हाईकोर्ट ने कहा-कानून की नजर में लिव-इन रिलेशनशिप अवैध नहीं:इसको लेकर केंद्र-राज्य कानून बनाएं; लीगल बिंदु के लिए मामला लार्जर बेंच को रेफर
हाईकोर्ट ने कहा-कानून की नजर में लिव-इन रिलेशनशिप अवैध नहीं:इसको लेकर केंद्र-राज्य कानून बनाएं; लीगल बिंदु के लिए मामला लार्जर बेंच को रेफर
जयपुर : राजस्थान हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए केंद्र और राज्य सरकार को कानून बनाने के लिए कहा है। जस्टिस अनूप ढंड की अदालत ने अपने आदेश में कहा कि हमारे देश में अभी भी लिव-इन रिलेशनशिप को सामाजिक मान्यता नहीं है। लेकिन, कानून की नजर में यह अवैध नहीं है।
देश में लिव-इन रिलेशनशिप पर कानून नहीं होने से न्यायालयों के अलग-अलग दृष्टिकोणों के कारण बहुत से लोग भ्रमित हो जाते हैं। ऐसे में समय की मांग के अनुसार संसद और राज्य विधानमंडल को इस मुद्दे पर कानून बनाने पर विचार करना चाहिए।
अदालत ने निर्देश दिया कि कानून नहीं बनने तक लिव-इन रिलेशनशिप के मामलों को देखने के लिए प्रत्येक जिले में प्राधिकरण की स्थापना की जाए। जो इन रिश्तों से संबंधित शिकायतों का निवारण करेगा। वहीं इस संबंध में एक वेबसाइट या वेब-पोर्टल शुरू किया जाए, जिससे ऐसे रिश्ते से उत्पन्न होने वाले मुद्दों का समाधान किया जा सके।
वहीं लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले शादीशुदा व्यक्तियों को क्या कोर्ट संरक्षण दे सकता है। इस लीगल बिंदु को तय करने के लिए मामले को लार्जर बेंच को रेफर किया गया है। कोर्ट ने रीना और अन्य याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद 6 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था, जिसके बाद बुधवार को फैसला सुनाया।
अदालत ने कहा- कानून बनाना समय की मांग
अदालत ने कहा- अब समय की मांग है कि लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कानून बनाया जाए। जो लिव-इन रिलेशनशिप के मामले को देखें और ऐसे रिश्ते में रहने वाले जोड़ों को अधिकार प्रदान करें और उन पर दायित्व लागू करें।
वहीं ऐसे रिश्ते में पीड़ित बच्चों और महिला साथियों को सहायता देने के लिए एक अलग कानून बनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही ऐसे रिश्ते से पैदा हुए बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पालन-पोषण की जिम्मेदारी वहन करने के लिए बाल योजना के रूप में पुरुष और महिला साझेदारों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
अदालत ने मुख्य सचिव, प्रमुख शासन सचिव विधि और केंद्रीय सचिव को कॉपी भेजने के निर्देश दिए हैं। वहीं कोर्ट के आदेश की पालना रिपोर्ट 1 मार्च को पेश करने के लिए कहा है।
लीगल बिंदु के लिए मामला लार्जर बेंच को रेफर
अदालत ने आदेश में कहा कि इस अदालत के सामने कई ऐसे मामले आए हैं, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाला पुरुष पहले से विवाहित है और वह बिना तलाक के किसी अन्य महिला के साथ लिव-इन में रह रहा है। इसी तरह से कुछ मामलों में महिला विवाहित है, लेकिन वह दूसरे पुरुष के साथ रह रही है। कुछ मामलों में दोनों विवाहित हैं, लेकिन दूसरे पार्टनर के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में हैं।
इन जोड़ों ने फैमिली मेंबर्स और अन्य लोगों से जान का खतरा बताते हुए अदालत से सुरक्षा की मांग की है। लेकिन, इसी तरह के मामलों में पहले राजस्थान हाईकोर्ट की अलग-अलग सिंगल बेंच के अलग-अलग मत हैं। कुछ मामलों में सुरक्षा प्रदान की गई है। वहीं कुछ मामलों में बेंच ने सुरक्षा देने से मना कर दिया।
इसलिए इस न्यायालय का मत है कि ‘क्या एक विवाहित व्यक्ति, बिना अपने विवाह को विघटित किए, एक अविवाहित व्यक्ति के साथ रह रहा है और क्या दो अलग-अलग विवाहों वाले दो विवाहित व्यक्ति, बिना अपने विवाह को विघटित किए, लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रहे हैं, वे न्यायालय से संरक्षण आदेश प्राप्त करने के हकदार हैं?’ इस लीगल बिंदु को तय करने के लिए मामला लार्जर बेंच को रेफर किया जाता है।