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बीजेपी के मिशन-25 में 10 लोकसभा सीटें चुनौती:कांग्रेस के टिकट वितरण के बाद बदले समीकरण और गठबंधन की संभावनाओं से मुकाबला हुआ रोचक


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बीजेपी के मिशन-25 में 10 लोकसभा सीटें चुनौती:कांग्रेस के टिकट वितरण के बाद बदले समीकरण और गठबंधन की संभावनाओं से मुकाबला हुआ रोचक

बीजेपी के मिशन-25 में 10 लोकसभा सीटें चुनौती:कांग्रेस के टिकट वितरण के बाद बदले समीकरण और गठबंधन की संभावनाओं से मुकाबला हुआ रोचक

जयपुर : पिछले 2 लोकसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा ने सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन, इस बार बीजेपी के लिए मिशन-25 की राह आसान दिखाई नहीं दे रही है। कांग्रेस के टिकट वितरण के बाद नए सियासी समीकरण और वागड़, मारवाड़ में गठबंधन की संभावनाओं के चलते बीजेपी को करीब 10 लोकसभा सीटों पर चुनौती मिलती हुई दिखाई दे रही है।

लोकसभा चुनावों के लिए अभी तक बीजेपी ने 15 और कांग्रेस ने 10 प्रत्याशियों की घोषणा की है। इसमें से 8 सीटों पर दोनों पार्टियों ने प्रत्याशी उतार दिए हैं। जो सियासी समीकरण इन सीटों पर बन रहे हैं, उसने मुकाबले को रोचक बना दिया है।

बीजेपी के लिए मिशन-25 की राह में चूरू, झुंझुनूं, टोंक-सवाई माधोपुर, डूंगरपुर-बांसवाड़ा, उदयपुर, जालोर-सिरोही, नागौर, दौसा, भरतपुर और करौली-धौलपुर सीट चुनौती बन सकती है।

बीजेपी छोड़कर आए राहुल कस्वां को कांग्रेस ने चूरू लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। यहां से भाजपा ने पैरालिंपियन देवेंद्र झाझड़िया को टिकट दिया है।
बीजेपी छोड़कर आए राहुल कस्वां को कांग्रेस ने चूरू लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। यहां से भाजपा ने पैरालिंपियन देवेंद्र झाझड़िया को टिकट दिया है।

कांग्रेस के टिकट वितरण के बाद बने सियासी समीकरण
बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए राहुल कस्वां को चूरू लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। राहुल कस्वां लगातार 2 बार से चूरू से चुनाव जीत रहे हैं, लेकिन इस बार बीजेपी ने उनका टिकट काटकर पैरांलिपिक गोल्ड मेडल विनर देवेंद्र झाझड़िया को उम्मीदवार बनाया है।

कांग्रेस ने चूरू से राहुल कस्वां को टिकट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। राहुल कस्वां के पास इस सीट पर राजनीतिक विरासत है। उनके पिता रामसिंह कस्वां भी इसी सीट से सांसद रह चुके हैं। उनकी मां भी चूरू से चुनाव लड़ चुकी हैं। राहुल कस्वां ने अपना टिकट कटने की वजह स्थानीय नेताओं की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को बताया था। ऐसे में उन्हें भावनात्मक रूप से भी यहां से फायदा मिलता दिख रहा है।

इसी तरह से कांग्रेस ने झुंझुनूं सीट से पूर्व मंत्री और विधायक बृजेंद्र ओला को उतारा है। बृजेंद्र ओला की भी इस सीट पर राजनीतिक विरासत चली आ रही है। उनके पिता शीशराम ओला इसी सीट से चुनाव जीतते थे और केंद्रीय मंत्री भी रहे थे। बृजेंद्र ओला खुद झुंझुनूं से लगातार विधायक का चुनाव जीत रहे हैं। बीजेपी ने अभी तक यहां से प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। वहीं, शेखावाटी में विधानसभा चुनाव-2023 में भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था।

कांग्रेस ने भरतपुर से संजना जाटव को प्रत्याशी बनाया है। पार्टी ने विधानसभा चुनाव में संजना को कठूमर सीट से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा।
कांग्रेस ने भरतपुर से संजना जाटव को प्रत्याशी बनाया है। पार्टी ने विधानसभा चुनाव में संजना को कठूमर सीट से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा।

टोंक-सवाई माधोपुर में बीजेपी को दोहरी चुनौती
टोंक-सवाईमाधोपुर सीट को गुर्जर-मीणा बहुल सीट माना जाता है। यहां से हमेशा इन्हीं समुदाय के सांसद रहे हैं। इस बार कांग्रेस ने यहां से विधायक हरीश मीणा को प्रत्याशी बनाया है। हरीश मीणा साल 2014 में बीजेपी के टिकट पर दौसा से चुनाव लड़कर पहली बार सांसद बने थे। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

कांग्रेस ने उन्हें जातीय समीकरण के लिहाज से प्रत्याशी बनाया है। हरीश मीणा पायलट गुट से माने जाते हैं। ऐसे में चुनाव में गुर्जर समाज का झुकाव भी उनकी तरफ रह सकता है। अब यहां से बीजेपी गुर्जर समाज से प्रत्याशी बनाती है तो मीणा वोटों के एकजुट होने का खतरा है। वहीं, मीणा समाज से प्रत्याशी उतारती है तो गुर्जर समाज के वोटों का पायलट के प्रभाव में ध्रुवीकरण होने का खतरा है।

इसी तरह के जातीय समीकरण दौसा और भरतपुर लोकसभा सीट पर भी बन रहे हैं। दौसा लोकसभा सीट पर दोनों ही पार्टियों ने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। वहीं, भरतपुर से बीजेपी ने रामस्वरूप कोली और कांग्रेस ने संजना जाटव को प्रत्याशी बनाया है।

नागौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस और आरएलपी के बीच गठबंधन की संभावनाएं बन रही हैं।
नागौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस और आरएलपी के बीच गठबंधन की संभावनाएं बन रही हैं।

कांग्रेस के क्षेत्रीय दलों से गठबंधन होने पर बढ़ेगी चुनौती
लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस प्रदेश में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी), भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) और कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के साथ गठबंधन कर सकती है। यही वजह है कि जिन सीटों पर गठबंधन की संभावनाएं हैं, वहां कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है।

कांग्रेस की नागौर में आरएलपी, डूंगरपुर-बांसवाड़ा में बीएपी और श्रीगंगानगर में सीपीएम से गठबंधन की संभावनाएं बन रही हैं। अगर ये गठबंधन होते हैं तो बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है।

पिछले लोकसभा चुनाव में नागौर सीट बीजेपी ने आरएलपी से गठबंधन के चलते छोड़ दी थी। यहां आरएलपी के हनुमान बेनीवाल और कांग्रेस की ज्योति मिर्धा के बीच मुकाबला हुआ था। इसमें हनुमान बेनीवाल ने जीत दर्ज की थी। इस बार ज्योति मिर्धा बीजेपी से चुनावी मैदान में हैं, ऐसे में कांग्रेस का आरएलपी से गठबंधन होता है तो फिर से हनुमान और ज्योति आमने-सामने हो सकते हैं।

इसी तरह से डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट से बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर शामिल हुए महेंद्रजीत सिंह मालवीय को टिकट दिया है। इस सीट पर अगर कांग्रेस और बीएपी के बीच समझौता होता है तो इस सीट के साथ-साथ उदयपुर सीट पर भी बीजेपी को कड़ी चुनौती मिल सकती है।

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 11 लोकसभा सीटों पर थी आगे
2023 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर देखें तो प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस करौली-धौलपुर, टोंक-सवाई माधोपुर, सीकर, झुंझुनूं, चूरू सहित 11 सीटों पर आगे थी। जबकि बीजेपी 14 सीटों पर आगे थी।

साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम पर नजर डालें तो उस समय लोकसभा सीटों के हिसाब से कांग्रेस को 12 सीटों पर बढ़त मिली थी, लेकिन 2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 25 की 25 लोकसभा सीटें हार गई थी।

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