क़ुरान-बाइबल की यह कहानी है समलिंगियों से नफ़रत की वजह?
“कुछ साल पहले अमरीकी संस्था प्यू रिसर्च सेंटर ने मुस्लिम देशों में एक सर्वे करवाया था यह जानने के लिए कि समलिंगियों को स्वीकार करने के बारे में उनकी राय क्या है। पता चला कि लेबनान को छोड़कर किसी भी देश में समलिंगियों को 10 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों ने समर्थन नहीं किया। पाकिस्तान में तो यह आंकड़ा केवल 2 प्रतिशत था। क्या इस्लामी देशों में समलिंगियों के प्रति इस असहिष्णुता का कारण पैगंबर लूत और सदोम-अमोरा की कथा में है?”
– नीरेंद्र नागर
सदोम और अमोरा के समलिंगी
क़ुरान और बाइबल की कथा में अंतर
लूत की कहानी बाइबल में भी है हालाँकि वहाँ आख़िर में यह परिवर्तन है कि जब सदोम और अमोरा शहर बर्बाद हो गए तो लूत की बेटियों ने सोचा कि अब हमारी नस्ल का क्या होगा। तब उन्होंने अपने पिता को शराब पिलाकर उनको बेसुध कर दिया और अगली दो रातें उनके साथ सोकर गर्भ धारण किया जिससे उनके दो बेटे हुए।क़ुरान और बाइबल में वर्णित इन कथाओं के कारण ही मुस्लिम धर्मगुरु और ईसाई पादरी समलैंगिक व्यवहार को ईश्वर और धर्मविरोधी मानते हैं। ईसाई समाज के सोच में तो हाल में वर्षों में काफ़ी नरमी आई है और ख़ुद पोप ने कहा कि यदि कोई समलैंगिक है और वह सच्चे मन से ईश्वर को ढूँढता है तो मैं कौन होता हूँ जो यह फ़ैसला करूँ कि वह सही कर रहा है या ग़लत!’ मगर मुस्लिम समाजों में अभी यह परिवर्तन आना बाक़ी है।2013 में प्यू रिसर्च सेंटर ने मुस्लिम देशों में समलैंगिकता के प्रति क्या सोच है, यह जानने के लिए एक पोल कराया। इस पोल में लेबनान को छोड़कर किसी भी देश में समलैंगिकों को 10 प्रतिशत से ज़्यादा समर्थन नहीं मिला। पाकिस्तान में तो यह सबसे कम – 2 – प्रतिशत था जबकि लेबनान में युवा पीढ़ी में 27 प्रतिशत ने कहा कि समलैंगिकता को स्वीकृति मिलनी चाहिए। ब्रिटेन में रह रहे मुसलमानों में भी 61 प्रतिशत मुसलमानों का मत था कि समलैंगिकता अस्वीकार्य है। हैरत की बात यह कि यंग लोगों में ऐसी सोच रखनेवाले और भी ज़्यादा – 71 प्रतिशत – थे।
समलैंगिकों के बारे में क़ुरान और बाइबल की कथाएँ
क़ुरान और बाइबल में दो शहरों के निवासियों और पैगंबर लूत की कथा के ज़रिए समलैंगिकता का उल्लेख हुआ है। संभवतः उसी के कारण इन दो धर्मों के मतावलंबी समलैंगिकों के प्रति विद्वेष की भावना रखते हैं। पैगंबर लूत और सदोम और अमोरा नामक दो शहरों के बारे में इन दो ग्रंथों में क्या लिखा हुआ है तो आप नीचे हूबहू पढ़ सकते हैं। क़ुरान की आयतों का अनुवाद सलाम सेंटर द्वारा प्रकाशित पवित्र क़ुरआन से लिया गया है। बाइबल का अंश इस लिंक से लिया गया है।
क़ुरान में लूत संबंधी आयतें
और हमने लूत को भेजा। जब उसने अपनी क़ौम से कहा, ‘क्या तुम वह प्रत्यक्ष अश्लील कर्म करते हो जिसे दुनिया में तुमसे पहले किसी ने नहीं किया? तुम स्त्रियों को छोड़कर मर्दों से कामेच्छा पूरी करते हो, बल्कि तुम नितांत मर्यादाहीन लोग हो।’ उसकी क़ौम के लोगों का उत्तर इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था कि वे बोले, ‘निकालो, इन लोगों को अपनी बस्ती से। ये ऐसे लोग हैं जो बड़े पाक-साफ़ हैं।’ फिर हमने उसे और उसके लोगों को छुटकारा दिया, सिवाय उसकी स्त्री के कि वह पीछे रह जानेवालों में से थी। और हमने उनपर एक बरसात बरसाई, तो देखो अपराधियों का कैसा परिणाम हुआ।
अल-आराफ़ – 7:80-84 और जब लूत के पास हमारे दूत पहुँचे तो वह उनके आने से बहुत घबराया और उनकी रक्षा के लिए अपने को असमर्थ पाया। कहने लगा, ‘यह तो बड़ा कठिन दिन है।’ उसकी क़ौम के लोग दौड़ते हुए उसके पास आ पहुँचे। वे पहले ही दुष्कर्म किया करते थे। उसने कहा, ‘ऐ मेरी क़ौम के लोगो! ये मेरी बेटियाँ मौजूद हैं। ये तुम्हारे लिए अधिक पवित्र हैं। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरे अतिथियों के विषय में मुझे अपमानित न करो। क्या तुममें एक भी अच्छी समझ का आदमी नहीं?’ उन्होंने कहा, ‘तुम्हें तो मालूम है कि तेरी बेटियों से हमें कोई मतलब नहीं। और हम जो चाहते हैं, उसे तू भली-भाँति जानता है।’ उसने कहा, ‘क्या ही अच्छा होता, मुझमें तुमसे मुक़ाबले की शक्ति होती या मैं किसी मज़बूत सहारे की पनाह ले सकता।’ उन्होंने (फ़रिश्तों ने) कहा, ‘ऐ लूत, हम तुम्हारे रब के भेजे हुए हैं। वे तुम तक कदापि नहीं पहुँच सकते। अतः तुम रात के किसी हिस्से में अपने घरवालों को लेकर निकल जाओ और तुममें से कोई पीछे पलटकर न देखे। हाँ, तुम्हारी स्त्री का मामला और है। उसपर भी वही कुछ बीतनेवाला है जो उनपर बीतना निश्चित हो चुका। निर्धारित समय उनके लिए प्रातःकाल का है। तो क्या प्रातःकाल निकट नहीं?’
हूद – 11:77/81 उसने (इबराहीम ने) कहा, ‘ऐ दूतो, तुम किस अभियान पर आए हो? वे बोले, ‘हम तो एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए हैं, सिवाय लूत के घरवालों के। उन सबको तो हम बचा लेंगे, सिवाय उसकी पत्नी के – हमने नियत कर दिया है, वह तो पीछे रह जानेवालों में है। फिर जब ये दूत लूत के यहाँ पहुँचे तो उसने कहा, ‘तुम तो अपरिचित लोग हो।’ उन्होंने कहा, ‘नहीं, बल्कि हम तो तुम्हारे पास वही चीज़ लेकर आए हैं जिसके विषय में वे संदेह कर रहे थे। और हम तुम्हारे पास यक़ीनी चीज़ लेकर आए हैं, और हम बिल्कुल सच कह रहे हैं। अतएव अब तुम अपने घरवालों को लेकर रात के किसी हिस्से में निकल जाओ और स्वयं उन सबके पीछे-पीछे चलो। और तुममें से कोई पीछे मुड़कर न देखे। बस चले चलो जिधर का तुम्हें आदेश है।’ हमने उसे अपना यह फ़ैसला पहुँचा दिया कि प्रातः होते-होते उनकी जड़ कट चुकी होगी। इतने में नगर के लोग ख़ुश-ख़ुश आ पहुँचे। उसने कहा, ‘ये मेरे मेहमान हैं। मेरी फ़ज़ीहत मत करना, अल्लाह का डर रखो, मुझे रुसवा न करो।’ उन्होंने कहा, ‘क्या हमने तुम्हें दुनियाभर के लोगों का ज़िम्मा लेने से रोका नहीं था?’ उसने कहा, ‘तुमको यदि कुछ करना है तो ये मेरी बेटियाँ मौजूद हैं।’ तुम्हारे जीवन की सौगंध, वे अपनी मस्ती में खोए हुए थे, अंततः पौ फटते-फटते एक भयंकर आवाज़ ने उन्हें आ लिया, और हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया और उनपर कंकरीले पत्थर बरसाए।
अल-हिज्र 15:57-74 और रहा लूत तो उसे हमने निर्णय शक्ति और ज्ञान प्रदान किया और उसे उस बस्ती से छुटकारा दिया जो गंदे कर्म करती थी। वास्तव में वह बहुत ही बुरी और अवज्ञाकारी क़ौम थी।
अल अंबिया 21:74 लूत की क़ौम के लोगों ने रसूलों को झुठलाया; जबकि उनके भाई लूत ने उनसे कहा, ‘क्या तुम डर नहीं रखते? मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो। मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता, मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है। क्या सारे संसारवालों में से तुम ही ऐसे हो जो पुरुषों के पास जाते हो, और अपनी पत्नियों को, जिन्हें तुम्हारे रब ने तुम्हारे लिए पैदा किया, छोड़ देते हो? इतना ही नहीं, बल्कि तुम हद से आगे बढ़े हुए लोग हो।’ उन्होंने कहा, ‘यदि तू बाज़ न आया तो ऐ लूत, तू अवश्य ही निकाल बाहर किया जाएगा।’ उसने कहा, ‘मैं तुम्हारे कर्म से अत्यंत विरक्त हूँ। ऐे मेरे रब! मुझे और मेरे लोगों को, जो कुछ ये करते हैं, उसके परिणाम से बचा ले।’ अंततः हमने उसे और उसके सारे लोगों को बचा लिया सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में थी। फिर शेष दूसरे लोगों को हमने विनष्ट कर दिया। और हमने उनपर एक बरसात बरसाई। और यह चेताए हुए लोगों पर बहुत ही बुरी वर्षा थी।
अल-शुअरा – 26:160-173 और हमने लूत को भी भेजा। जब उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, ‘क्या तुम आँखों देखते हुए अश्लील कर्म करते हो? क्या तुम स्त्रियों को छोड़कर अपनी कामतृप्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि बात यह है कि तुम बड़े ही जाहिल लोग हो।’ परंतु उसकी क़ौम के लोगों का उत्तर इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा, ‘निकाल बाहर करो लूत के घरवालों को अपनी बस्ती से। ये लोग सुथराई को बहुत पसंद करते हैं।’ अंततऋ हमने उसे और उसके घरवालों को बचा लिया सिवाय उसकी स्त्री के। उसके लिए हमने नियत कर दिया था कि वह पीछे रह जानेवालों में से होगी। और हमने उनपर एक बरसात बरसाई, और वह बहुत ही बुरी बरसात थी उन लोगों के हक़ में जिन्हें सचेत किया जा चुका था।
अन-नम्ल – 27:54-58 और हमने लूत को भेजा जबकि उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, ‘तुम तो वह अश्लील कर्म करते हो जिसे तुमसे पहले सारे संसार में किसी ने नहीं किया। क्या तुम पुरुषों के पास जाते हो और बटमारी करते हो और अपनी मजलिस में बुरा कर्म करते हो?’ फिर उसकी क़ौम के लोगों का उत्तर बस यही था कि उन्होंने कहा, ‘ले आ हमपर अल्लाह की यातना यदि तू सच्चा है।’ उसने कहा, ‘ऐ मेरे रब! बिगाड़ पैदा करनेवाले लोगों के मुक़ाबले में मेरी सहायता कर।’ हमारे भेजे हुए (दूत) जब इबराहीम के पास शुभ सूचना लेकर आए तो उन्होंने कहा, ‘हम इस बस्ती के लोगों को विनष्ट करनेवाले हैं। निस्संदेह इस बस्ती के लोग ज़ालिम हैं।’ उसने (इबराहीम ने) कहा, ‘वहाँ तो लूत मौजूद है।’ वे बोले, ‘जो कोई भी वहाँ है, हम भलीभाँति जानते हैं। हम उसके और उसके घरवालों को बचा लेंगे सिवाय उसकी स्त्री के। वह पीछे रह जानेवालों में से है। जब यह हुआ कि हमारे भेजे हुए दूत लूत के पास आए तो उनका आना उसे नागवार हुआ और उनके प्रति दिल को तंग पाया। किंतु उन्होंने कहा, ‘डरो मत और न शोकाकुल हो। हम तुम्हें और तुम्हारे घरवालों को बचा लेंगे सिवाय तुम्हारी स्त्री के। वह पीछे रह जानेवालों में से है। निश्चय ही हम इस बस्ती के लोगों पर आकाश से एक यातना उतारनेवाले हैं, इस कारण कि वे बंदगी की सीमा से निकलते रहे हैं।’
अल-अनकबूत -29:28-34 और निश्चय ही लूत भी रसूलों में से था। याद करो जब हमने उसे और उसके सभी लोगों को बचा लिया, सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में से थी। फिर दूसरों को हमने तहस-नहस करके रख दिया।
अस-साफ़्फ़ात – 37:133-136 लूत की क़ौम ने भी चेतावनियों को झुठलाया। हमने लूत के घरवालों के सिवा उनपर पथराव करनेवाली तेज़ हवा भेजी। हमने अपनी विशेष अनुकंपा से प्रातःकाल उन्हें बचा लिया। हम इसी तरह उस व्यक्ति को पुरस्कृत करते हैं जो कृतज्ञता दिखाए। उसने तो उन्हें हमारी पकड़ से सावधान कर दिया था। किंतु वे चेतावनियों के विषय में संदेह करते रहे। उन्होंने उसे फुसलाकर उसके पास से उसके अतिथियों को बुलाना चाहा। अंततः हमने उनकी आँखें मेट दीं, ‘लो अब चखो मज़ा मेरी यातनाओं और चेतावनियों का।’ सुबह-सवेरे ही एक अटल यातना उनपर आ पहुँची, ‘लो अब चखो मज़ा मेरी यातनाओं और चेतावनियों का।’ अल-क़मर – 54:33-39
बाइबल में लूत की कथा – उत्पत्ति 19
लूत के अतिथि
19 उनमें से दो स्वर्गदूत साँझ को सदोम नगर में आए। लूत नगर के द्वार पर बैठा था और उसने स्वर्गदूतों को देखा। लूत ने सोचा कि वे लोग नगर के बीच से यात्रा कर रहे हैं। लूत उठा और स्वर्गदूतों के पास गया तथा जमीन तक सामने झुका। 2 लूत ने कहा, “आप सब महोदय, कृप्या मेरे घर चलें और मैं आप लोगों की सेवा करूँगा। वहाँ आप लोग अपने पैर धो सकते हैं और रात को ठहर सकते हैं। तब कल आप लोग अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।”
स्वर्गदूतों ने उत्तर दिया, “नहीं, हम लोग रात को मैदान[a] में ठहरेंगे।”
3 किन्तु लूत अपने घर चलने के लिए बार—बार कहता रहा। इस तरह स्वर्गदूत लूत के घर जाने के लिए तैयार हो गए। जब वे घर पहुँचे तो लूत उनके पीने के लिए कुछ लाया। लूत ने उनके लिए रोटियाँ बनाईं। लूत का पकाया भोजन स्वर्गदूतों ने खाया।
4 उस शाम सोने के समय के पहले ही नगर के सभी भागों से लोग लूत के घर आए। सदोम के पुरुषों ने लूत का घर घेर लिया और बोले। 5 उन्होंने कहा, “आज रात को जो लोग तुम्हारे पास आए, वे दोनों पुरुष कहाँ हैं? उन पुरुषों को बाहर हमें दे दो। हम उनके साथ कुकर्म करना चाहते हैं।”
6 लूत बाहर निकला और अपने पीछे से उसने दरवाज़ा बन्द कर लिया। 7 लूत ने पुरुषों से कहा, “नहीं मेरे भाइयो मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप यह बुरा काम न करें। 8 देखों मेरी दो पुत्रियाँ हैं, वे इसके पहले किसी पुरुष के साथ नहीं सोयी हैं। मैं अपनी पुत्रियों को तुम लोगों को दे देता हूँ। तुम लोग उनके साथ जो चाहो कर सकते हो। लेकिन इन व्यक्तियों के साथ कुछ न करो। ये लोग हमारे घर आए हैं और मैं इनकी रक्षा जरूर करूँगा।”
9 घर के चारों ओर के लोगों ने उत्तर दिया, “रास्ते से हट जाओ।” तब पुरुषों ने अपने मन में सोचा, “यह व्यक्ति लूत हमारे नगर में अतिथि के रूप में आया। अब यह सिखाना चाहता है कि हम लोग क्या करें।” तब लोगों ने लूत से कहा, “हम लोग उनसे भी अधिक तुम्हारा बुरा करेंगे।” इसलिए उन व्यक्तियों ने लूत को घेर कर उसके निकट आना शुरू किया। वे दरवाज़े को तोड़कर खोलना चाहते थे।
10 किन्तु लूत के साथ ठहरे व्यक्तियों ने दरवाज़ा खोला और लूत को घर के भीतर खींच लिया। तब उन्होंने दरवाज़ा बन्द कर लिया। 11 दोनों व्यक्तियों ने दरवाज़े के बाहर के पुरुषों को अन्धा कर दिया। इस तरह घर में घुसने की कोशिश करने वाले जवान व बूढ़े सब अन्धे हो गए और दरवाज़ा न पा सके।
सदोम से बच निकलना
12 दोनों व्यक्तियों ने लूत से कहा, “क्या इस नगर में ऐसा व्यक्ति है जो तुम्हारे परिवार का है? क्या तुम्हारे दामाद, तुम्हारी पुत्रियाँ या अन्य कोई तुम्हारे परिवार का व्यक्ति है? यदि कोई दूसरा इस नगर में तुम्हारे परिवार का है तो तुम अभी नगर छोड़ने के लिए कह दो। 13 हम लोग इस नगर को नष्ट करेंगे। यहोवा ने उन सभी बुराइयों को सुन लिया है जो इस नगर में है। इसलिए यहोवा ने हम लोगों को इसे नष्ट करने के लिए भेजा हैं।”
14 इसलिए लूत बाहर गया और अपनी अन्य पुत्रियों से विवाह करने वाले दामादों से बातें कीं। लूत ने कहा, “शीघ्रता करो और इस नगर को छोड़ दो।” यहोवा इसे तुरन्त नष्ट करेगा। लेकिन उन लोगों ने समझा कि लूत मज़ाक कर रहा है।
15 दूसरी सुबह को भोर के समय ही स्वर्गदूत लूत से जल्दी करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “देखो इस नगर को दण्ड मिलेगा। इसलिए तुम अपनी पत्नी और तुम्हारे साथ जो दो पुत्रियाँ जो अभी तक हैं, उन्हें लेकर इस जगह को छोड़ दो। तब तुम नगर के साथ नष्ट नहीं होगे।”
16 लेकिन लूत दुविधा में रहा और नगर छोड़ने की जल्दी उसने नहीं की। इसलिए दोनों स्वर्गदूतों ने लूत, उसकी पत्नी और उसकी दोनों पुत्रियों के हाथ पकड़ लिए। उन दोनों ने लूत और उसके परिवार को नगर के बाहर सुरक्षित स्थान में पहुँचाया। लूत और उसके परिवार पर यहोवा की कृपा थी। 17 इसलिए दोनों ने लूत और उसके परिवार को नगर के बाहर पहुँचा दिया। जब वे बाहर हो गए तो उनमें से एक ने कहा, “अपना जीवन बचाने के लिए अब भागो। नगर को मुड़कर भी मत देखो। इस घाटी में किसी जगह न रूको। तब तक भागते रहो जब तक पहाड़ों में न जा पहुँचो। अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम नगर के साथ नष्ट हो जाओगे।”
18 तब लूत ने दोनों से कहा, “महोदयों, कृपा करके इतनी दूर दौड़ने के लिए विवश न करें। 19 आप लोगों ने मुझ सेवक पर इतनी अधिक कृपा की है। आप लोगों ने मुझे बचाने की कृपा की है। लेकिन मैं पहाड़ी तक दौड़ नहीं सकता। अगर मैं आवश्यकता से अधिक धीरे दौड़ा तो कुछ बुरा होगा और मैं मारा जाऊँगा। 20 लेकिन देखें यहाँ पास में एक बहुत छोटा नगर है। हमें उस नगर तक दौड़ने दें। तब हमारा जीवन बच जाएगा।”
21 स्वर्गदूत ने लूत से कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें ऐसा भी करने दूँगा। मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा जिसमें तुम जा रहे हो। 22 लेकिन वहाँ तक तेज दौड़ो। मैं तब तक सदोम को नष्ट नहीं करूँगा जब तक तुम उस नगर में सुरक्षित नहीं पहुँच जाते।” (इस नगर का नाम सोअर है, क्योंकि यह छोटा है।)
सदोम और अमोरा नष्ट किए गए
23 जब लूत सोअर में घुस रहा था, सबेरे का सूरज चमकने लगा 24 और यहोवा ने सदोम और अमोरा को नष्ट करना आरम्भ किया। यहोवा ने आग तथा जलते हुए गन्धक को आकाश से नीचें बरसाया। 25 इस तरह यहोवा ने उन नगरों को जला दिया और पूरी घाटी के सभी जीवित मनुष्यों तथा सभी पेड़ पौधों को भी नष्ट कर दिया।
26 जब वे भाग रहे थे, तो लूत की पत्नी ने मुड़कर नगर को देखा। जब उसने मुड़कर देखा तब वह एक नमक की ढेर हो गई। 27 उसी दिन बहुत सबेरे इब्राहीम उठा और उस जगह पर गया जहाँ वह यहोवा के सामने खड़ा होता था। 28 इब्राहीम ने सदोम और अमोरा नगरों की ओर नज़र डाली। इब्राहीम ने उस घाटी की पूरी भूमि की ओर देखा। इब्राहीम ने उस प्रदेश से उठते हुए घने धुँए को देखा। बड़ी भयंकर आग से उठते धुँए के समान वह दिखाई पड़ा।
29 घाटी के नगरों को परमेश्वर ने नष्ट कर दिया। जब परमेश्वर ने यह किया तब इब्राहीम ने जो कुछ माँगा था उसे उसने याद रखा। परमेश्वर ने लूत का जीवन बचाया लेकिन परमेश्वर ने उस नगर को नष्ट कर दिया जिसमें लूत रहता था।
लूत और उसकी पुत्रियाँ
30 लूत सोअर में लगातार रहने से डरा। इसलिए वह और उसकी दोनों पुत्रियाँ पहाड़ों में गये और वहीं रहने लगे। वे वहाँ एक गुफा में रहते थे। 31 एक दिन बड़ी पुत्री ने छोटी से कहा, “पृथ्वी पर चारों ओर पुरुष और स्त्रियाँ विवाह करते हैं। लेकिन यहाँ आस पास कोई पुरुष नहीं है जिससे हम विवाह करें। हम लोगों के पिता बूढ़े हैं। 32 इसलिए हम लोग अपने पिता का उपयोग बच्चों को जन्म देने के लिए करें जिससे हम लोगों का वंश चल सके। हम लोग अपने पिता के पास चलेंगे और दाखरस पिलायेंगे तथा उसे मदहोश कर देंगे। तब हम उसके साथ सो सकते हैं।”
33 उस रात दोनों पुत्रियाँ अपने पिता के पास गईं और उसे उन्होंने दाखरस पिलाकर मदहोश कर दिया। तब बड़ी पुत्री पिता के बिस्तर में गई और उसके साथ सोई। लूत अधिक मदहोश था इसलिए यह न जान सका कि वह उसके साथ सोया।
34 दूसरे दिन बड़ी पुत्री ने छोटी से कहा, “पिछली रात मैं अपने पिता के साथ सोई। आओ इस रात फिर हम उसे दाखरस पिलाकर मदहोश कर दें। तब तुम उसके बिस्तर में जा सकती हो और उसके साथ सो सकती हो। इस तरह हम लोगों को अपने पिता का उपयोग बच्चों को जन्म देकर अपने वंश को चलाने के लिए करना चाहिए।” 35 इसलिए उन दोनों पुत्रियों ने अपने पिता को दाखरस पिलाकर मदहोश कर दिया। तब छोटी पुत्री उसके बिस्तर में गई और उसके पास सोई। लूत इस बार भी न जान सका कि उसकी पुत्री उसके साथ सोई।
36 इस तरह लूत की दोनों पुत्रियाँ गर्भवती हुईं। उनका पिता ही उनके बच्चों का पिता था। 37 बड़ी पुत्री ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने लड़के का नाम मोआब रखा। मोआब उन सभी मोआबी लोगों का पिता है, जो अब तक रह रहे हैं। 38 छोटी पुत्री ने भी एक पुत्र जना। इसने अपने पुत्र का नाम बेनम्मी रखा। बेनम्मी अभी उन सबी अम्मोनी लोगों का पिता है जो अब तक रह रहे हैं।