जंजीरों से लॉक कर प्रेग्नेंट महिला को लाए जिला हॉस्पिटल:साढ़े 4 घंटे में तोड़ा दम, हिमोग्लोबिन था 7 ग्राम; भोपा से झाड़-फूंक कराते रहे
जंजीरों से लॉक कर प्रेग्नेंट महिला को लाए जिला हॉस्पिटल:साढ़े 4 घंटे में तोड़ा दम, हिमोग्लोबिन था 7 ग्राम; भोपा से झाड़-फूंक कराते रहे

बांसवाड़ा : बांसवाड़ा में 22 साल की गर्भवती महिला ने जिला हॉस्पिटल (एमजी अस्पताल) में एडमिट कराने के साढ़े 4 घंटे बाद दम तोड़ दिया। महिला के गले और कमर पर जंजीर बंधी थी और ताला लगा हुआ था। परिजन ने बताया कि वह मानसिक तौर पर बीमार थी। इतने दिन परिजन भोपों से झाड़-फूंक कराते रहे। हालात जब ज्यादा बिगड़ गए तब हॉस्पिटल का रुख किया, लेकिन महिला को बचाया नहीं जा सका। महिला का पीहर कुशलगढ़ थाना इलाके में खेड़िया गांव हैं।

प्रेग्नेंट होने के बाद से बीमार थी
कुशलगढ़ थाना के एएसआई सोहनलाल ने बताया- थाना इलाके के खेड़िया गांव की निवासी शीतल (22) छह महीने की प्रेग्नेंट थी। वह पांच-छह महीने से ही बीमार चल रही थी। पिता श्यामलाल गरासिया बुधवार को सुबह 10 बजे उसे एमजी हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। महिला को एडमिट कर लिया गया। दोपहर 2.30 बजे उसकी मौत हो गई। शीतल का ससुराल पाड़ला गांव में है।
गर्दन-कमर पर सांकल बंधी होने के सवाल पर सोहनलाल ने बताया- परिजन का कहना है कि शीतल बीमार चल रही थी। भोपा से इलाज कराया तो उसने सांकल बांधने को कहा था। हालांकि पीहर और ससुराल वालों ने किसी के खिलाफ कोई मामला नहीं दिया है। किसी पर ऐतराज भी नहीं है।

13 दिन पहले पति पीहर छोड़ गया
शीतल के पिता श्यामलाल ने बताया- बेटी शीतल और पति शैलेश के साथ गुजरात के अहमदाबाद में दिहाड़ी मजदूरी करती थी। वह ज्यादा बीमार रहने लगी तो पति 13 दिन पहले शीतल को पीहर खेड़िया छोड़ गया था। बेटी को छोड़कर वह गुजरात लौट गया। 10 दिन पहले भी बांसवाड़ा हॉस्पिटल में दिखाया था।
श्यामलाल ने बताया- पहले शीतल मजदूरी के लिए गुजरात गई थी। 10 महीने पहले अहमदाबाद में उसकी जान-पहचान पाड़ला गांव (बांसवाड़ा) निवासी शैलेश मइडा के साथ हुई। शैलेश भी मजदूरी करता था। शीतल ने शैलेश से नातरा विवाह कर लिया। वे दोनों साथ मजदूरी करने लगे। उसके पति ने बताया कि प्रेग्नेंट होने के बाद शीतल अजीब हरकतें करने लगी थी।

पिता ने कहा- बस्ती वालों ने कहा तो भोपा के पास गए
मैं पेश से डंपर ड्राइवर हूं। मेरे घर में पत्नी, तीने बेटे और तीन बेटियां हैं। छह बच्चों में शीतल तीसरे नंबर की थी। बेटी को खेड़िया के पास ताम्बेसरा पीएचसी में दिखाया। वहां डॉक्टर ने कहा कि कमजोरी है। दवाएं दी लेकिन तबीयत में सुधार नहीं आया। उसकी तबीयत बिगड़ती तो काबू में नहीं रहती थी। तब बस्ती के लोगों के कहने पर भोपा के पास लेकर गए।
भोपा ने बताया कि शीतल पर भूत-प्रेत का साया है। उसके इलाज के लिए ही कमर और गर्दन को सांकल से बांधने और ताला लगाने की सलाह दी थी। यह भी किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बुधवार को सुबह बेटी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई। वह बेहोश हो गई।
इसके बाद उसे पहले ताम्बेसरा पीएचसी लेकर गए, फिर सज्जनगढ़ सीएचली और उसके बाद बांसवाड़ा जिला हॉस्पिटल लेकर पहुंचे।

डॉक्टर बोले- 7 ग्राम रह गया था हिमोग्लोबिन
एमजी अस्पताल में लाने के बाद गायनिक डॉ. पवन शर्मा ने जांचें करवाईं और इलाज शुरू किया। डॉ. शर्मा के अनुसार- शीतल बेहोश थी, उसे जंजीरों से बंधा देख हैरानी हुई। वह एनीमिया से ग्रसित थी, हिमोग्लोबिन सिर्फ 7 ग्राम था।

उसे परिजन ने 10 दिन पहले भी दिखाया था। इसलिए शीतल के केस की पहले से जानकारी थी। तब फिजीशियन ने जांच कर भर्ती किया था, लेकिन परिजन बिना बताए अचानक यहां से ले गए थे। इसके बाद बुधवार को लाए। शरीर में ब्लड की कमी होने के कारण ब्लड बैंक से इंतजाम भी किया, लेकिन उसने दम तोड़ दिया। इसकी सूचना विभागाध्यक्ष डॉ. पीसी यादव को दी।
महिला की मौत की सूचना डॉक्टरों ने पुलिस को दी। शव को मॉर्च्युरी शिफ्ट कराने और आगे की प्रक्रिया के लिए पुलिस हॉस्पिटल पहुंची तो देखा कि शव जंजीरों में जकड़ा है। मौत के बाद पिता ने मर्ग दर्ज कराई। इसमें किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया।

बांसवाड़ा तहसीलदार दीपक सांखला के निर्देश पर मर्ग दर्ज कर पोस्टमॉर्टम करवाया गया। बुधवार शाम शव परिजनों को सौंप दिया गया।
सीएमएचओ की अपील- न पड़ें भोपा, झाड़-फूंक के चक्कर में
इस मामले में बांसवाड़ा सीएमएचओ डॉ एच एल ताबियार का कहना है- जिले में कुछ जनजातीय लोग अब भी बीमार होने पर भोपा और झोलाछाप के पास जाते हैं। इस कारण हालत अधिक बिगड़ जाती है। कई बार वे इस कंडीशन में मरीज को लाते हैं कि बहुत देर हो चुकी होती है, मरीज को बचा पाना मुश्किल हो जाता है। लोगों से अपील है कि वे झाड़फूंक के चक्कर में न पड़कर डॉक्टर से इलाज लें।