सबसे बड़ी घंटी कैसे बनी इंजीनियर की मौत का कारण?:हादसे से पहले का वीडियो, फ्रेम उठाते ही बैलेंस बिगड़ा, पहले एंगल टूटी और फिर बेल्ट
सबसे बड़ी घंटी कैसे बनी इंजीनियर की मौत का कारण?:हादसे से पहले का वीडियो, फ्रेम उठाते ही बैलेंस बिगड़ा, पहले एंगल टूटी और फिर बेल्ट
कोटा : दुनिया की सबसे बड़ी घंटी बनाने वाले इंजीनियर की उसी घंटी को बाहर निकालते समय हुए हादसे ने जान ले ली। इंजीनियर देवेंद्र आर्य और उनके सहयोगी उस भारी-भरकम घंटी को रिवर फ्रंट पर लगाने के लिए फ्रेम से बाहर निकाल रहे थे। तभी लोहे का एक फ्रेम टूटा और हादसे में दोनों की दर्दनाक मौत हो गई। 79 हजार किलो वजनी इस घंटी के लिए आर्य की देखरेख में 35 भट्टियों में पीतल को गलाकर ढाला गया था। इसे चंबल रिवर फ्रंट पर लगाया जाना था। उससे पहले ही एक चूक भारी पड़ गई। यह हैरान कर देने वाला हादसा कैसे हुआ, हमारी मीडिया टीम ने ग्राउंड रिपोर्ट की तो हमारे सामने तीन बड़ी लापरवाहियां सामने आईं।
पढ़िए- स्पेशल रिपोर्ट में…
देवेंद्र ने ही तैयार की थी दुनिया की सबसे बड़ी घंटी
इंजीनियर देवेंद्र की देखरेख में 30 फीट ऊंची और 28 फीट चौड़ी घंटी को तैयार एक सांचे में ढाला गया था। इस घंटी को रिवर फ्रंट पर बने एक पिलर पर टांगा जाना था। दावा किया जाता है कि घंटी जब बजेगी तो इसकी गूंज 8 किलोमीटर दूर तक सुनाई देगी। इसे सांचे में ढालने के बाद पूरी संरचना को लोहे के बने 26 फ्रेम (आयताकार एवं षट्कोणीय) को एक के ऊपर एक रखकर कवर किया गया था। धातु को गलाने के समय इसमें ऐसे केमिकल का इस्तेमाल हुआ था कि फ्रेम के अंदर भरी मिट्टी एकदम कठोर हो गई थी।
घंटी पूरी तरह बनकर तैयार थी बस इसे बाहर निकालना बाकी था। लेकिन दिक्कत ये आ रही थी कि लोहे के फ्रेम मिट्टी के साथ जम गए थे। हट नहीं रहे थे। कोटा निगम अधिकारी ने कई एक्सपर्ट को बुलाया, लेकिन उनसे भी ये काम नहीं हुआ। ऐसे में देवेंद्र आर्य को ही वापस बुलाया गया।
इस घटना से कुछ सेकेंड पहले का एक वीडियो सामने आया है जिससे पूरा हादसा स्पष्ट हो रहा है….
देवेंद्र आर्य ने रविवार को इसे खोलने के लिए हाइड्रा क्रेन मंगवाई। सबसे पहले घंटी के बाहर लगे 26 फ्रेम को एक-एक कर हटाया जाने लगा। इसके लिए हर फ्रेम की वेल्डिंग काटकर उसे हाइड्रा क्रेन के पट्टों (बेल्ट) से चारों दिशाओं से बांधकर खींचा जा रहा था। ऊपर के 3 फ्रेम आसानी से हट गए थे। चौथा फ्रेम हटाने की तैयारी चल रही थी। लेकिन ये फ्रेम घंटी के अंदर कठोर हुई मिट्टी के साथ चिपका हुआ था।
फ्रेम को अलग करने के लिए उसे चार कोनों से क्रेन की बेल्ट के साथ बांधा गया। जब इसे ऊपर खींचने का प्रयास किया तो तीन साइड से तो फ्रेम ऊपर उठ गया लेकिन एक साइड से अटका रहा। तभी इंजीनियर देवेंद्र ने क्रेन संचालक को और फोर्स लगाने को कहा, इससे लोहे का फ्रेम एक साइड से टूट गया।
यहां इंजीनियर ने इशारा किया जिसके बाद क्रेन ऑपरेटर ने उसे डाउन किया और फिर एक झटके से खींचने का प्रयास किया। तभी लिफ्टिंग बेल्ट एक साइड से और टूट गई। यह टूटते ही वीडियो बना रहे युवक घबरा गए और वीडियो बंद कर दिया। बेल्ट टूटने के कुछ ही देर बाद इसे वापस उठाने की कोशिश करते हुए लोड अनबैलेंस होने की वजह से एंगल टेढ़ा हो गया और रामकेश उसके नीचे दब गया। वहीं, देवेन्द्र आर्य नीचे गिर गए।
दावा करते थे- मेरे अलावा दुनिया का कोई इंजीनियर नहीं खोल सकता।
इस प्रोजेक्ट के कास्टिंग इंजीनियर देवेंद्र आर्य कहते थे कि इसे जब तक मैं नहीं चाहूंगा तब तक कोई नहीं खोल सकता। हुआ भी यही, जब 17 अगस्त को घंटी की कास्टिंग पूरी हो गई, उसके बाद श्रेय लेने और इसे जल्दी खोलने को लेकर आर्किटेक्ट अनूप और इंजीनियर देवेन्द्र के बीच विवाद हुआ और देवेंद्र इस प्रोजेक्ट से हट गए थे।
यूआईटी ने तमाम कोशिश की, लेकिन इस सांचे को नहीं खोल सके। देवेन्द्र आर्य बताते थे कि इसमें धातुओं के साथ केमिकल डाला हुआ है। इस सांचे को ग्रीन सिलिका सैंड के जरिए बनाया गया था। जमने के बाद सैंड बिल्कुल पत्थर जैसी हो गई और इसे कोई नहीं खोल सका।
पहली चूक : लिफ्टिंग में नहीं किया डी शेफल का उपयोग
गर्डर (फ्रेम) को उठाने के दौरान लिफ्टिंग बेल्ट कैसे टूट गई, हादसा क्यों हो गया, क्या लिफ्टिंग बेल्ट कमजोर थी या कोई और तकनीकी खामी थी, इस बात को जानने के लिए हमने उस वक्त हाइड्रा क्रेन ऑपरेटर करण से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं हो सकी। ऐसे में क्रेन सर्विस देने वाली कंपनी के संचालक हमजा कुरैशी से बात की। उन्होंने बताया कि रिवर फ्रंट पर भी रविवार को क्रेन मंगवाई गई थी। हमने क्रेन भेज दी।
लॉकिंग सिस्टम (किसी भी वस्तु को उठाने के लिए बांधने या जोड़ने की प्रक्रिया) का काम हमारा नहीं था। वह देवेन्द्र आर्य और उनकी ही टीम का था। लेबर भी उनकी ही थी। हमारी क्रेन 150 टन का वजन उठाने में सक्षम है। जबकि फ्रेम का वजन तो एक टन के करीब ही है। लिफ्टिंग बेल्ट कैसे टूटी इस सवाल पर हमजा ने कहा कि अलग-अलग वजन के हिसाब से लिफ्टिंग बेल्ट के साथ एक अन्य उपकरण डी-शेफल (लोड-लिफ्टिंग डिवाइस) लगाया जाता है।
क्या होता है डी शेफल
फिजिक्स के सिद्धांत पर काम करने वाला यह उपकरण चारों कोनों के दबाव को बराबर बनाए रखता है। इसका काम दो बिंदुओं के बीच एक मजबूत और टिकाऊ कनेक्शन प्रदान करना है। यह डिवाइस रस्सी या बेल्ट को खिसकने की जगह नहीं देता।
कोटा के एक सिविल कांट्रेक्टर योगेश ने अनुसार लिफ्ट बेल्ट टूटने का कोई भी कारण हो सकता है कम वजन वाली बेल्ट का उपयोग या फिर पुराना हो या हुक से लेकर ऑब्जेक्ट यानी की गर्डर तक लगने वाला प्रेशर एक समान न रहा हो।
किसी पॉइंट पर ज्यादा प्रेशर लगा हो यह भी कारण हो सकता है। वीडियो में भी नजर आ रहा है कि तीन तरफ से तो फ्रेम उठ गया था। लेकिन एक कोने पर नहीं उठा, उसे उठाने के दौरान उस पॉइंट के सबसे पास बंधी लिफ्टिंग बेल्ट पर ज्यादा प्रेशर रहा होगा, यह भी वजह हो सकती है टूटने की।
दूसरी चूक : जल्दबाजी पड़ी भारी
मॉल्ड बॉक्स के फ्रेम हटाने के लिए पहले केमिकल का रिएक्शन करवाना था जिसके बारे में सिर्फ देवेन्द्र ही जानते थे। वह कोटा आए और रिएक्शन करवाया जिसके बाद गर्डर हटाने का काम शुरू हो सका।
उन्होंने तीन गर्डर हटा भी दिए थे। गर्डर को एक दूसरे पर रखकर वेल्डिंग कर जोड़ा गया था। रविवार को इन फ्रेम की वेल्डिंग काटकर ही अलग किया जा रहा था फिर उसे और इसके बाद लिफ्टिंग कर मॉल्ड बॉक्स से निकाला जा रहा था।
ऊपर से 4 और 5 नंबर के फ्रेम के बीच ग्रीन सिलिका सैंड जमी थी। प्रेशर से ऊपर खींचने की वजह से एंगल टूटा। फर्स्ट साइड में कॉर्नर पर आखिरी समय तक गर्डर ऊपर इसलिए ही नहीं उठाया जा सका क्योंकि उस कॉर्नर पर फ्रेम एक दूसरे से ग्रीन सैंड सिलिका की वजह से चिपके हुए थे।
देवेन्द्र खुद बताते थे कि केमिकल रिएक्शन करवाने के बाद भी फ्रेम को अलग अलग निकालने में काफी समय लगता है क्योंकि सैंड को कमजोर होने में समय लगता है। लेकिन जल्दबाजी में यह समय नहीं दिया गया।
तीसरी चूक : परिवार वालों का आरोप- जल्दबाजी और दबाव के चलते हादसा
घटना को लेकर देवेन्द्र आर्य के बेटे ने यूआईटी अधिकारियों पर मंत्री धारीवाल के नाम पर प्रेशर बनाने का आरोप लगाया था। मामले में थाने में शिकायत भी दी है। वहीं दूसरे मृतक रामकेश के परिजनो ने भी घंटी को जल्द निकालने के प्रेशर बनाने के आरोप लगाए हैं।
रामकेश के ममेरे भाई ने बताया कि रामकेश (19) करीब एक साल से इस प्रोजेक्ट में देवेन्द्र आर्य के साथ काम कर रहा था। वह एक महीने से हमें कह रहा था कि हमारे ऊपर प्रेशर है।
यूआईटी वाले मुख्य ठेकेदार पर प्रेशर डालते हैं वह देवेन्द्र आर्य पर डालता है। फिर प्रेशर मुझ पर भी आता है। शनिवार को भी रामकेश के पास देवेन्द्र आर्य का कॉल आया था कि कोटा से प्रेशर दे रहे हैं, जल्दी कोटा आ जाओ, मैं भी पहुंच रहा हूं। अधिकारी जबरन उसे खुलवाने के लिए दबाव बना रहे थे। उनकी लापरवाही की वजह से हादसा हुआ है।
यूआईटी अधिकारी बोले- वह कब आया पता नहीं, ठेकेदार ने कहा- जिम्मेदारी देवेन्द्र की थी
हादसे पर यूआईटी के एक्सईएन कमलकांत मीणा ने कहा था कि देवेन्द्र आर्य कोटा आए और काम शुरू किया, इसकी जानकारी हमें नहीं दी गई। जबकि उन्हें जानकारी देनी चाहिए थी।
दरअसल, यूआईटी ने इस घंटी को बनाने और टांगने का ठेका अजय जैन को दिया था। अजय की फर्म ने देवेन्द्र आर्य के साथ एग्रीमेंट साइन कर पेटी कांट्रेक्ट पर यह काम देवेन्द्र को दे दिया। घंटी बनाने से लेकर उसे निकालने और लगाने तक का काम देवेन्द्र आर्य को ही करना था। इसमें हमारा कोई रोल नही था।
बिना जानकारी दिए काम शुरू करने को लेकर अजय जैन ने कहा कि जब काम ही देवेन्द्र को करना था तो जानकारी देने-नहीं देने का कोई मतलब नहीं है। ऐसा कुछ नहीं था कि देवेन्द्र को काम करने से पहले परमिशन लेनी थी या जानकारी देने के बाद ही काम कर सकते थे। उन्हें ही यह काम करना था, एग्रीमेंट में भी यही है।