संदिग्ध हालातों में आर्मी जवान परमेंद्र की मौत:10 साल से कर रहे थे देश की सेवा, पार्थिव देह कल पहुंचेगी गांव
संदिग्ध हालातों में आर्मी जवान परमेंद्र की मौत:10 साल से कर रहे थे देश की सेवा, पार्थिव देह कल पहुंचेगी गांव

बगड़ : झुंझुनूं जिले के बगड़ थाना क्षेत्र के भड़ौंदा कल्ला गांव के रहने वाले भारतीय सेना के जवान परमेंद्र कुमार की ड्यूटी के दौरान संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। जवान की तैनाती वर्तमान में जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में 55 कोर बटालियन में क्लर्क के पद पर थी। बताया जा रहा है कि जवान की ड्यूटी के दौरान ही अचानक संदिग्ध हालातों में मौत हुई, जिससे पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई है।
परमेंद्र कुमार पुत्र महावीर प्रसाद भारतीय सेना में पिछले 9 वर्षों से सेवा दे रहे थे। सेना में उनका सफर बेहद अनुशासित और समर्पित रहा। हाल ही में, करीब दो महीने पहले ही उनकी पोस्टिंग पंजाब से जम्मू एंड कश्मीर हुई थी। ट्रांसफर के दौरान वह घर भी आए थे और कुछ दिन अपने परिवार के साथ बिताने के बाद वापस ड्यूटी पर लौटे थे।
परमेंद्र का परिवार सेना से गहरे ताल्लुक रखता है। उनके पिता महावीर प्रसाद भी भारतीय सेना से हवादार के पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे, जिनका दो साल पहले देहांत हो गया। परमेंद्र के छोटे भाई विजेन्द्र कुमार भी भारतीय सेना में सिपाही के पद पर सेवारत हैं। इस प्रकार यह परिवार पूरी तरह से राष्ट्र सेवा को समर्पित रहा है।
मृतक जवान अपने पीछे पत्नी, एक पांच वर्षीय बेटे, मां, भाई-भाभी और अन्य परिजनों को छोड़ गए हैं। उनकी पत्नी गृहणी हैं और वर्तमान में अपने ससुराल में रहती हैं। परमेंद्र की मौत की खबर अभी तक परिवार को नहीं दी गई है, सेना की ओर से इस संबंध में औपचारिक प्रक्रिया पूरी की जा रही है।
परमेंद्र की पार्थिव देह मंगलवार सुबह 10:40 बजे फ्लाइट से दिल्ली पहुंचेगी। इसके बाद सड़क मार्ग से झुंझुनूं लाया जाएगा, जहां गांव भड़ौंदा कलां में पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। सेना की ओर से अभी तक मौत के कारणों को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन परिवार और गांव के लोगों को यह खबर मिलने के बाद सदमे की स्थिति बनी हुई है।
गांव भड़ौंदा कलां के लोग परमेंद्र को एक शांत स्वभाव और अनुशासित व्यक्ति के रूप में जानते थे। बचपन से ही उन्होंने देश सेवा का सपना देखा और उसे पूरा किया। उनके सहपाठी और रिश्तेदार बताते हैं कि परमेंद्र शुरू से ही पढ़ाई और अनुशासन में आगे रहे, और सेना में जाना उनका सपना था जिसे उन्होंने मेहनत से हासिल किया।
पड़ोसियों के अनुसार, जब भी छुट्टियों में घर आते, तो पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ जाती। बच्चों को सेना के किस्से सुनाना, युवाओं को प्रोत्साहित करना और बुजुर्गों का आदर करना उनकी दिनचर्या थी।