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“रक्षा बंधन” भाई बहन के परस्पर स्नेह, सुरक्षा और विश्वास का प्रतीक है।


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आर्टिकलधर्म/ज्योतिष

“रक्षा बंधन” भाई बहन के परस्पर स्नेह, सुरक्षा और विश्वास का प्रतीक है।

“रक्षाबंधन” दरअसल सही मायने में केवल रक्षासूत्र बांधने से रक्षा नहीं होती रक्षा बंधन का तात्पर्य हमको समझना चाहिए यहां रक्षा बंधन का तात्पर्य एक ऐसे समाज और वातावरण से है जहां हम अपने समाज की प्रत्येक बेटी और महिला को एक सुरक्षित समाज, एकk सुरक्षित वातावरण दे पाएं जहां वे स्वछंदता के साथ अपना जीवन जी पाएं जहां कोई दुराचारी उसकी ओर कुदृष्टि डालने की हिम्मत ना कर पाए।

” रक्षाबंधन” का पर्व सनातन धर्म और संस्कृति की पहचान होने के साथ साथ भाई-बहन के परस्पर स्नेह प्रेम और बहनों की गरिमा अस्मिता की सुरक्षा , सम्मान और विश्वास का प्रतीक है। तमाम विविधताओं के बावजूद रक्षाबंधन हिंदू धर्म का एक ऐसा त्यौहार है, जो धर्म, संप्रदाय और संस्कृतियों की सभी दीवारों को तोड़ कर सभी त्यौहारों के मध्य अपनी एक अलग ही पहचान रखता है। अपने सांस्कृतिक मूल्यों और प्रेमभाव की वजह से देशभर में रक्षाबंधन को सभी वर्ग उत्साह से मनाते हैं। रक्षा बंधन का त्यौहार हर साल सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। रक्षां बंधन का त्यौहार भाई- बहन के अनमोल प्रेम का प्रतीक है। इसलिए हर साल रक्षा बंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनके लंबी उम्र और कुशलता की कामना करती हैं। रक्षा बंधन के दिन प्रत्येक भाई भी अपनी बहन को उसकी अस्मिता , गरिमा और उसके सम्मान की रक्षा का वचन देता है।

एक कथा के अनुसार द्रौपदी ने भगवान कृष्ण के हाथ पर चोट लगने पर, अपने साड़ी का एक हिस्सा फाड़कर उनके हाथों पर बांध दिया था, जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को उसकी रक्षा का वचन दिया था। ऐसे में जब द्रौपदी चीरहरण किया जा रहा था, तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा कर, अपना वचन पूरा किया। एक अन्य लोकप्रिय कहानी यह है कि इस दिन चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूँ को रक्षाबंधन भिजवाया था, जिसके बाद हुमायूँ ने अपने भाई होने का कर्तव्य निभाते हुए गुजरात के सम्राट से चित्तौड़ की रक्षा में रानी कर्णावती की मदद की थी। हालांकि रक्षाबंधन के बारे में कहा जाता है कि यह प्रमुख तौर पर हिंदुओं का त्यौहार है, लेकिन इस त्यौहार की उत्पत्ति की एक कहानी जैन धर्म से भी जुड़ी है जिसके अनुसार बिष्णुकुमार नामक मुनिराज ने इस दिन 700 जैन मुनियों की रक्षा की थी जिसके बाद से ही सभी समाजों में रक्षाबंधन मनाने का सिलसिला शुरू हुआ। ऐसा भी कहा जाता है कि युद्ध के लिए जाने से पहले रक्षा के लिए राजा और उनके सैनिकों के हाथों में उनकी पत्नी और बहनें अनिवार्य रूप से राखी बांधा करती थी। ऐसी मान्यता है कि राखी बांधने से भाइयों के उपर आने वाला संकट टल जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्राकाल का समय अशुभ होता है क्योंकि भद्रा शनिदेव की बहन हैं। ऐसी मान्यता है जब माता छाया के गर्भ से भद्रा का जन्म हुआ तो समूची सृष्टि में तबाही होने लगी और वे सृष्टि को तहस-नहस करते हुए निगलने लगीं। सृष्टि में जहां पर भी किसी तरह का शुभ और मांगलिक कार्य संपन्न होता भद्रा वहां पर पहुंच कर सब कुछ नष्ट कर देती। इस कारण से भद्रा काल को अशुभ माना गया है। ऐसे में भद्रा काल होने पर राखी नहीं बांधनी चाहिए। इसके अलावा भी एक अन्य कथा है। रावण की बहन ने भद्राकाल में राखी बांधी जिस कारण से रावण के साम्राज्य का विनाश हो गया है। इस कारण से जब भी रक्षा बंधन के समय भद्राकाल होती है उस दौरान राखी नहीं बांधी जाती है।

यह पर्व न सिर्फ भाई और बहनों के बीच मौजूद प्रेम को और भी गहरा करता है, बल्कि जीवन भर उनके साथ इसकी यादें भी जुड़ी रहती हैं। यहां जरूरी है कि भाई अपनी बहनों के साथ साथ समस्त समाज की बहनों को स्नेह के साथ साथ उनकी सम्मान और गरिमा की सुरक्षा की गारंटी देने का प्रयत्न करें। क्योंकि आज के कलियुग में बहनों बेटियों महिलाओ के साथ बढ़ती बलात्कार दुराचार की घटनाओं को देख सुन आत्मा कचोटती है कि हम किस समाज मैं रह रहे हैं क्या सिर्फ एक दिन रक्षा बंधन के नाम का धागा बांधने के बाद हम भूल जाते हैं कि हमको अपनी ही नहीं बल्कि समाज की सभी बेटियों बहनों और महिलाओं को एक भाई होने के नाते सुरक्षा उनके सम्मान की रक्षा की गारंटी देनी होगी। जिस तरह से दुराचारी बलात्कार के नाम पर उनके जिस्म को नोचते हैं घिन आती है इसी मानसिकता वाले लोगों से और यदि ऐसे समाज से जहां हम अपनी बेटियों को ऐसे नीच मानसिकता वाले दुराचारियों से सुरक्षा नहीं दे सकते तो हमें सभ्य समाज में रहने और अपने आप को सभ्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं।

भाईयों को चाहिए कि रक्षा बंधन के मौके पर अपनी बहनों को चॉकलेट मिठाई नए उपहारों की जगह आत्म रक्षा की ट्रेनिंग दिलाए आत्म रक्षा के उपकरण उपहार स्वरूप देकर उनको आत्म रक्षा करने में सक्षम बनाने की दिशा में कार्य करें। हमें अपनी बेटियो को अपने सम्मान की रक्षा करने में सक्षम बनाने की आवश्यकता है उसको सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दिलाने की आवश्यकता है दरअसल सही मायने में केवल रक्षासूत्र बांधने से रक्षा नहीं होती रक्षा बंधन का तात्पर्य हमको समझना चाहिए यहां रक्षा बंधन का तात्पर्य एक ऐसे समाज और वातावरण से है जहां हम अपने समाज की प्रत्येक बेटी और महिला को एक सुरक्षित समाज, एक सुरक्षित वातावरण दे पाएं जहां वे स्वछंदता के साथ अपना जीवन जी पाएं जहां कोई दुराचारी उसकी ओर कुदृष्टि डालने की हिम्मत ना कर पाए क्योंकि उसकी हिफाजत के लिए उसके सभ्य समाज के सभी भाई उसके चारों ओर सुरक्षा के लिए तैयार खड़े हैं जब तक भारत की प्रत्येक बेटी के हृदय और मन में यह भावना नहीं आएगी तब तक रक्षा बंधन का सही अर्थ और रक्षा बंधन मनाना ही बेमानी है। और यह सब संभव होगा छोटे छोटे परिवर्तनों के द्वारा सर्वप्रथम घर से इसकी शुरुआत करनी होगी माता पिता को अपने बेटों को संस्कार के साथ साथ बेटियों महिलाओं का आदर और सम्मान करना सिखाना होगा साथ ही उनकी इज्जत की सुरक्षा के लिए हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार खड़े होना सिखाना होगा। सरकार , के साथ साथ सभी समाज सामाजिक संगठनों , संस्थाओं , एनजीओ और मीडिया को एकजुट होकर समय समय पर वर्कशॉप के द्वारा बेटियों की सुरक्षा को लेकर जागरूकता फैलाने की ओर समाज को जागरूक करने की आवश्यकता है। दुराचारियों का समाजिक बहिष्कार, वकीलों द्वारा उनके केस लड़ने से इंकार आदि छोटी छोटी शुरुआत के द्वारा ही हम सही मायनों में अपनी बेटियों को रक्षाबंधन का उपहार दे पाएंगे।

आलेख :©® डॉ.राकेश वशिष्ठ, वरिष्ठ पत्रकार एवम् संपादकीय लेखक

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