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राजस्थान में बारूद की तोप चलाने वाली महिला:धमाके से बताती हैं सेहरी-इफ्तार का वक्त, 35 किलो की तोप कंधे पर रखकर 2.5 किमी चलती हैं


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राजस्थान में बारूद की तोप चलाने वाली महिला:धमाके से बताती हैं सेहरी-इफ्तार का वक्त, 35 किलो की तोप कंधे पर रखकर 2.5 किमी चलती हैं

राजस्थान में बारूद की तोप चलाने वाली महिला:धमाके से बताती हैं सेहरी-इफ्तार का वक्त, 35 किलो की तोप कंधे पर रखकर 2.5 किमी चलती हैं

अजमेर : अजमेर में रमजान की सेहरी और इफ्तार का समय सिर्फ अलार्म या बुजुर्गों की आवाज से नहीं तय होता। यह तय होता है एक तोप के धमाके से। इस तोप को दागती हैं फौजिया खान। राजस्थान की इकलौती महिला तोपची। लोग इन्हें फौजिया तोपची भी कहते हैं। फौजिया की कहानी जानने मीडिया टीम अजमेर पहुंची।

पढ़िए पूरी रिपोर्ट…

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर खड़ी चढ़ाई पर शीशाकान पीर रोड, तकिया गदरशाह में फौजिया का घर है। सुबह के 3:15 बज रहे थे। घर की महिलाएं सेहरी के इंतजाम कर रही थीं। वहीं फौजिया भाई मुहम्मद खुर्शीद के साथ तोप की नाल में गोला भर रही थीं।

करीब 5 किलो वजनी हथौड़े की मदद से फौजिया ने पहले थोड़ा सा बिजली बारूद (पटाखों में इस्तेमाल होने वाला सामान्य बारूद) भरा। इसके बाद गोबर के उपले से तोप की नाल को बंद कर दिया। सुबह 3.30 बजे तोप को दरगाह के ठीक सामने ऊंचाई पर रखने के बाद एक तय वक्त पर अगरबत्ती से उसके पलीते को सुलगाते ही चिंगारी, धमाके और धुएं के गुबार के साथ ही 24वें रोजे की सेहरी की शुरुआत हुई। इसके बाद फौजिया ने परिवार के साथ बैठकर सेहरी की। दुआ करने के बाद हमने उनके सफर के बारे में उनसे बातें शुरू की।

8 साल की उम्र में पहली बार चलाई तोप, सात पीढ़ियां गुजरी

सात पीढ़ियों में तोप चलाने वाली वो पहली लड़की हैं। रमजान ही नहीं दरगाह से जुड़े सभी बड़े आयोजनों, उर्स, जुम्मा और ईद, बकरीद पर भी तोप चलाती हैं। उनका यह खानदानी काम है। उनके परिवार के अलावा यह कोई और नहीं कर सकता। फौजिया बताती हैं वर्तमान में आठवीं पीढ़ी यह जिम्मेदारी निभा रही है।

उन्हें तोप चलाते 30 साल हो गए हैं। उन्होंने 8 की उम्र में पहली बार पिता मुहम्मद हनीफ की देख रेख में तोप चलाई थी। 35 किलो वजन की यह तोप मेजर लोडिंग धमाकड़ी के नाम से मशहूर है। ख्वाजा गरीब नवाज की पैदाइश के मौके पर इसी से 21 तोपों की सलामी दी जाती है। गरीब नवाज के उर्स की शुरुआत 25 तोपों की सलामी से होती है। फौजिया की शुरुआत से पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी। बचपन से दरगाहों में जाना, पांच वक्त की नमाज पढ़ना और रीति रिवाज के मुताबिक रहना पसंद था। खेल में गिल्ली डंडा, क्रिकेट और बैडमिंटन पसंद था।

फौजिया ने 8 साल की उम्र में पहली बार तोप चलाई। अब उन्हें तोप चलाते 30 साल हो गए हैं।
फौजिया ने 8 साल की उम्र में पहली बार तोप चलाई। अब उन्हें तोप चलाते 30 साल हो गए हैं।

35 किलो की तोप कंधे पर रखकर लाती हैं

करीब ढाई किलोमीटर की ऊंचाई से वो 35 किलो की तोप अपने कंधे पर रखकर नीचे उतरती और चौकी से वापस लाती हैं। फौजिया संभवतः भारत की वर्तमान में अकेली महिला तोपची हैं। हालांकि रिश्तेदार और जानने वालों में कुछ लोगों का लड़की होकर तोप चलाना पसंद नहीं आता, लेकिन वह उनकी फिक्र किये बिना अपना काम बदस्तूर कर रही हैं। उनकी शादी करने की भी कोई इच्छा नहीं है। 7 बहनों में सिर्फ वही परिवार की इस विरासत को लेकर आगे बढ़ा रही हैं। दरगाह कमेटी की ओर से मिली जानकारी में सामने आया कि नियमों के अनुसार, तोपची का पार्ट टाइम पद है, जिस पर फौजिया के परिवार को तोप चलने की परमिशन दी गई है।

फौजिया का कहना है कि उन्हें ये काम काफी पसंद है क्योंकि वे अपने परिवार को मिली जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही हैं।
फौजिया का कहना है कि उन्हें ये काम काफी पसंद है क्योंकि वे अपने परिवार को मिली जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही हैं।

घर में जनाजा भी रखा हो तो तोप चलाने की जिम्मेदारी पहले

फौजिया कहती हैं तोप चलाना शौक नहीं, खानदारी जिम्मेदारी है। अगर घर में जनाजा रखा है और तोप दागने का वक्त है तो पहले तोप चलाने की जिम्मेदारी निभाते हैं। 18 साल पहले उनकी 10 साल की भतीजी का इंतकाल हो गया था। तब भी उन्होंने पहले तोप दागने की जिम्मेदारी निभाई थी।

मीडिया टीम जिस रात फौजिया के घर पहुंची, उसी दिन उनके मौसा का इंतकाल हुआ था। दिन भर जनाजे से जुड़ी जिम्मेदारियों के बाद फौजिया देर रात करीब डेढ़ बजे घर वापस आई थी। दो घंटे बाद ही फौजिया ने तोप दागकर पूरे अजमेर शहर को सेहरी करने का इशारा देने की जिम्मेदारी निभाई। घर चलाने के लिए फौजिया फूल और किराने की दुकान भी चलाती हैं।

रमजान में रोज तीन बार चलाती हैं तोप

फौजिया बताती हैं- रमजान में तीन तोपे रोज चलती हैं। पूरा शहर इनकी आवाज से रोजा रखता और खोलता है। आबादी कम थी तो तोप की आवाज दूर तक जाती थी। अब तोप की आवाज सुनते ही मस्जिदों में लगे सायरनों से इशारा किया जाता है कि तोप दागी जा चुकी है।फौजिया के परिवार को दरगाह से ही इसका खर्च मिलता है जिसे बारूद सरफा कहते हैं। चार आने…आठ आने से शुरू होकर यह खर्च अब 3 हजार रुपए महीना पहुंच गया है। सालाना 5 हजार मेडिकल के मिलते हैं। फौजिया के पिता को ढाई रुपए मिलते थे।

सेहरी की तोप दागने के लिए फौजिया और परिवार अलार्म लगाकर सोता है। जिम्मेदारी का ऐसा एहसास है कि अलार्म से पहले पूरा परिवार जाग जाता है। आज तक नहीं हुआ कि तोप चलाने में देरी हुई हो। तोप चलने में देरी न हो इसलिए फौजिया और उनके परिवार की नजर सेहरी और इफ्तार के समय दरगाह की महफिलखाने की खिड़की पर लगी रहती है। वहां से टॉर्च और झंडे का इशारा किया जाता है। इसके बाद फौजिया तोप चलाती हैं।

पहले आबादी कम थी तो तोप का धमाका दूर तक सुनाई देता था। अब तोप की आवाज सुनते ही मस्जिदों में लगे सायरनों से इशारा किया जाता है कि तोप दागी जा चुकी है।
पहले आबादी कम थी तो तोप का धमाका दूर तक सुनाई देता था। अब तोप की आवाज सुनते ही मस्जिदों में लगे सायरनों से इशारा किया जाता है कि तोप दागी जा चुकी है।

एक महीना घर में, बाकी वक्त थाने में रहती है तोप

तोप के लिए खास गाइडलाइन बनी हुई है। फौजिया ने बताया कि जो बारूद इसमें इस्तेमाल होता है, उसकी परमिट दरगाह के नाजिम से लिखवानी पड़ती है। दरगाह कमिटी की ओर से तोप चलाने के लिए कलेक्टर से परमिशन ली जाती है। परमिशन की एक कॉपी दरगाह कमिटी के पास और दूसरी इनके पास आती है। उस कॉपी को थाने में सर्किल इंस्पेक्टर को दिखाने के बाद तोप चला सकते हैं। बारूद ब्यावर से आगे किसी गांव से लाया जाता है। एक बार में 4 से 5 किलो बारूद लाते हैं पूरे महीने के लिए। रमजान के महीने में यह तोप फौजिया के घर में रहती है। इसके अलावा हर सप्ताह जुम्मे के दिन चलाने के बाद इसे दस्तखत और पूरे रिकॉर्ड के साथ दरगाह थाने की त्रिपोलिया गेट पुलिस चौकी में जमा कराया जाता है।

पुरानी तोप एक क्विंटल वजनी थी

फायर करते वक्त तोप की नाल का मुंह थोड़ा ऊपर रखते हैं। इससे निकलने वाला बारूद और उपलों के टुकड़े जमीन पर आते-आते बुझ जाते हैं। जिससे किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता। इनके दादा परदादा के पास पहले एक क्विंटल से ज्यादा वजनी पहियों वाली तोप थी। जिसका धमाका और भी जबरदस्त होता था। बढ़ती आबादी को देखते हुए प्रशासन ने उस तोप को जमा कर छोटी कॉम्पैक्ट तोप दी है।

फौजिया कहती हैं-लड़कियां हवाई जहाज चलाती हैं, गाड़ी चलाती हैं, खेलती हैं। उन्हें सम्मान मिलता है। अकेली महिला तोपची होने के बावजूद मुझे वो सम्मान नहीं मिलता। इसका दुख है, लेकिन गरीब नवाज ने जो दिया है, उसके लिए दिल से शुक्रिया अदा करती हूं।

अब 9 साल की भतीजी सहर को भी सीखा रही हैं

फौजिया 9 साल की भतीजी सहर को भी तोप दागना सिखा रही हैं। कहती हैं- मैं तोप दागने वाली खानदान की पहली लड़की थी, लेकिन आखिरी नहीं होऊंगी। यह पूछने पर कि अगर रोजगार के तौर पर बेहतर अवसर मिलता है तो क्या वे ये काम छोड़ देंगी, फौजिया ने जवाब दिया- ये काम ही अब मेरी जिंदगी है। मदीना शरीफ (सऊदी अरब) में रमजान माह में मेरे तोप चलाने को लाइव भी दिखाया जाता है। मेरे लिए तोप के बारूद की गंध दुनिया की किसी भी खुशबू से ज्यादा अजीज है।

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