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शिक्षा ही मुसलमानों का भविष्य बनाएगी


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आर्टिकल

शिक्षा ही मुसलमानों का भविष्य बनाएगी

51 मुस्लिम स्टूडेंट का यूपीएससी में चयन कई तरीके से देखा जा रहा है। मुसलमान इस समय सबके निशाने पर हैं और समस्या यह है कि उसे संभालने वाला दिशा देने वाला कोई नहीं है

शकील अख्तर, लेखक वरिष्ठ पत्रकार

यूपीएससी उम्मीदवारों में जब 51 मुस्लिम लड़के और लड़कियों के नाम आए तो यह बड़ी खबर क्यों बनी। यूपीएससी में लगातार मुस्लिम उम्मीदवारों का चयन कम होता जा रहा था। और जब थोड़ी सी इसमें वृद्धि हुई तो बहुत ही शत्रुतापूर्ण मानसिकता के साथ इसे आईएएस जिहाद कहा गया। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था। एक टीवी चैनल ने गलत आंकड़ों पर आंकड़े देकर बताया था कि सरकार ने मुसलमानों को फायदा पहुंचाया। यहां तक झूठ कहा गया कि मुसलमानों को आयु में छूट है। उन्हें ज्यादा बार परीक्षा देने दी जा रही है। उनके कट आफ मार्क्स कम हैं। और यहां तक कि मुसलमानों के लिए फ्री कोचिंग सेंटर है। यह सारे आरोप झूठे थे। और झूठे साबित हुए। मगर उद्देश्य तो माहौल बनाना था। हिन्दु-मुसलमान करना था। और यह किया गया। 2020 में 42 मुस्लिम उम्मीदवार चुने गए थे। यह संख्या कोई ज्यादा नहीं थी। कुल चयनित लोगों में से 5 प्रतिशत से कम। मगर 2018 में केवल 28 ही चुनकर आए थे। तो इसे अचानक बढ़ी हुई बता दिया गया। जबकि इस बीच 2017 में 52 और 2016 में 55 थी। मगर वह आंकड़े न बताकर सीधे 2018 के 28 और 2020 में 42 क्यों कैसे के टीवी पर प्रोग्राम पर प्रोग्राम दिखाना शुरू कर दिए। सारे कारण गलत बताए गए थे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। आईपीएस एसोसिएशन ने इसे सांप्रदायिक और गैरजिम्मेदाराना पत्रकारिता कहा।

खैर वह तो सारे आरोप कहानियां झूठे थे। मगर यहां एक बात फ्री कोचिंग की। इस फ्री कोचिंग ने इस बार भी 31 उम्मीदवारों को यूपीएससी क्लियर करवाया है। मगर इसमें हिन्दू-मुसलमान दोनों हैं। हर साल यही होता है। यह है जामिया मीलिया इस्लामिया में। रेजिडेंशल कोचिंग अकादमी ( आरसीए)। अभी तक 300 से ज्यादा स्टूडेंट यहां रहकर तैयारी करके यूपीएससी क्लीयर कर चुके हैं। हर धर्म के, हर जाति के।

मुसलमान की लड़ाई थोड़ी मुश्किल है। कुछ अपने कारणों से कुछ सांप्रदायिक राजनीति के कारण से। 2014 के बाद से उन्हें दूसरे दर्जे का नागिरक बनाने की कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। अब तो उदाहरण देने की भी जरूरत नहीं। इतनी लंबी लिस्ट होगी कि किताब बन जाए। प्रमुख में यही कहा जा सकता है कि जब प्रधानमंत्री श्मशान और कब्रिस्तान की तुलना करें। होली, दीवाली और रमजान में फर्क बताएं। मंदिर के नाम पर वोट मांगे जाएं। और मोदी योगी का नाम लेकर ट्रेन में ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाला मुसलमानों की हत्या करे और दूसरी तरफ लोकसभा के भाजपा उम्मीदवार पूर्व केन्द्रीय मंत्री भी महेश शर्मा भी मोदी योगी का नाम लेकर सबको बाप की गाली दे तो समझ सकते हैं कि हालत कितनी खराब कर दी गई है।

लेकिन उसका फैसला चुनाव करेगा जो चल रहा है कि जनता क्या चाहती है। जनता जाहिर है कि जिसमें बहुसंख्यक हिन्दू हैं ज्यादा परेशान हैं। उनके युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही। मिल तो मुसलमान युवा को भी नहीं रही। मगर नौकरी में उसका प्रतिशत पहले से ही बहुत कम था।

लेकिन अपनी तरक्की की जिम्मेदारी खुद मुस्लिम समुदाय पर भी है। जैसा की शुरू में लिखा कि यूपीएससी में 51 मुस्लिम स्टूडेंट अपनी मेहनत और लगन से आए हैं। साथ में परिवार का सपोर्ट था। उसी को आगे बढ़ना होगा।

शिक्षा, शिक्षा और आधुनिक शिक्षा ही एकमात्र रास्ता है। अभी जामिया का जिक्र किया। उससे बहुत पहले 1875 में 150 साल पहले सर सैयद ने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज की स्थापना की थी। वही बाद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बना। अब उस पर भी सवाल है। और खुद केन्द्र सरकार द्वारा।

उसका माइनरटी दर्जा खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मामला है। जबकि अल्पसंख्यकों के लिए माइनरटी शिक्षा संस्थान की व्यवस्था संवैधानिक है। तो यह समय मुसलमानों के लिए बहुत निराशाजनक है। लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि वे खुद ऐसा नहीं मानते। इस बारे में जब भी किसी आम मुसलमान से बात होती है वह कहता है नहीं बुरा समय तो हमारे हिन्दू भाईयों के लिए ज्यादा है। उनके बच्चों को नौकरी नहीं मिल रही। ओवर एज हो रहे हैं। अस्पताल, स्कूल जो सरकारी थे वह खतम हो गए। महंगाई तो देखो आसमान छू रही है। हम तो कर रहे हैं मेहनत मजदूरी। हो रही गुजर। मगर हिन्दू भाई की परेशानी देखकर दु:ख होता है।

अच्छी सोच है। निराशा मुसलमान के स्वभाव में नहीं है। मगर उसे अब अपने बच्चों की शिक्षा पर पूरा ध्यान लगाना चाहिए। समस्या यही है कि उसका धार्मिक नेतृत्व उसे इस बारे में बिल्कुल ही जागृत नहीं करता है। मदरसा तालीम मार्डन एजुकेशन का विकल्प नहीं है। और उन्हें याद रखना चाहिए कि सर सैयद ने एएमयू बनाते समय केवल एजुकेशन की बात नहीं की थी। मार्डन एजुकेशन की बात कही थी। आज एएमयू, जामिया अगर निशाने पर हैं तो इसीलिए कि इन्होंने मुसलमानों की शिक्षा में अहम रोल निभाया।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

निराशा मुसलमान के स्वभाव में नहीं है। मगर उसे अब अपने बच्चों की शिक्षा पर पूरा ध्यान लगाना चाहिए। समस्या यही है कि उसका धार्मिक नेतृत्व उसे इस बारे में बिल्कुल ही जागृत नहीं करता है। मदरसा तालीम मार्डन एजुकेशन का विकल्प नहीं है। और उन्हें याद रखना चाहिए कि सर सैयद ने एएमयू बनाते समय केवल एजुकेशन की बात नहीं की थी।

~~~शकील अख्तर, लेखक वरिष्ठ पत्रकार

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