मंडावा में विदेशी सैलानियों ने उठाया होली का लुत्फ:लोक कलाकारों के साथ थिरके; रंगों और संस्कृति का अनूठा संगम
मंडावा में विदेशी सैलानियों ने उठाया होली का लुत्फ:लोक कलाकारों के साथ थिरके; रंगों और संस्कृति का अनूठा संगम

मंडावा : झुंझुनूं के मंडावा कस्बा अपनी समृद्ध विरासत, भव्य हवेलियों और लोकसंस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। होली के त्योहार पर यहां का वातावरण और भी विशेष हो जाता है। हर साल की तरह इस बार भी मंडावा में होली का उत्सव धूमधाम से मनाया गया, जिसमें देशी-विदेशी सैलानियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
विदेशी पर्यटकों ने न केवल इस रंगों के पर्व का आनंद लिया, बल्कि पारंपरिक लोकनृत्य, संगीत और होलिका दहन की परंपरा को भी करीब से जाना। राजस्थान की संस्कृति से प्रभावित इन सैलानियों ने राजस्थानी वेशभूषा में सजे लोक कलाकारों के साथ कदम थिरकाए और जमकर आनंद उठाया।

मंडावा में होली का ऐतिहासिक महत्व
मंडावा सिर्फ एक ऐतिहासिक शहर ही नहीं, बल्कि यह राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखने वाला स्थान भी है। यहां होली का पर्व विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह न केवल रंगों का उत्सव है, बल्कि सामाजिक समरसता और आनंद का प्रतीक भी है।
यहां पर होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन किया जाता है, जिसमें स्थानीय लोगों के साथ विदेशी सैलानी भी सम्मिलित होते हैं।

विदेशी पर्यटकों ने जाना होलिका दहन का महत्व
इस वर्ष भी मंडावा में होलिका दहन का भव्य आयोजन हुआ। कस्बे सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस परंपरा को पूरी श्रद्धा के साथ निभाया गया। गणेश मंदिर, गढ़ परिसर, डुमरा की ढाणी सहित विभिन्न स्थानों पर विधि-विधान से होलिका दहन किया गया।
होलिका दहन के अवसर पर विदेशी पर्यटकों ने इस परंपरा को बहुत ध्यान से देखा और इसके ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व को समझने का प्रयास किया। उन्हें बताया गया कि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।

राजस्थानी लोकसंगीत और नृत्य का आनंद
मंडावा में होली केवल रंगों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसे मनाने के पारंपरिक तरीके भी बेहद खास होते हैं। इस बार भी होली के अवसर पर गींदड़ नृत्य का आयोजन किया गया, जो इस पर्व का एक अभिन्न अंग है।
राजघराने के मुक्तिधाम परिसर में आयोजित गींदड़ नृत्य में सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ी। पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में सजे लोक कलाकारों ने जब अपनी प्रस्तुति दी, तो विदेशी सैलानी भी खुद को रोक नहीं पाए। उन्होंने मंच पर आकर राजस्थानी कलाकारों के साथ नृत्य किया और इस अनूठे सांस्कृतिक आयोजन का भरपूर लुत्फ उठाया।
गींदड़ नृत्य के अलावा, डफ, चंग और धमाल जैसे अन्य पारंपरिक नृत्य भी प्रस्तुत किए गए, जिन्हें देखकर विदेशी मेहमान मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने इस अनूठे अनुभव को अपने जीवन का एक अविस्मरणीय क्षण बताया।

धुलंडी पर विदेशी मेहमानों ने जमकर खेली होली
होली के दूसरे दिन, जिसे धूलंडी कहा जाता है, मंडावा में रंगों की धूम मच गई। स्थानीय लोग और पर्यटक एक-दूसरे को गुलाल लगाकर इस पर्व की खुशी मनाने लगे।
विदेशी सैलानियों ने भी धूलंडी के इस रंगीन माहौल का खूब आनंद लिया। उन्होंने पारंपरिक तरीके से सूखी गैर का आयोजन देखा और उसमें भाग भी लिया। विदेशी पर्यटक जब रंग और गुलाल में सराबोर होकर नृत्य करने लगे, तो स्थानीय लोग भी उनके साथ झूमने लगे।
धूलंडी के दिन पूरा मंडावा गुलाल और रंगों से भर गया। चारों ओर सिर्फ खुशियां और उमंग का माहौल था। पर्यटकों ने बताया कि उन्होंने इससे पहले कभी भी इतने जीवंत तरीके से होली नहीं मनाई थी।
विदेशी सैलानियों के लिए यादगार अनुभव
मंडावा की होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक अनुभव भी है, जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। विदेशी पर्यटकों ने यहां की परंपराओं को न सिर्फ करीब से देखा, बल्कि उनमें भाग लेकर खुद को भी इस संस्कृति का हिस्सा बनाया।
उन्होंने कहा कि राजस्थान की संस्कृति, लोकसंगीत, पारंपरिक नृत्य और रंगों का यह संगम अविस्मरणीय है। वे अगली बार भी होली मनाने के लिए भारत जरूर आएंगे और अपने दोस्तों को भी इस अनुभव के बारे में बताएंगे।