करवा चौथ: प्रेम, विश्वास और समर्पण का पर्व
करवा चौथ: प्रेम, विश्वास और समर्पण का पर्व

करवा चौथ: प्रेम, विश्वास और समर्पण का पर्व : भारतीय संस्कृति में रिश्तों की गहराई और भावनाओं की पवित्रता को दर्शाने वाले अनेक त्यौहार हैं, लेकिन करवा चौथ का स्थान इन सबमें विशिष्ट है। यह पर्व सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच विश्वास, प्रेम और अटूट बंधन का प्रतीक है।
परंपरा और भावना
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व सदियों से भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रहा है। विवाहित महिलाएँ इस दिन सूर्योदय से पहले सर्गी खाकर निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रमा के दर्शन कर पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।
दिनभर बिना जल-अन्न ग्रहण किए उपवास रखना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उस प्रेम की परीक्षा है जो पत्नी अपने जीवनसाथी के लिए महसूस करती है।
आधुनिकता में भी अटूट आस्था
समय के साथ परंपराओं का स्वरूप भले ही बदला हो, लेकिन करवा चौथ की भावना आज भी उतनी ही प्रबल है। अब पति भी अपनी पत्नियों के साथ उपवास रखते दिखाई देते हैं – यह समानता और पारस्परिक सम्मान की नई मिसाल है। सोशल मीडिया और भागदौड़ भरी ज़िंदगी के बीच भी जब स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार कर थाली सजाती हैं, तो यह दृश्य हमारी संस्कृति की जीवंतता का प्रमाण बन जाता है।
चाँद और प्रतीकात्मक अर्थ
रात में छलनी से चाँद देखना और फिर पति को देखकर व्रत खोलना – यह दृश्य हर भारतीय हृदय को भावनाओं से भर देता है। चाँद यहाँ प्रतीक है शीतलता, पवित्रता और अटूट प्रेम का, जो रिश्तों की चमक को सदियों तक बनाए रखता है।
नारी शक्ति का उत्सव
करवा चौथ केवल पति की लंबी उम्र का पर्व नहीं, बल्कि नारी के त्याग, धैर्य और शक्ति का भी उत्सव है। यह दिन हर उस स्त्री के नाम है, जो अपने परिवार और रिश्तों के लिए स्वयं को समर्पित कर देती है।
निष्कर्ष
करवा चौथ हमें यह सिखाता है कि रिश्तों की नींव केवल प्रेम से नहीं, बल्कि विश्वास, समर्पण और एक-दूसरे के प्रति सम्मान से मजबूत होती है। चाहे समय कितना भी बदल जाए, इस व्रत की भावना हमेशा हर भारतीय घर के आँगन में चाँदनी की तरह उजली रहेगी।
लेखक – अशोक राईका