पुलिस जाब्ते के साथ निकाली दलित दूल्हे की बिंदौरी
मेहाड़ा के गोविंददासपुरा गांव का मामला, चार थानों का जाब्ता रहा तैनात
मेहाड़ा : खेतड़ी उपखण्ड के मेहाड़ा थाना इलाके की रामपुरा ग्राम पंचायत के गांव गोविंदासपुरा में शनिवार को पुलिस जाब्ते के साथ दलित दूल्हे की बिंदौरी निकाली गई। इस दौरान चार थानों समेत क्यूआरटी टीम के 60 से अधिक जवान तैनात रहे। जानकारी के अनुसार गोविंददासपुरा गांव के मेघवाल समाज के राकेश कुमार की शनिवार को बारात रवाना हुई। बारात रवाना होने से पहले गांव में दूल्हे को घोड़ी पर बैठाकर बिंदौरी निकाली गई थी। तीन दिन पहले गांव के स्वर्ण जाति के कुछ युवकों ने दूल्हे व उसके परिवार को घोड़ी पर बैठकर बिंदौरी नहीं निकालने के लिए धमकाया था। इस धमकी के बाद राकेश के परिजनों ने एसपी को इसकी शिकायत की थी। तब दो दिन पहले पुलिस समझाइश के लिए गांव में गई थी।

लोगों ने विरोध किया था। उस समय पुलिस ने डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों को पाबंद कर दिया था। लेकिन फिर भी संभावित विरोध को देखते हुए शनिवार को मेहाड़ा, खेतड़ी, खेतड़ी नगर व बबाई थाने के जवानों सहित पुलिस लाइन से क्यूआरटी टीम को तैनात किया गया। दोपहर तीन बजे बिंदौरी शुरू हुई। डेढ़ घंटे तक बिंदौरी निकाली गई। इसके बाद बारात नारनौल के शोभापुर के लिए रवाना हुई।
तीन घंटे तक गांव में पुलिस की छावनी जैसा रहा माहौल
भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष विकास आल्हा, प्रदेश सचिव रवि मारोड़िया के नेतृत्व में पदाधिकारी भी पहुंचे थे। इस अवसर पर मेहाड़ा थानाधिकारी भजनाराम, खेतड़ी नगर थानाधिकारी विजय चंदेल, बबाई थानाधिकारी कैलाशचंद्र खेतड़ी, थानाधिकारी गोपाललाल जांगिड़ समेत क्यूआरटी समेत 60 पुलिस जवान तैनात रहे। मेहाड़ा थानाधिकारी भजनाराम ने बताया कि दलित दूल्हे को घोड़ी पर नहीं बैठने देने की शिकायत मिली थी। इसके बाद पुलिस ने दो दिन पहले ही पहुंचकर कुछ लोगों को पाबंद कर दिया था। शनिवार को बिंदौरी के समय सुरक्षा के लिए पुलिस जाब्ता लगाया गया था। किसी तरह का कोई विरोध नहीं हुआ। युवक ने हिम्मत दिखाई, पुलिस की मदद से निकली बिंदोरी रामपुरा पंचायत के गोविंददासपुरा में दलित समाज के आधा दर्जन घर हैं। यहां स्वर्ण जाति के लोगों की आबादी अधिक है। इसलिए गांव में दलित समाज के युवकों को घोड़ी पर नहीं बैठने दिया जाता था। हरियाणा में हीरोहोंडा कंपनी में काम करने वाले राकेश ने इसे सामंतशाही मानते हुए बिंदोरी निकालने की ठानी। सामाजिक संगठनों से चर्चा की। बाद में प्रशासन से मदद मांगी। संभावित विरोध के बावजूद राकेश कुमार ने घोड़ी पर बैठने का फैसला लिया। इसमें उसे प्रशासन व समाज का सहयोग मिला।
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