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दिव्यांग ने कलेक्टर से मांगी इच्छा मृत्यु:जुलाई से प्रशासन के चक्कर लगा रहा, आदेश होने के बाद भी तहसीलदार- पटवारी कर रहे अनदेखी, रास्ता खुलवाने गुहार


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झुंझुनूंटॉप न्यूज़राजस्थानराज्य

दिव्यांग ने कलेक्टर से मांगी इच्छा मृत्यु:जुलाई से प्रशासन के चक्कर लगा रहा, आदेश होने के बाद भी तहसीलदार- पटवारी कर रहे अनदेखी, रास्ता खुलवाने गुहार

दिव्यांग ने कलेक्टर से मांगी इच्छा मृत्यु:जुलाई से प्रशासन के चक्कर लगा रहा, आदेश होने के बाद भी तहसीलदार- पटवारी कर रहे अनदेखी, रास्ता खुलवाने गुहार

झुंझुनूं : पैरों से चल नहीं सकता। हाथों को पैरों के नीचे लगाकर सीढ़ियां चढ़ता है। 30 सीढ़ियां चढ़कर कलेक्टर कार्यालय पहुंचा। यह झुंझुनूं के दुर्जनपुरा गांव के दिव्यांग रमेश कुमार की सच्चाई है, जो जुलाई से लगातार तहसील और कलेक्टर के चक्कर लगा रहा है। 50 साल पुराने रास्ते पर पड़ोसियों ने रोक लगा दी, उपखंड अधिकारी ने रास्ता “कटान शुदा” घोषित कर आदेश भी दे दिया, लेकिन तहसीलदार और पटवारी के टालमटोल रवैये ने उसे इतना तोड़ दिया कि अब उसने जिला कलेक्टर के सामने इच्छा मृत्यु की गुहार लगा दी है।

50 साल पुराना किया बन्द

ग्राम दुर्जनपुरा, तहसील और जिला झुंझुनूं का खसरा नंबर 69। यही वह खेत है जहां रमेश कुमार अपने पिता स्व. सोहनलाल के साथ बचपन से रहता आया और आज भी अपनी मां केशर देवी के साथ ढाणी बनाकर जीवन गुजार रहा है। रमेश दोनों पैरों से अपंग है, जबकि उसकी मां 75 साल की हैं और हृदय रोग से जूझ रही हैं।

हाथों के सहारे चलकर कलेक्टर के पास पहुंचा दिव्यांग
हाथों के सहारे चलकर कलेक्टर के पास पहुंचा दिव्यांग

इस ढाणी तक पहुंचने के लिए जो रास्ता है, वह कोई नया नहीं बल्कि कदीमी रास्ता है। यह 50-60 साल से प्रचलित रास्ता है। पड़ोसी खेत मालिकों – चूनाराम, पूर्णाराम और हनुमानाराम के हिस्सों से होकर ही यह रास्ता खसरा नंबर 69 तक पहुंचता है। लेकिन समय के साथ पीढ़ियां बदलीं और अब वर्तमान खातेदार इस रास्ते को रोककर खड़े हो गए हैं।

रमेश की मां कहती हैं – “हमने जीवन यहीं बिताया। खेत में ढाणी है, रोजमर्रा का सब सामान यहीं से आता है। अब रास्ता रोक दिया है तो मानो हमें कैद कर दिया हो। घर है लेकिन पहुंच नहीं।”

उपखंड अधिकारी का आदेश और जमीनी हकीकत

18 जुलाई 2025 को उपखंड अधिकारी झुंझुनूं ने आदेश (क्रमांक 314) जारी कर इस रास्ते को “कटान शुदा” घोषित कर दिया। मतलब, प्रशासन ने मान लिया कि यह रास्ता रमेश और उसकी मां का जायज हक है। लेकिन आदेश के बावजूद जमीन पर कुछ नहीं बदला।

जुलाई से लेकर अब तक न्याय के लिए लगा रहा चक्कर
जुलाई से लेकर अब तक न्याय के लिए लगा रहा चक्कर

पड़ोसी खातेदारों ने आदेश के खिलाफ आयुक्त जयपुर के पास अपील की। उन्हें दो महीने सात दिन बाद भी “स्टे” नहीं मिला। यानी कानूनी रूप से रास्ता रमेश का ही होना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि वह रास्ता आज भी बंद है और रमेश हाथ जोड़कर दर-दर भटक रहा है।

कलेक्टर से इच्छा मृत्यु की गुहार

कलेक्टर अरुण गर्ग के सामने रमेश ने एप्लिकेशन दी – “मैं अब थक चुका हूं। आदेश के बावजूद तहसीलदार और पटवारी काम नहीं कर रहे। रोज़-रोज़ अपमानित होना पड़ता है। अगर रास्ता नहीं खुल सकता तो कृपा करके मुझे और मेरी मां को इच्छा मृत्यु की अनुमति दी जाए। वरना मैं आत्मदाह कर लूंगा।”

कलेक्टर ने कहा – “मैंने तहसीलदार को बोल दिया है। दो दिन का टाइम दिया है। इनको दुबारा नहीं आना पड़ेगा।

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