इतिहास की झरोखे से, “अलवर दुर्ग (बाला किला)”
जो दुर्ग कभी भी शत्रु द्वारा जीता नहीं गया, उसे 'बाला किला" नाम दिया

अलवर दुर्ग (बाला किला) : इस किले को आंख वाला किला, 52 बुर्जों का लाडला किला ,52 गढ़ का लाडला किला या कुंवारा किला के नाम से जाना जाता है । वह दुर्ग जो कभी भी शत्रु द्वारा जीता नहीं गया हो उसे ‘बाला किला” कहा जाता है। यह दुर्ग बालागढ़ की श्रेणी में आता है। जनश्रुति के अनुसार इस गिरि दुर्ग का निर्माण विक्रम संवत् 1106 (1049 ई.) में आमेर राजा काकिलदेव के छोटे पुत्र अलघुराय ने करवाकर उसके नीचे अलपुर नामक नगर बसाया। वर्तमान में इस प्राचीन नगर के ध्वसावशेष को ‘रावण देहरा’ के नाम से जाना जाता है। 12वीं सदी के आसपास यह किला कछवाहों के हाथ से निकलकर निकुम्भ क्षत्रियों (चौहानों) के अधिकार में आ गया। निकुम्भों (चौहानों) ने इस दुर्ग में महल तथा अपनी आराध्य देवी (चतुर्भुजा) का मन्दिर बनवाया। अपनी आराध्य देवी के सम्मुख नरबलि (मानव बलि) देने की प्रथा के कारण निकुम्म शासक प्रजा में अलोकप्रिय हो गये। अलावल खाँ ने इस दुर्ग पर अधिकार किया। अलावलखों का पुत्र व उत्तराधिकारी हसन खीं मेवाती था.जो खानवा के युद्ध (1527 ई) में राणा सांगा की ओर से लड़ता हुआ मारा गया।

खानवा विजय के बाद बाबर ने अलवर दुर्ग पर अधिकार कर यह दुर्ग तथा अलवर का निकटवर्ती क्षेत्र (मेवात परगना) अपने पुत्र हिन्दाल को जागीर (इनायत) के रूप में दे दिया। बाबर ने मेवात का खजाना अपने पुत्र हुमायूँ को सौंपा था। शेरशाह सूरी ने 1540 ईस्वी में हुमायूँ को पराजित करने के बाद अलवर दुर्ग पर अधिकार किया। अकबर ने अपने पुत्र सलीम को इसी दुर्ग में नजरबंद किया था। यहां सलीम सागर कुंड का निर्माण शेर शाह सूरी के पुत्र सलीम शाह के आदेश अनुसार हकीम हाजी खान द्वारा बनाया गया।
भरतपुर के शासक सूरजमल (1756-1765) ने इस दुर्ग पर अधिकार कर यहाँ सूरज कुण्ड (सूर्य कुंड) नामक जलाशय बनाया। माचेडी के राव प्रतापसिंह ने इस दुर्ग पर अधिकार कर 1775 ई में अलवर के पृथक राज्य की स्थापना की। 1775 ई से स्वतंत्रता प्राप्ति (1947) तक इस दुर्ग पर कछवाहों की नरूका शाखा का आधिपत्य रहा।
इस दुर्ग की प्राचीर में 15 बड़ी बुर्जे हैं, जिनमें काबुल बुर्ज, खुर्द बुर्ज एवं नौगजा बुर्ज प्रमुख है। सलीम सागर तालाब तथा सूरजकुण्ड इस दुर्ग के प्रमुख जल स्रोत है। इस दुर्ग में चतुर्भुजा देवी एवं सीतारामजी के मन्दिर भी दर्शनीय है। सीतारामजी के मन्दिर का निर्माण 1832 ई में राव प्रतापसिंह ने करवाया।
इस दुर्ग के प्रमुख प्रवेश द्वार हैं- अन्धेरी दरवाजा, चॉदपोल (सभवत निकुम्भ राजा चाँद द्वारा निर्मित), सूरजपोल, लक्ष्मणपोल एवं जयपोल। अलवर दुर्ग में स्थित म्यूजियम (संग्रहालय) में मैसूर के राजा हैदरअली, ईरान के नादिरशाह, फारस के शासक शाह अब्बास, मुगल शासको (अकबर, जहाँगीर शाहजहाँ, दाराशिकोह व औरंगजेब) की तलवारे प्रदर्शित है। यहीं मराठा यशवत राव होल्कर का सुरक्षा कवच रखा हुआ है। अलवर दुर्ग (बालाकिला) को बावनगढ़ का लाडला’ भी कहा जाता है। यह दुर्ग अलवर के मुकुट के समान शोभायमान है। इस दुर्ग की दीवारों पर बंदूक चलाने के छिद्र है. अत इसे ‘आँख वाला किला’ भी कहा जाता है। किले के भीतर जल महल निकुंभ महल चक्रधारी हनुमान मंदिर करणी माता मंदिर आदि प्रमुख स्थान है।
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संकलनकर्ता, किशोर सिंह चौहान उदयपुर, विशेषज्ञ राजस्थान इतिहास और कला संस्कृति
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