उदयपुर जिले के प्रमुख मंदिर
उदयपुर शहर और उसके आसपास कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जिन्हें देखने दूर-दूर से लोग यहाँ आते हैं। उदयपुर शहर अपनी सांस्कृतिक पहचान के लिए राजस्थान में एक अलग पहचान रखता है। यहाँ आकर आपको बहुत से मंदिर देखने को मिलेंगे।


उदयपुर जिले के प्रमुख मंदिर :
- एकलिंग जी का मंदिर, कैलाशपुरी उदयपुर
उदयपुर के उत्तर में स्थित नागदा (कैलाशपुरी) नामक स्थान पर एकलिंगजी का प्रसिद्ध शिव मंदिर है। एकलिंग जी मेवाड़ के महाराणाओं के इष्टदेव व कुल देवता है।
नोट: महाराणा इन्हें ही मेवाड़ राज्य का वास्तविक शासक मानते थे तथा स्वयं को उनका दीवान कहलाना पसंद करते थे।
इस मंदिर का निर्माण बप्पा रावल ने करवाया था। राणा मोकल ने इसका जिर्णोद्धार करवाया। जबकि वर्तमान स्वरूप महाराणा राय मल ने दिया। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग पर चार मुख बने हुए हैं। इनमें से पूर्व के मुख को सूर्य, उत्तर के मुख को ब्रह्मा, दक्षिण के मुख को शिव तथा पश्चिम के मुख को विष्णु माना जाता है। यह मंदिर राज्य में पाशुपात सम्प्रदाय का सबसे प्रमुख स्थल भी है। इस मंदिर के अहाते में महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित विष्णु मंदिर है, जिसे लोग ‘मीरा बाई का मंदिर’ भी कहते हैं। उदयपुर में स्थित एकलिंग (शिव) मंदिर लकुलीश संप्रदाय का मंदिर है। यह मंदिर बप्पा रावल ने बनवाया था। राणा कुंभा ने इस मंदिर को नागदा, कालोड़ा, मालखेड़ा तथा भीमाना गाँव भेंट किये।कलकुलीश सम्प्रदाय की अन्य पीठ सुन्धामाता जालौर एवं महामण्डलेश्वर मंदिर बांसवाड़ा में हैं।
सास-बहू का मंदिर, नागदा (उदयपुर)
मेवाड़ की प्राचीन राजधानी नागदा में स्थित मंदिर मूलतः ‘सहस्त्रबाहु’ (भगवान विष्णु) का है, लेकिन अपभ्रंश होते-होते इसका नाम ‘सास-बहू का मंदिर’ हो गया। इनमें से बड़ा मंदिर (सास का मंदिर) दस सहायक देव मंदिरों से घिरा हुआ है, जबकि छोटा मंदिर (बहु का मंदिर) पंचायतन प्रकार का है। यहाँ 10वीं शताब्दी के दो मंदिर है एक अदबद जी का मंदिर व दूसरा खुमाण रावल का देवरा।
जगदीश मंदिर(सपनों में बना मंदिर), उदयपुर
इस मंदिर का निर्माण महाराणा जगतसिंह प्रथम ने 1651 ई. में उदयपुर में स्थित सिटी पैलेस के नजदीक पिछोला झील के किनारे करवाया था। मंदिर में भगवान जगदीश की काले पत्थर से निर्मित 60 इंच (5 फुट) ऊँची प्रतिमा है। मंदिर के चारों कोनों में शिव-पार्वती, गणपति, सूर्य तथा देवी के चार लघु मंदिर तथा गर्भगृह के सामने गरूड की विशाल प्रतिमा है।
नोट : यह गरूड़ की प्रतिमा विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा कही जाती है।
पुरी के जगन्नाथ जी भगवान की तरह यहाँ भी जगदीश भगवान की पूजा की जाती है। इस मंदिर के शिल्पकार अर्जुन, भाणा एवं मुकुंद है।
मंदिर के गर्भगृह में स्थित मूर्ति किसी भी शिल्पकार के द्वारा बनायी हुई नहीं है। बल्कि भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में प्रकट होकर महाराणा से कहा, कि मेरी मूर्ति डूंगरपुर के पास शर्वा गाँव के पीपल के पेड़ के नीचे हाथ खुदाई पर मिलेगी। इसलिए इसे ‘सपने से बना मंदिर’ कहा जाता है।
महाराजा राजसिंह के काल में औरंगजेब के आक्रमण के समय इस ऐतिहासिक मंदिर को नष्ट होने से बचाने के लिए ‘नारू जी बारहट’ ने अपने बीस साथियों सहित बहादुरी से मुकाबला कर प्राणोत्सर्ग किए (युद्ध 4 जनवरी, 1680 ई.)। इन्हें 20 मांचा तोड़ सैनिक कहते है।
स्कंध कार्तिकेय मंदिर, उदयपुर
- तनेसर (उदयपुर) में देव सेना के अधीपति स्कंध एवं शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का मंदिर स्थित है।
- मेवाड़ का अमरनाथ, गुप्तेश्वर मंदिर – तितरड़ी (उदयपुर)
- तीतरड़ी एकलिंगपुरा के बीच हाड़ा पर्वत पर स्थित गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है, जो गिरवा के अमरनाथ के नाम से जाना जाता है। इसको ‘मेवाड़ का अमरनाथ’ भी कहा जाता है।
- मछन्दर नाथ मंदिर, उदयपुर (गोवर्धन नाथ स्वामी मंदिर)
- यह मंदिर अपनी सांझियों के लिए प्रसिद्ध है इसलिए इसे ‘संझ्या मंदिर’ भी कहा जाता है।
बोहरा गणेश मंदिर, उदयपुर
उदयपुर में आहड़ संग्रहालय के पीछे स्थित यह प्राचीन गणेश मंदिर महाराणा राजसिंह के समय में निर्मित है।
ऋषभदेव जैन मंदिर, उदयपुर
- धूलेव (उदयपुर) कोयल नदी के तट या कुआरी नदी पर आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का विशाल मंदिर स्थित है। यह मंदिर भारत का एकमात्र मंदिर है जिसमें दिगम्बर, श्वेताम्बर, वैष्णव शैव, भील आदि सभी वर्गों के लोग पूरी श्रद्धा के साथ भगवान की पूजा-उपासना करते हैं।
- यहाँ भगवान की अर्चना में केसर का भरपूर उपयोग होने के कारण इस तीर्थ को ‘केसरियाजी/केसरियानाथजी’ के नाम से भी जाना जाता है।
- यहाँ स्थापित भगवान ऋषभदेवजी की श्यामवर्णी तीन फीट ऊँची पद्मासन प्रतिमा चमकीले काले पत्थर से बनी है इसी कारण स्थानीय आदिवासी लोग उन्हें ‘कालाजी’ के नाम से पुकारते है।
- भील ‘कालाजी की आण’ को सर्वोपरि मानते हैं। कालाजी की शपथ लेकर वे कभी झूठ नहीं बोलते हैं। भीलों के आराध्य धूलैव रा धणी ऋषभदेव जी ही है।
- वैष्णव धर्म वाले इनको विष्णु का अवतार मानकर पूजते हैं। संपूर्ण मंदिर सफेद संगमरमर पत्थर से निर्मित है एवं बिना किसी चूने के जोड़ के 1100 खम्भों पर स्थित हैं। यहाँ चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतला अष्टमी) व नवमी को विशाल मेला लगता है।
आहड़ के जैन मंदिर, उदयपुर
यहाँ 10वीं शताब्दी में निर्मित जैन मंदिरों का समूह है। जहाँ आचार्य जगच्चंदसूरि को 12 वर्षों के कठोर तपोपरांत तत्कालीन शासकरावल जैत्रसिंह ने ‘तपा’ का विरुद्ध प्रदान किया था। परिणामस्वरूप जगच्चन्द सूरि की शिष्य परम्परा ‘तपागच्छ’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह स्थान तपागच्छ की उद्भव स्थली के रूप में जाना जाता है।
अम्बिका देवी का मंदिर, जगत (उदयपुर) मंदिर
जगत में स्थित अम्बिका देवी के मंदिर में नृत्य करते हुए गणेशजी की विशाल प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को ‘मेवाड़ का खजुराहो’ कहते हैं। इसका निर्माण 10वीं शताब्दी में मेवाड़ शासक अल्लट के समय हुआ है।
जावर का विष्णु मंदिर, उदयपुर
जावर में रमानाथ कुंड और भगवान विष्णु के इस मंदिर का निर्माण रमाबाई द्वारा करवाया गया था। मेवाड़ के शासक महाराणा कुंभा की पुत्री रमाबाई का विवाह जूनागढ़ (गुजरात) के मंडलीक यादवराज से हुआ था, किंतु वहाँ महमूद बेगड़ा के आक्रमण के बाद धर्म परिवर्तन का दौर चला तो रमाबाई मेवाड़ आ गई। शिल्पी सूत्रधार ईश्वर ने शास्त्रों का शोधन कर यहाँ पंचायतन शैली के इस मंदिर की नींव रखी।
उदयपुर के अन्य मंदिर
उदयश्याम मंदिर उदयपुर, टूस का सूर्य मंदिर (डबोक ), शैव मंदिर (कल्याणपुर), चामुण्डा माता का मंदिर (नागदा), नृत्य गणपति मंदिर (नागदा), आदिवराह का मंदिर (आहड़ – इस मंदिर का निर्माण अल्लट (आलूराय) ने करवाया।), सूर्य मंदिर (आहड़)।, गुलाबश्याम वैष्णव (गोगुन्दा)