झुंझुनूं में महिलाएं मुफ्त सैनिटरी नैपकिन से वंचित:बाजार से खरीदने को मजबूर, एक साल से उड़ान योजना में सप्लाई नहीं
झुंझुनूं में महिलाएं मुफ्त सैनिटरी नैपकिन से वंचित:बाजार से खरीदने को मजबूर, एक साल से उड़ान योजना में सप्लाई नहीं
झुंझुनूं : राजस्थान सरकार की महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर शुरू की गई महत्वाकांक्षी ‘उड़ान योजना’ ठप है। माहवारी स्वच्छता और स्वास्थ्य सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को ध्यान में रखते हुए यह योजना शुरू की गई थी। झुंझुनूं जिले में जून 2024 के बाद से एक भी सैनिटरी नैपकिन की सप्लाई नहीं हुई। इससे है महिलाएं और किशोरियां महंगे दामों पर बाजार से नैपकिन खरीदने को मजबूर हैं।
वर्ष 2024-25 के दौरान झुंझुनूं जिले में 26 लाख 18 हजार 898 सैनिटरी पैड का वितरण किया गया था, लेकिन इसके बाद से स्थिति जस की तस है। योजना का क्रियान्वयन महिला एवं बाल विकास विभाग और एएनएम के माध्यम से किया जाता है, पर जिले के कई आंगनबाड़ी केंद्रों और विद्यालयों में सप्लाई पूरी तरह बंद है। महिलाएं आंगनबाड़ी केंद्रों से हर बार खाली हाथ लौट रही हैं, जिससे उन्होंने केंद्रों पर आना ही छोड़ दिया है।
- दिसंबर 2021 में हुई थी शुरुआत- ‘उड़ान योजना’ की शुरुआत दिसंबर 2021 में तत्कालीन गहलोत सरकार ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य 14 से 45 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं और किशोरियों को निशुल्क सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराकर उनके स्वास्थ्य और स्वच्छता की रक्षा करना था। शुरुआत में हर महीने आंगनबाड़ी केंद्रों और विद्यालयों से नियमित वितरण होता था, जिससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की महिलाएं लाभान्वित हो रही थीं।
- टेंडर प्रक्रिया में फंसा है मामला- महिला एवं बाल विकास विभाग के उपनिदेशक विजेंद्र राठौड़ ने बताया कि सैनिटरी नैपकिन की सप्लाई के लिए राज्य स्तर पर टेंडर प्रक्रिया लंबित है। विभाग ने इस संबंध में अपनी ओर से डिमांड भेज रखी है, लेकिन एक साल में भी टेंडर नहीं हो पाना कई सवाल खड़े करता है। राठौड़ ने स्पष्ट किया कि जब तक राज्य स्तर पर सप्लाई की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक जिले को भी पैड नहीं मिल पाएंगे।
- फायदेमंद योजना पर सिस्टम की बेरुखी- झुंझुनूं जिले की ग्रामीण महिलाओं और छात्राओं के लिए यह योजना बहुत लाभकारी रही है। खासकर उन घरों के लिए जहां आर्थिक स्थिति कमजोर है और हर महीने बाजार से नैपकिन खरीदना संभव नहीं। एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया, “पहले हर महीने महिलाएं आकर नैपकिन ले जाती थीं। अब एक साल से हम खुद खाली बैठे हैं, ना माल है, ना कोई निर्देश। महिलाएं पूछती हैं, तो हम भी बस इंतजार ही बता सकते हैं।”
सरकार की गंभीरता पर सवाल, कब मिलेगा समाधान
महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर सरकार ने जिस संवेदनशीलता के साथ योजना शुरू की थी, अब वही सरकार इसकी निरंतरता को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रही है। महिलाएं स्थानीय मेडिकल स्टोरों से महंगे दाम देकर नैपकिन खरीदने को मजबूर हैं, या फिर पारंपरिक असुरक्षित विकल्पों की ओर लौट रही हैं।