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खुद दिव्यांग होते हुए दिव्यांगों व बेसहारा लोगों का सहारा बने चूरू के अख्तर खान रूकनखानी


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खुद दिव्यांग होते हुए दिव्यांगों व बेसहारा लोगों का सहारा बने चूरू के अख्तर खान रूकनखानी

खुद दिव्यांग होते हुए दिव्यांगों व बेसहारा लोगों का सहारा बने चूरू के अख्तर खान रूकनखानी

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान

चूरू : जिला मुख्यालय पर अख्तर खान रूकनखानी आज अपनी पहचान के मोहताज नहीं है दिव्यांग व बेसहारा लोगों की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देने वाले अख्तर खान खुद दोनों पैरों से दिव्यांग है। वे दिव्यांगों और बेसहारा लोगों की लाचारी व बेबसी को भली-भांति समझते और महसूस करते हैं उनका जन्म 1981 में चूरू शहर के वार्ड आठ में हाजी यूसुफ खान रूकनखानी के घर हुआ कई कठिनाइयों का सामना कर 10 तक पढ़ाई की खान का चूरू जिले में रॉयल विकलांग विकास संस्थान के नाम संस्था चल रही है साथ ही उनका स्वयं का मदरसा विद्यालय इंदिरा मेमोरियल पब्लिक स्कूल के नाम से संचालित है खुद दिव्यांग होते हुए अपने यहां आठ लोगों को रोजगार देने में सक्षम है शिक्षा को समर्पित 42 वर्षीय अख्तर खान के मन में बच्चों की शिक्षा को लेकर कई ख्वाब है वह केवल मुस्लिम समाज ही नहीं बल्कि सर्व समाज के बच्चों को शिक्षा देने में जुटे हुए हैं वह दिव्यांग जनों के लिए हमेशा कुछ खास करना चाहते हैं।

खान को 2017 में राज्य स्तरीय विशेष योग्यजन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुके हैं दिव्यांग जनों के लिए समय-समय पर शिविर लगाकर ट्राई साइकिल बैसाखी व्हीलचेयर श्रवण यंत्र ब्लाइंड स्टिक आदि उपलब्ध करवाते रहते हैं हजारों की संख्या में पेशन पालनहार शुरू करवा चुके हैं यह साहसी युवा दिव्यांग पल्स पोलियो वृक्षारोपण नशा मुक्ति ब्लड डोनेट जैसे कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी निभाते रहते हैं तथा दिव्यांग जनों की समस्या को सरकार और प्रशासन तक पहुंचा कर उनका समाधान करवाते रहते हैं खान की पत्नी शमीम बानो भी दिव्यांग है इनके एक पुत्री है अख्तर खान अपना पूरा समय समाज सेवा में लगाते हैं।

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