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Clara Zetkin: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की नींव रखने वाली महिला, हिटलर भी खाता था खौफ


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Clara Zetkin: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की नींव रखने वाली महिला, हिटलर भी खाता था खौफ

Clara Zetkin International Women's Day : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की नींव रखने वाली क्लारा जेटकिन जर्मनी की रहने वाली थीं। उन्होंने महिलाओं के लिए समान अवसर और वेतन की मांग उठाई थी। क्लारा की आवाज में इतना दम था कि जर्मनी का तानाशाह एडोल्फ हिटलर भी उनसे कांपता था। इस रिपोर्ट में पढ़िए क्लारा जेटकिन का सफर।

Clara Zetkin International Women’s Day : आज यानी 8 मार्च को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिवस को अंतरराष्ट्रीय दर्जा किसने दिलाया था? यह काम किया था जर्मनी की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट एक्टिविस्ट और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली क्लारा जेटकिन ने। क्लारा जेटकिन ने महिलाओं के लिए तो क्रांति की ही उनका खुद का जीवन भी कम क्रांतिकारी नहीं रहा। इस रिपोर्ट में जानिए क्लारा जेटकिन कौन थीं और कैसे जर्मनी का तानाशाह हिटलर भी उनसे खौफ खाता था।

क्लारा का असली नाम क्लारा जोसेफीन आइसनर था। उनका जन्म 5 जुलाई 1857 को जर्मनी के सैक्सोनी किंगडम के एक गांव में हुआ था। उनके पिता गॉटफ्रीड आइसनर एक स्कूलमास्टर थे और मां जोसेफीन विटाली काफी पढ़ी-लिखी थीं। 1872 में उनका परिवार लीपजिग चला गया था। यहां क्लारा सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी (एसडीपी) से जुड़ी थीं। यह एसडीपी की शुरुआत का समय था। साल 1882 में ऑटो वॉन बिस्मर्क ने जर्मनी में सोशलिस्ट गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके बाद 1882 में क्लारा ज्यूरिख फिर पेरिस में निर्वासन के लिए चली गई थीं।

18 साल छोटे शख्स के साथ दूसरी शादी

इस दौरान उन्होंने पत्रकारिता और अनुवादक की पढ़ाई की। पेरिस में रहने के दौरान उन्होंने सोशलिस्ट इंटरनेशनल ग्रुप की स्थापना करने में अहम भूमिका निभाई थी। वह मार्क्सवादी विचारधारा वाले रूसी-यहूदी ओसिप जेटकिन से प्यार करती थीं। बाद में उन्होंने ओसिप का सरनेम अपना लिया था। ओसिप के साथ क्लारा के 2 बच्चे भी थे। साल 1889 में ओसिप गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे और उसी साल जून में उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद क्लारा स्टटगर्ट चली गई थीं। साल 1899 में उन्होंने एक आर्टिस्ट जॉर्ज फ्रेडरिक जुंडेल से दूसरी शादी की थी जो उनसे 18 साल छोटे थे।

महिलाओं के अखबार की एडिटर बनीं

ओसिप से परिचय होने के बाद क्लारा के राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई थी। कुछ सोशलिस्ट बैठकों में शामिल होने के बाद ही क्लारा इससे काफी प्रभावित हुई थीं। 1880 के आसपास जर्मनी के राजनीतिक माहौल के चटलते वह पहले स्विट्जरलैंड और फिर फ्रांस चली गई थीं। करीब एक दशक बाद जर्मनी लौटने के बाद वह सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जर्मनी के महिलाओं के लिए प्रकाशित होने वाले अखबार की एडिटर बन गई थीं। इस पद पर 25 साल तक रही थीं। उन्होंने साल 1874 में महिलाओं के आंदोलन और श्रमिकों के आंदोलन के साथ संपर्क बनाना शुरू किया था।

महिलाओं के अधिकारों के लिए की लड़ाई

साल 1878 में वह सोशलिस्ट वर्कर्स पार्टी के साथ जुड़ीं जिसका गठन साल 1875 में दो पुरानी पार्टियों को मिलाकर किया गया था। साल 1890 में इसका नाम बदल कर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जर्मनी यानी एसपीडी कर दिया गया था। क्लारा को महिलाओं की राजनीति समेत उनके लिए समान अवसरों के लिए लड़ाई में बहुत रुचि थी। उन्होंने जर्मनी में सोशल-डेमोक्रेटिक वूमेंस मूवमेंट की नींव रखने में मदद की थी। साल 1907 में उन्हें एसपीडी में बनाए गए नए वूमेंस ऑफिस का लीडर नियुक्त किया गया था। इस भूमिका में रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण काम किए थे।

महिला दिवस को दिलाया अंतरराष्ट्रीय दर्जा

अगस्त 1910 में डेनमार्क के कोपनहेगन में एक अंतरराष्ट्रीय महिला कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ था। इसमें क्लारा जेटकिन ने भी हिस्सा लिया था। उन्होंने कुछ अन्य नेताओं के साथ मिलकर प्रस्ताव दिया था कि हर साल महिलाओं के लिए एक विशेष दिन का आयोजन होना चाहिए। हालांकि, उस कॉन्फ्रेंस में इसके लिए कोई तारीख तय नहीं की गई थी। 17 देशों की 100 महिला प्रतिनिधियों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। इसके बाद 19 मार्च 1911 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था। इसे ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड के लाखों लोगों ने मनाया था।

जर्मनी की संसद में बोला हिटलर पर हमला

जर्मनी की संसद में अगस्त 1932 में क्लारा ने 40 मिनट का भाषण दिया था। इस दौरान उन्होंने हिटलर और नाजी पार्टी पर हमला बोला था। उन्होंने फासीवादी ताकतों के खिलाफ श्रमिकों से एकजुट होने की अपील की थी। बताया जाता है कि हिटलर को क्लारा जेटकिन से खतरा महसूस होता था। इसी डर के चलते सारल 1933 में उसने कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस वजह से उन्हें फिर निर्वासित होना पड़ा था। उसी साल 76 साल की उम्र में उनका मॉस्को में निधन हो गया था। आज के महिला आंदोलनों में भी क्लारा और उनके विचार बहुत अहम माने जाते हैं।

 

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