीं खाती

कृष्णा किशोरी कि दिनचर्या भी बाकी बच्चों से अलग है। वह रोजाना सवेरे 5 बजे उठ जाती है। नहाकर पूजा करती है और भगवान सूर्य को जल अर्पित करती है। सवेरे 8 बजे स्कूल जाती है। दोपहर एक बजे स्कूल से लौटकर होमवर्क करती है और फिर 2 घंटे रेस्ट करती है। शाम को कुछ देर खेलती है और फिर पढ़ाई करती है। इसके बाद कुछ देर धार्मिक पुस्तकें पढ़ती है। रात को दस बजे सो जाती है। अपने खाने में वह लहसुन और प्याज का उपयोग नहीं करती।

कृष्णा किशोरी को उनके बड़े ताऊ प्रदीप व्यास हारमोनियम सिखाते हुए।
कृष्णा किशोरी को उनके बड़े ताऊ प्रदीप व्यास हारमोनियम सिखाते हुए।

क्या है नानी बाई रो मायरा कथा?
‘नानी बाई का मायरा’ राजस्‍थान में प्रचलित लोककथा है। जो कि भक्त नरसी की भगवान कृष्ण की भक्ति पर आधारित है। इसमें बताया गया कि कृष्ण जी ने अपने सच्चे भक्त नरसी मेहता की मायरो भरने में कैसे मदद की थी। बता दें कि, ‘मायरो’ यानी भात (तोहफे) जो कि मामा या नाना की ओर से कन्या को उसकी शादी में दिया जाता है।

Related Articles