वो हवेलियां जिनमें तालाब जैसे सैकड़ों साल पुराने वाटर टैंक:पानी के 425 टैंकर तक समा सकते हैं; जिला डार्कजोन में, लेकिन यहां भरपूर
वो हवेलियां जिनमें तालाब जैसे सैकड़ों साल पुराने वाटर टैंक:पानी के 425 टैंकर तक समा सकते हैं; जिला डार्कजोन में, लेकिन यहां भरपूर

सुजागनढ़ : राजस्थान का चूरू जिला ग्राउंड लेवल वाटर के मामले में डार्कजोन में है। इस जिले में नदी-तालाब नहीं हैं। हालांकि, जिले का सुजानगढ़ कस्बे में हालात एकदम उलट हैं। यहां पानी की किल्लत नहीं हैं। इसका कारण है यहां कि पुरानी हवेलियों में बने वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम। कई स्ट्रक्चर 150 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। कई टैंक इतने बड़े हैं कि 6 महीने तक एक हजार लोगों के लिए पर्याप्त रहता है। सुजागनढ़ के दानमल चौपड़ा हवेली, रामपुरिया हवेली, बोरड़ हवेली, डागा हवेली सहित कई दर्जन ऐतिहासिक भवनों में भी इसी प्रकार के पारंपरिक टैंक आज भी मौजूद हैं।
यह छत नहीं, विशाल टैंक है…

17 लाख लीटर तक स्टोरेज की क्षमता
शहर के सांखला बास क्षेत्र में स्थित भगवाना राम जाखड़ के निवास में बना कुंड न केवल सुजानगढ़, बल्कि संभवतः पूरे इलाके का सबसे विशाल वर्षा जल संग्रहण टैंक माना जाता है। इसकी लंबाई 70 फीट, चौड़ाई 30 फीट और गहराई भी 30 फीट है। भीतर जाने के लिए सीढ़ियां हैं।
इसमें 17 लाख लीटर तक पानी का स्टोरेज किया जा सकता है। भगवाना राम जाखड़ ने बताया- यह कुंड लगभग 150 साल पुराना है। कुंड से मोहल्ले सहित दूर-दराज के लोग भी पानी भरने आते हैं। इसकी नियमित सफाई भी की जाती है ताकि हजारों लोगों को शुद्ध जल मिल सके।

चूने से बने कुंड, फिटकरी-तांबा डालकर पानी को रखते हैं शुद्ध
यहां हर घर की छत को जलग्रहण क्षेत्र की तरह तैयार किया जाता है। बरसात से पहले घरों की छतें और कुंड साफ किए जाते हैं। छत पर चप्पल-जूते पहनना वर्जित होता है। पानी जिस मुंह से कुंड में प्रवेश करता है, वहां कोठरी बनाकर उसे ढका जाता है।पुराने समय में इन कुंडों के पानी की शुद्धता के लिए चूना, फिटकरी, तांबे और अन्य धातुएं डाली जाती थीं, जो आज भी कुछ परिवारों में परंपरा बनी हुई हैं।

जब रियासतों ने भी मानी कुंडों की अहमियत
बीकानेर रियासत के राजा गंगा सिंह जब सुजानगढ़ आते थे, तो राजाजी की कोठी में ठहरते थे। यहां बना कुंड लगभग 200 साल पुराना है और इसका बेसमेंट पीतल का बना हुआ था। समय के साथ कोठी खंडहर हो गई, लेकिन कुंड से लंबे समय तक पानी मिलता रहा। करीब एक दशक पहले यहां ‘आपणी योजना’ से मीठा पानी पहुंचा, जो सप्ताह में एक-दो बार ही आता है। लोग इस पानी का उपयोग केवल स्नान व धुलाई के लिए करते हैं, जबकि पीने के लिए आज भी इन्हीं सैकड़ों साल पुराने वाटर टैंक का उपयोग होता है।

एक संस्कृति, जो जल को देवता मानती है
साहित्यकार डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा ने कहा-जल के बिना जीवन असंभव है। हर सभ्यता नदियों के किनारे बसी है, लेकिन सुजानगढ़ ने बिना नदी के कुंडों से जीवन की धारा बहाई है।
यहां जल केवल संसाधन नहीं, संस्कार है। कुंडों को देवता की तरह माना जाता है। पीढ़ी दर पीढ़ी लोग यह सिखाते आ रहे हैं कि पानी को कैसे सहेजा जाए, कैसे बचाया जाए और कैसे पवित्रता के साथ बरता जाए।
स्थानीय बसंत बोरड़ ने कहा- हमारी पुश्तैनी हवेली में यह कुंड सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। चार पीढ़ियों से हम इसी कुंड का पानी पी रहे हैं। अब तो कोई और पानी अच्छा ही नहीं लगता।

परिस्थितियों से बनी जलसंरक्षण की परंपरा
राज्य के भवन विनियम 2020 के अनुसार, हर आवासीय व व्यवसायिक भवन में वर्षा जल संरक्षण की व्यवस्था जरूरी है। अधिकांश शहरों में इसकी अनदेखी होती है, लेकिन सुजानगढ़ में यह नियम नहीं, परंपरा है। यहां की भौगोलिक मजबूरी ने इसे जीवनशैली बना दिया।