अवैध ब्लड से प्लाज्मा निकालकर बेचने की आशंका:संचालक ने चीन से ली डिग्री, परमिशन नहीं मिली तो फर्जी दस्तावेज पर दूसरे को बनाया मेडिकल ऑफिसर
अवैध ब्लड से प्लाज्मा निकालकर बेचने की आशंका:संचालक ने चीन से ली डिग्री, परमिशन नहीं मिली तो फर्जी दस्तावेज पर दूसरे को बनाया मेडिकल ऑफिसर
जयपुर : जयपुर पुलिस ने 27 जनवरी को खून की तस्करी कर रहे तीन युवकों को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने उनके कब्जे से 255 यूनिट ब्लड और क्रेटा कार जब्त की थी। इस मामले में प्रदेश के ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट ने पड़ताल शुरू कर दी है। सामने आया है कि ब्लड सवाईमाधोपुर के जिस महादेवी ब्लड बैंक में सप्लाई होना था, वहां मेडिकल ऑफिसर टेंपरेरी बेसिस पर काम कर रहा था। नियमानुसार ब्लड बैंक चलाने के लिए डॉक्टर फुल टाइम चाहिए होता है।
ब्लड बैंक के संचालक ने खुद चीन से मेडिकल की डिग्री ली थी। परमिशन नहीं मिली तो झूठे दस्तावेज पेश कर दूसरे डॉक्टर को मेडिकल ऑफिसर बना दिया था। अंतरराज्यीय गैंग से भी संबंध होने की आशंका है।
प्रदेश में रक्तदान शिविरों के माध्यम से एकत्रित ब्लड के अनुचित उपयोग और नियमों के उल्लंघन का मामला सामने आया है। जांच में 255 यूनिट्स ब्लड बिना उचित दस्तावेजों और अनुमति के ट्रांसपोर्ट किया जा रहा था और ब्लड बैग में सामान्य से अधिक मात्रा (450 के बजाय 550-600 एमएल) पाई गई।
चीन से ली डिग्री, अपनी जगह किसी और को बना रखा मेडिकल अफसर
सवाई माधोपुर के जिस महादेवी ब्लड बैंक में नागौर के मकराना ब्लड सेंटर से 255 यूनिट ब्लड भेजा जा रहा था उसका संचालक डॉ. देवेंद्र ही नियम विरुद्ध ब्लड की सप्लाई लेने के लिए आया था। औषधि विभाग से मिली जानकारी में सामने आया कि महादेवी ब्लड सेंटर का संचालक डॉ. देवेंद्र शर्मा ने चीन के किसी मेडिकल कॉलेज से डिग्री ली है। प्रैक्टिस के लिए जरूरी नेशनल मेडिकल कौंसिल की परीक्षा को पास नहीं कर पाया था। नियमानुसार वह ब्लड बैंक संचालित कर ही नहीं सकता था और न ही ब्लड के परिवहन में किसी तरीके से शामिल हो सकता था।
दो साल पहले उसने महादेवी ब्लड बैंक शुरू किया था। यहां उसकी जगह डॉ. तपेंद्र कुमार चौधरी अस्थायी तौर पर मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम कर रहे थे। लाइसेंस लेने के समय जो दस्तावेज जमा करवाए गए थे उसमे यह कहा गया था कि डॉ. तपेंद्र यहां फुल टाइम काम कर रहे हैं।
अब औषधि नियंत्रक विभाग जांच के बाद न केवल ब्लड बैंक का लाइसेंस निरस्त करेगी बल्कि दोनों ही डॉक्टर्स के खिलाफ राजस्थान मेडिकल कौंसिल और नेशनल मेडिकल कौंसिल को भी कार्रवाई के लिए लिखेगी। साथ ही वर्तमान में जहां डॉ. तपेंद्र काम कर रहे हैं उन्हें वहां से भी टर्मिनेट किया जाए।
सितंबर में भी 120 यूनिट्स ब्लड पहुंचाया था
ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट की जांच में सवाईमाधोपुर के महादेवी ब्लड सेंटर पर मकराना ब्लड बैंक से पहले भी ब्लड सप्लाई का कनेक्शन सामने आया है। जांच में इसके रिकॉर्ड मिले हैं कि बीते साल सितंबर में भी 120 यूनिट्स ब्लड की सप्लाई की गई थी। मकराना से ब्लड सप्लाई करवाने का कोई विशेष कारण तो सामने नहीं आया है लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि सवाई माधोपुर क्षेत्र में रक्तदान ज्यादा न हो पाने के कारण दूसरे ब्लड सेंटर से सप्लाई करवाया जाता हो।
आरोपियों ने जांच टीम को बताया की 255 यूनिट्स की डिलीवरी महादेवी ब्लड बैंक में करने जा रहे थे। रैकेट से जुड़े होने या राजस्थान के बाहर सप्लाई करने पर भी जांच की जा रही है। मकराना ब्लड सेंटर की स्टोरेज क्षमता 500 से 1000 बैग्स की ही है। कैंप के दिन 153 रक्तदाताओं का ही रजिस्ट्रेशन हुआ था। क्षमता से अधिक ब्लड स्टोरेज करना और बिना टेस्टिंग और प्रॉपर दस्तावेज के ही उसे दूसरे ब्लड बैंक को देना आरोपियों की मंशा जाहिर करती है कि यह सोची-समझी योजना के तहत कर रहे थे।
पहले से ही थी ब्लड बेचने की तैयारी
मकराना में जहां ब्लड कैंप लगा था, उसमें अन्य ब्लड बैंक भी शामिल हुए थे। उनमें दो गवर्नमेंट ब्लड बैंक अजमेर से आए थे। दो जोधपुर, डीडवाना, लाडनूं, मकराना और नागौर के अलावा जयपुर से दुर्लभ जी ब्लड सेंटर भी था। अनुमान से ज्यादा ब्लड डोनेशन आने से टेक्नीशियन की नीयत खराब हो गई।
यह भी सामने आया की आरोपी ड्राइवर श्रवण सिंह, तकनीशियन मुहम्मद जाबिर और असिस्टेंट तकनीशियन मुहम्मद अमीन काफी अरसे से इस काम में लिप्त हैं। हैरानी की बात ये है की जब कैंप ही 25 जनवरी को आयोजित किया गया तो बिना टेस्टिंग के 26 जनवरी को यह कैसे पता चला कि ब्लड की अधिकता है। इसलिए इसे दूसरे ब्लड सेंटर को दे दिया जाए।
ट्रांसपोर्टेशन के वक्त भी दस्तावेज नहीं पाए गए। औषधि विभाग को अब तक 255 यूनिट ब्लड से जुड़े दस्तावेज नहीं मिले हैं। ब्लड बैग सप्लाई करने वाली कंपनी की भी जांच करवाई है। जांच में सामने आया कि महादेवी ब्लड बैंक ने इन बैग्स को खरीदा है। यानि ब्लड बैंक की ओर से ही ये बैग्स उपलब्ध करवाए गए थे। जयपुर के अलावा, अजमेर, नागौर और कुचामन से भी टीम ने ब्लड बैंक की जांच की है।
ये अनियमितता मिली दोनों ब्लड सेंटर्स पर
दोनों ब्लड बैंक में जांच के दौरान लैब तकनीशियन, मेडिकल ऑफिसर इंचार्ज अनुपस्थित पाए गए। उनकी गैर मौजूदगी में ब्लड डोनेशन कैंप लगवाए गए। इसके अलावा दोनों ही ब्लड बैंक में रिकॉर्ड की मेंटेनेंस को लेकर भी काफी अनियमितता मिली है। ब्लड बैग्स के टेस्टिंग रिकॉर्ड से जुड़े दस्तावेज वो पेश नहीं कर पाए। इसके अलावा कोल्ड स्टोरेज, सार संभाल और स्टाफ के प्रशिक्षण जैसी कमियां भी सामने आई हैं।
मकराना ब्लड सेंटर के मेडिकल ऑफिसर डॉ. बजरंग लाल का कहना है कि वह 25 और 26 जनवरी को कैंप आयोजन के वक्त डायलिसिस के लिए मेडिकल लीव पर थे। इसलिए उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। उनकी अनुपस्थिति में सेंटर के लैब तकनीशियन ही कैंप का आयोजन कर रहे थे। जबकि बिना मेडिकल ऑफिसर की मौजूदगी में ऐसा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा महादेवी ब्लड सेंटर में एक ही ब्लड बैग (एक ही नंबर का) दो अलग अलग पेशेंट को चढ़ाया गया था। इसके लिए भी विभाग ने सेंटर को नोटिस भेजकर स्पष्टीकरण मांगा है।
फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा बनाकर बेचने का भी अंदेशा
डोनर की सहमति के बिना ज्यादा ब्लड निकालना न केवल नियम विरुद्ध है, बल्कि यह गाइड लाइन का भी उल्लंघन है। ड्रग कंट्रोलर अजय फाटक का कहना है कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अधिक रक्त संग्रह के पीछे फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा निकालकर फ्रैक्शनेशन यूनिट्स को ऊंचे दामों पर बेचना भी मकसद हो सकता है। फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा से हीमोग्लोबिन तैयार होता है, जिसकी वर्तमान में कीमत 3600 रुपए प्रति लीटर या इससे भी ज्यादा हो सकती है।
अनुमान है कि 255 यूनिट्स ब्लड बैग्स से 180 से 220 यूनिट तक प्लाज्मा निकल सकता है। यानी करीब 153 लीटर प्लाज्मा। चूंकि बैग्स में 550 से 600 एमएल ब्लड भरा था। इससे अंदाजा है कि यह मात्रा और ज्यादा हो सकती है। अंदाजा है कि 255 यूनिट ब्लड बैग्स से करीब 5.51 लाख रुपए की कमाई कर सकते थे। फाटक ने बताया कि मामले में जांच पूरी होने के बाद औषधि नियंत्रक विभाग की ओर से ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट-1940 के तहत कार्रवाई की जाएगी।
4 दिन में पता लगेगा कितना उपयोग लायक
जयपुरिया हॉस्पिटल के ब्लड बैंक इंचार्ज और प्रमुख विशेषज्ञ डॉ. राजाराम बरिसा कहते हैं- 255 यूनिट ब्लड औषधि नियंत्रक विभाग की ओर से भिजवाया गया है। अभी इसकी टेस्टिंग (मलेरिया, हेपेटाइटिस-ए, हेपेटाइटिस-सी, एचआईवी, सिफलिस) की जानी है। एक बार में 96 बैग्स की ही टेस्टिंग हो सकती है। इसमें तीन चार दिन का समय लगेगा। सभी बैग्स की टेस्टिंग कर एक्सपायर और उपयोग किया जाने वाला ब्लड अलग करेंगे और इसकी सूचना विभाग को भिजवा देंगे।
इन बैग्स को बिना टेस्टिंग के ही दूसरे ब्लड सेंटर भिजवाया जा रहा था जो नियम विरुद्ध है। बिना टेस्टिंग किए ब्लड का ट्रांसपोर्टेशन नाको (NACO यानि National AIDS Control Organization) की गाइड लाइन का उल्लंघन है। जो ब्लड बैग मकराना सेंटर ने डोनेशन में यूज किया है, उसकी लाइफ 42 दिन की है। औषधि नियंत्रक विभाग को कैंप के जब्त किए गए दस्तावेजों में 25 जनवरी को 300 यूनिट और 26 जनवरी को 13 यूनिट ब्लड एकत्र होना पाया गया है।
क्या है ब्लड ट्रांसपोर्टेशन की प्रक्रिया
एक ब्लड बैंक से दूसरे ब्लड बैंक तक ब्लड ट्रांसपोर्टेशन करने के लिए स्टेट और नेशनल स्तर की गाइडलाइन बनी हुई है। इसमें ड्यूल रेगुलेटरी मैकेनिज़्म है। ब्लड बैंक को औषधि नियंत्रण विभाग से लाइसेंस मिलने के बाद ब्लड कैंप लगाने के लिए असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर की अनुमति लेना अनिवार्य है। इसके बाद राजस्थान स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूज़न कौंसिल (RSBTC) को इस बात की सूचना देनी होती है कि कैंप में कितना ब्लड इकट्ठा हुआ, किस ब्लड बैंक के साथ मिलकर कैंप आयोजित किया जा रहा है। ऐसी सभी सामान्य जानकारी कौंसिल को अपडेट करनी होती है। एक ब्लड सेंटर से दूसरे ब्लड सेंटर में ब्लड ट्रांसपोर्ट करते समय नाको की गाइड लाइन का पालन करने के साथ इसकी सूचना RSBTC को देनी होती है।
इसके लिए NACO ने फॉर्म A और फॉर्म B की व्यवस्था की हुई है। जिस संस्था या ब्लड बैंक को ब्लड लेना है वो A और जो ब्लड बैंक खून दे रहा है उसे फॉर्म B भरना होता है। यह दोनों फॉर्म एक तरह के ट्रांजिट चालान की तरह काम करते हैं। जोबनेर में पुलिस कि नाकाबंदी में पकड़े गए मकराना ब्लड बैंक के तीनों कर्मचारियों के पास ये दोनों ही फॉर्म नहीं थे न ही कोई परमिशन ही वो दिखा सके। खून की स्टोरेज भी बेहद लापरवाही से की गई थी।
यह मामला न केवल राजस्थान में रक्तदान शिविरों और ब्लड बैंकों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि उन लाखों लोगों की भावनाओं पर भी आघात करता है जो रक्तदान को जीवन बचाने का जरिया मानते हैं। अब जरूरत है कि रक्तदान शिविरों और ब्लड बैंकों की निगरानी और नियमों को और कड़ा किया जाए, ताकि भविष्य में ऐसी अनियमितताओं को जड़ से खत्म किया जा सके।