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भारत-पाक रिश्ते: तनाव की राख में क्या कभी उम्मीद के फूल खिलेंगे?


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भारत-पाक रिश्ते: तनाव की राख में क्या कभी उम्मीद के फूल खिलेंगे?

कश्मीर की वादियों से लेकर सिंधु की धार तक, शांति अब भी इंतजार में है

भारत-पाक रिश्ते : भारत और पाकिस्तान, दो पड़ोसी देश जिनके रिश्ते सात दशक से ज्यादा समय से संघर्ष और अविश्वास की धारा में बहते आ रहे हैं। विभाजन की त्रासदी से शुरू हुआ यह तनाव आज भी नियंत्रण रेखा पर बारूद की गंध और वैश्विक मंचों पर आरोप-प्रत्यारोप में स्पष्ट झलकता है। पुलवामा आतंकी हमले और भारत की बालाकोट में की गई एयरस्ट्राइक के बाद रिश्तों में आई खटास ने दोनों देशों के संवाद के पुल लगभग गिरा दिए हैं। कूटनीतिक वार्ता बंद है, व्यापारिक रिश्ते शून्य के करीब पहुंच चुके हैं और दोनों देशों के बीच तनाव की दीवार और ऊंची हो गई है।

कश्मीर का मुद्दा अब भी दोनों देशों के बीच सबसे बड़ा विवाद बना हुआ है। अगस्त 2019 में भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के फैसले ने पाकिस्तान को और आक्रामक बना दिया। इस कदम के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ बातचीत की किसी भी संभावना को कश्मीर मुद्दे के हल से जोड़ दिया है। दूसरी ओर, भारत स्पष्ट कर चुका है कि वह किसी भी बातचीत के लिए आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई को पहली शर्त मानता है। यही कारण है कि दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है और वार्ता का रास्ता अब भी धुंधला नजर आता है।हालांकि 2021 में संघर्षविराम के नए समझौते के बाद नियंत्रण रेखा पर कुछ समय के लिए शांति देखी गई थी। लेकिन पिछले महीनों में फिर से गोलीबारी और घुसपैठ की घटनाएं सामने आई हैं, जिससे सीमा पर रह रहे नागरिकों में डर और अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। सीमा पर यह अस्थिरता सिर्फ दोनों सेनाओं के लिए नहीं, बल्कि आम आदमी के सपनों के लिए भी सबसे बड़ा खतरा बनी हुई है।फिर भी, खेल और संस्कृति के क्षेत्र में रिश्तों में थोड़ी गर्माहट महसूस हुई है। हाल में पाकिस्तान क्रिकेट टीम का भारत में टूर्नामेंट खेलना और भारतीय खिलाड़ियों का पाकिस्तान में स्वागत यह संकेत देता है कि दोनों देशों की जनता के दिलों में शांति की चाह अब भी गहरी है। सिंधु जल संधि जैसा पुराना समझौता भी यह दिखाता है कि जब राजनीतिक इच्छाशक्ति होती है, तो सहयोग संभव है। आज जब पूरी दुनिया अस्थिरता से जूझ रही है, भारत और पाकिस्तान के लिए भी शांति केवल विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन चुकी है। वैश्विक ताकतें दक्षिण एशिया में स्थिरता चाहती हैं और दोनों देशों की आर्थिक चुनौतियां अब युद्ध जैसे विनाशकारी विकल्प से दूर रहने को मजबूर कर रही हैं।

हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में हुई आतंकी हिंसा ने भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव की चिंगारी को एक बार फिर हवा दे दी है। इस हमले में सुरक्षा बलों और निर्दोष नागरिकों की जानें गईं, जिससे पूरे देश में आक्रोश फैल गया। भारत ने इस हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों का हाथ बताया है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इसकी कड़ी निंदा की है। वहीं पाकिस्तान ने हमेशा की तरह इन आरोपों को खारिज किया, जिससे दोनों देशों के बीच संवाद की संभावनाएं और धुंधली हो गईं। पहलगाम की यह घटना उस समय आई है जब नियंत्रण रेखा पर संघर्षविराम समझौते को लेकर थोड़ी उम्मीद जगी थी। लेकिन इस हिंसा ने न सिर्फ सीमा पर, बल्कि कूटनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी तनाव को और गहरा कर दिया है। आम लोग, जो पहले से ही शांति की आस में थे, अब फिर से असुरक्षा और डर के साये में जीने को मजबूर हैं। यह घटना यह भी याद दिलाती है कि जब तक आतंकवाद पर निर्णायक कार्रवाई नहीं होती, तब तक दोनों देशों के बीच स्थायी शांति की कल्पना करना मुश्किल है।

तो सवाल वही है – क्या इस राख से कभी शांति का फूल खिलेगा? इसका उत्तर दोनों देशों की नीयत, साहस और समय के हाथों में है। लेकिन एक बात स्पष्ट है, शांति का सूरज तभी उगेगा जब दिलों में बंदूकें नहीं, भरोसे की लौ जलेगी।…….. ज़रा इत्मीनान से सोचिए।

✒️ कुंअर पंकज सिंह

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