हिंदुस्तान की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी कस्तूरबा गाँधी
हिंदुस्तान की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी कस्तूरबा गाँधी


हिंदुस्तान के इतिहास में ‘बा’ के नाम से विख्यात कस्तूरबा गाँधी स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महिला सशक्तिकरण की प्रतीक थीं। उन्होंने आजादी की लड़ाई में महात्मा गाँधी के हर आंदोलन में भाग लिया और कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता सेनानियों का साथ दिया। कस्तूरबा गाँधी देश की आजादी के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की पत्नी और देश की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाली महान वीरांगना थीं। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हर कदम पर महात्मा गाँधी का साथ दिया। कस्तूरबा गाँधी को वैसे तो सभी गाँधी जी की पत्नी के रुप में जानते हैं, परंतु वे स्वयं एक क्रांतिकारी महिला थीं। दरअसल, महात्मा गाँधी एक ऐसी शख्सियत थे, जिनकी उपलब्धियों के आगे कस्तूरबा गाँधी के सभी प्रयास छुप गये, लेकिन कस्तूरबा गाँधी देश के प्रति निष्ठावान और समर्पित रहने वाले व्यक्तित्व की एक प्रभावशाली महिला थीं, जो कि अपनी निर्भीकता के लिए पहचानी जाती थीं। कस्तूरबा गाँधी ने न सिर्फ एक आदर्श पत्नी की तरह अपने पति महात्मा गाँधी के सभी अहिंसक प्रयासों में बखूबी साथ दिया, बल्कि उन्होंने देश की आजादी के लिए एक वीरांगना की तरह लड़ाई लड़ी और इस दौरान उन्हें कई बार जेल की कड़ी सजा भी भुगतनी पड़ी। कस्तूरबा गाँधी आजादी के आंदोलन के दौरान महिलाओं की रोल मॉडल साबित हुईं। कस्तूरबा गाँधी ने कमला नेहरू, प्रभावती देवी, कमला देवी चट्टोपाध्याय और सरोजिनी नायडू के साथ मिलकर महिलाओं को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने में मुख्य भूमिका निभाई।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, आचार्य जेबी कृपलानी, सीमांत गाँधी खान अब्दुल गफ्फार खान आदि देश के तमाम बड़े नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों को कस्तूरबा गाँधी के साथ रहकर आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका मिला। महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता आंदोलन की पहली प्रतिभागी कौन थीं? अगर हम जानने की कोशिश करेंगे तो हमारे सामने सिर्फ एक ही नाम आयेगा और वह होगा कस्तूरबा गाँधी का। दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान जब युवा बैरिस्टर गाँधी ने वहां भारतीयों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाई तो कस्तूरबा ही थीं, जिन्होंने उनकी आवाज को दम दिया और इसके लिए उन्हें भी तीन महीने जेल में रहना पड़ा था। वह जब लौटकर भारत आईं तब राजकोट में अपने परिवार से मिलकर खुश थीं, लेकिन गाँधी जी की बेचैनी उनसे छिपी नहीं और वह आजादी के रण में उनके साथ हो लीं। अपने एक वक्तव्य में गाँधी जी ने कहा था, कैद के दौरान दक्षिण अफ्रीका में कस्तूरबा सिविल सत्याग्रहियों में से एक थीं। उस दौरान उन्होंने कठिन से कठिन शारीरिक जुल्म सहे। वह कई बार कैद में रही थीं, पर उन्होंने उस दौरान सभी कैदियों की तरह असुविधा के बीच ही रहने का विकल्प चुना।
अगर हम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो हमारे मस्तिष्क में अनेकों महिलाओं के नाम प्रतिबिंबित होते हैं, पर वो क्रांतिकारी महिला जिनका नाम ही स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है वो हैं ‘कस्तूरबा गाँधी’। ‘बा’ के नाम से विख्यात कस्तूरबा गाँधी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की धर्मपत्नी थीं और भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। निरक्षर होने के बावजूद कस्तूरबा गाँधी के अन्दर अच्छे-बुरे को पहचानने का विवेक था। उन्होंने ताउम्र बुराई का डटकर सामना किया और कई मौकों पर तो गाँधीजी को चेतावनी देने से भी नहीं चूकीं। बकौल महात्मा गाँधी, “जो लोग मेरे और बा के निकट संपर्क में आए हैं, उनमें अधिक संख्या तो ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर कई गुना अधिक श्रद्धा रखते हैं”। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने पति और देश के लिए व्यतीत कर दिया। इस प्रकार देश की आजादी और सामाजिक उत्थान में कस्तूरबा गाँधी ने बहुमूल्य योगदान दिया। छुआछूत और अस्पृश्यता के खिलाफ भी कस्तूरबा गाँधी का संघर्ष जीवन भर जारी रहा। महात्मा गाँधी के आश्रम में हर जाति, वर्ग धर्म के लोग बिना भेदभाव के एक साथ रहते थे।
कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल सन् 1869 में काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था। कस्तूरबा के पिता ‘गोकुलदास मकनजी’ एक साधारण व्यापारी थे और कस्तूरबा उनकी तीसरी संतान थी। उस जमाने में ज्यादातर लोग अपनी बेटियों को पढ़ाते नहीं थे और विवाह भी छोटी उम्र में ही कर देते थे। कस्तूरबा के पिता महात्मा गाँधी के पिता के करीबी मित्र थे और दोनों मित्रों ने अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने का निर्णय कर लिया था। कस्तूरबा बचपन में निरक्षर थीं और मात्र सात साल की अवस्था में उनकी सगाई 6 साल के मोहनदास के साथ कर दी गई और तेरह साल की छोटी उम्र में उन दोनों का विवाह हो गया। कस्तूरबा का शुरूआती गृहस्थ जीवन बहुत ही कठिन था। उनके पति मोहनदास करमचंद गाँधी उनकी निरक्षरता से अप्रसन्न रहते थे और उन्हें ताने देते रहते थे। मोहनदास को कस्तूरबा का संजना, संवरना और घर से बाहर निकलना बिलकुल भी पसंद नहीं था। उन्होंने ‘बा’ पर आरंभ से ही अंकुश रखने का प्रयास किया पर ज्यादा सफल नहीं हो पाए। विवाह पश्चात पति-पत्नी सन् 1888 तक लगभग साथ-साथ ही रहे, परन्तु मोहनदास के इंग्लैंड प्रवास के बाद वो अकेली ही रहीं। मोहनदास की अनुपस्थिति में उन्होंने अपने बच्चे हरिलाल का पालन-पोषण किया। शिक्षा समाप्त करने के बाद महात्मा गाँधी इंग्लैंड से लौट आये पर शीघ्र ही उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गाँधी 1893 में सिर्फ एक वर्ष के लिए दक्षिण अफ्रीका गये थे लेकिन वहां पर ट्रेन में उनके साथ एक ऐसी घटना घटित हुई, जिसके बाद उनका जीवन ही बदल गया। बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी बनने की कहानी वहीं से शुरू हुई थी। लगभग 21 वर्षों तक महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों के विरुद्ध रंगभेद सहित कई आंदोलन किये और अंग्रेजों को पराजित किया। महात्मा गाँधी सन् 1896 में भारत आये और कस्तूरबा गाँधी को अपने साथ ले गये। दक्षिण अफ्रीका जाने से लेकर अपनी मृत्यु तक ‘बा’ महात्मा गाँधी का अनुसरण करती रहीं। उन्होंने अपने जीवन को गाँधी की तरह ही सादा और साधारण बना लिया था। वे गाँधी जी के सभी कार्यों में सदैव उनके साथ रहीं। बापू ने स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान अनेकों उपवास रखे और इन उपवासों में वो अक्सर उनके साथ रहीं और देखभाल करती रहीं। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने गांधीजी का बखूबी साथ दिया। वहां पर भारतीयों की दशा के विरोध में जब वो आन्दोलन में शामिल हुईं तब उन्हें गिरफ्तार कर तीन महीनों की कड़ी सजा के साथ जेल भेज दिया गया। जेल में मिला भोजन अखाद्य था। अत: उन्होंने फलाहार करने का निश्चय किया पर अधिकारियों द्वारा उनके अनुरोध पर ध्यान नहीं दिए जाने पर उन्होंने उपवास किया जिसके पश्चात अधिकारियों को झुकना पड़ा। सन् 1915 में कस्तूरबा गाँधी भी महात्मा गाँधी के साथ भारत लौट आयीं और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हर कदम पर उनका साथ दिया। कई बार जब गाँधीजी जेल गये तब उन्होंने उनका स्थान लिया। 1917 में चंपारण सत्याग्रह के दौरान वो भी गाँधी जी के साथ वहां गयीं और लोगों को सफाई, अनुशासन, पढाई आदि के महत्व के बारे में बताया। इसी दौरान वो गाँवों में घूमकर दवा वितरण करती रहीं। खेड़ा सत्याग्रह के दौरान भी बा घूम-घूम कर स्त्रियों का उत्साहवर्धन करती रही। सन् 1922 में महात्मा गाँधी की गिरफ्तारी के पश्चात उन्होंने वीरांगनाओं जैसा वक्तव्य दिया और इस गिरफ्तारी के विरोध में विदेशी कपड़ों के परित्याग का आह्वान किया। उन्होंने गांधीजी का संदेश प्रसारित करने के लिए गुजरात के गाँवों का दौरा भी किया। 1930 में दांडी और धरासणा के बाद जब बापू जेल चले गये तब बा ने उनका स्थान लिया और लोगों का मनोबल बढाती रहीं। क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण 1932 और 1933 में उनका अधिकांश समय जेल में ही बीता। सन् 1939 में उन्होंने राजकोट रियासत के राजा के विरोध में भी सत्याग्रह में भाग लिया। वहां के शासक ठाकुर साहब ने प्रजा को कुछ अधिकार देना स्वीकार किया था परन्तु बाद में वो अपने वादे से मुकर गये।
‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार ने बापू समेत कांग्रेस के सभी शीर्ष नेताओं को 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया। इसके पश्चात बा ने मुंबई के शिवाजी पार्क में भाषण देने का निश्चय किया किंतु वहां पहुँचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पूना के आगा खाँ महल में भेज दिया गया। सरकार ने महात्मा गाँधी और महादेव देसाई को भी वहीं रखा था। 15 अगस्त 1942 को महात्मा गाँधी के निजी सचिव स्वतंत्रता सेनानी महादेव देसाई का जेल में रहते हुए निधन हो गया। महादेव देसाई की मौत से कस्तूरबा गाँधी को गहरा सदमा लगा। गिरफ्तारी के बाद से कस्तूरबा गाँधी का स्वास्थ्य बिगड़ता ही गया और कभी भी संतोषजनक सुधार नहीं हुआ। जनवरी 1944 में उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा। उनके निवेदन पर सरकार ने आयुर्वेद के डॉक्टर का प्रबंध भी कर दिया और कुछ समय के लिए उन्हें थोडा आराम भी मिला पर 22 फरवरी 1944 को उन्हें एक बार फिर भयंकर दिल का दौरा पड़ा और बा हमेशा के लिए ये दुनिया छोड़कर चली गयीं। कस्तूरबा गाँधी ने जेल में शहीद की मौत पाई। आजादी की लड़ाई में हर कदम पर महात्मा गाँधी का साथ देने वाली स्वतंत्रता सेनानी कस्तूरबा गाँधी आजादी मिलने के तीन वर्ष पहले आजादी का सपना संजोये इस दुनिया से विदा हो गई। ‘बा’ जैसा आत्मबलिदान वाला व्यक्तित्व अगर गाँधी जी के साथ नहीं होता तो शायद गाँधी जी के सारे अहिंसक प्रयास इतने कारगर सिद्ध नहीं होते। कस्तूरबा गाँधी अपने नेतृत्व के गुणों का परिचय देते हुए स्वाधीनता संग्राम के सभी अहिंसक प्रयासों में अग्रणी बनी रहीं। कस्तूरबा गाँधी के त्याग, बलिदान और समर्पण को हमेशा याद किया जाता रहेगा। आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार महान स्वतंत्रता सेनानी कस्तूरबा गाँधी को उनकी जयंती पर नमन करता है। – लेखक- धर्मपाल गाँधी