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ऐतिहासिक शहर फतेहपुर का स्थापना दिवस:नवाब फतेहखान ने 573 साल पहले रखी थी नींव, राजस्थान के सबसे पुराने शहरों में शामिल


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ऐतिहासिक शहर फतेहपुर का स्थापना दिवस:नवाब फतेहखान ने 573 साल पहले रखी थी नींव, राजस्थान के सबसे पुराने शहरों में शामिल

ऐतिहासिक शहर फतेहपुर का स्थापना दिवस:नवाब फतेहखान ने 573 साल पहले रखी थी नींव, राजस्थान के सबसे पुराने शहरों में शामिल

फतेहपुर : राजस्थान के प्राचीन शहर फतेहपुर ने अपनी स्थापना के 573 वर्ष पूरे कर लिए हैं। चैत्र शुक्ला पंचमी, संवत 1508 को हिसार से आए कायमखानी शासक नवाब फतेहखान ने इस शहर की स्थापना की थी।

नवाब फतेहखान ने महात्मा गंगादास की तपोस्थली पर माघ सुदी पंचमी, संवत 1505 में किले का निर्माण शुरू करवाया, जो दो वर्ष दो माह में पूरा हुआ। फतेहपुर पर मुस्लिम शासकों का शासन सन 1451 से 1730 तक रहा। इस दौरान कुल 12 मुस्लिम शासकों ने यहां शासन किया।

चैत्र शुक्ला एकम, संवत 1788 को सीकर के राव राजा शिव सिंह ने मुस्लिम नवाब शासकों को हराकर फतेहपुर पर कब्जा कर लिया। इसके बाद, देश की आज़ादी तक 10 शेखावत शासकों ने 216 वर्षों तक यहां राज किया। राव राजा कल्याणसिंह फतेहपुर के अंतिम शासक थे। इसी शेखावत वंश के नाम से यह पूरा क्षेत्र ‘शेखावाटी’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

फतेहपुर राजस्थान के सात सबसे पुराने कस्बों में शामिल है। यह जयपुर और सीकर से भी प्राचीन है। नवाब फतेहखान द्वारा बनवाया गया किला आज पूरी तरह नष्ट हो चुका है और अब यह कई लोगों की निजी संपत्ति में तब्दील हो गया है।

फतेहपुर के एक प्रमुख शासक नवाब जलाल खान गोभक्त थे। उन्होंने अपने शासनकाल में पशुओं के लिए 12 बीघा जमीन चरागाह के रूप में छोड़ी। यह क्षेत्र आज ‘बीड’ के नाम से जाना जाता है और राजस्थान का सबसे बड़ा चरागाह क्षेत्र है।

8. लाल पत्थर की हवेली

बावड़ी गेट पर स्थित यह हवेली अपने लाल पत्थरों की नक्काशीदार जालियों के कारण प्रसिद्ध थी। देशी-विदेशी पर्यटकों को यह विशेष रूप से आकर्षित करती थी, लेकिन इसके स्वामियों की लापरवाही के कारण यह पूरी तरह नष्ट हो चुकी है।

विरासत पर संकट

नवाब और शेखावत शासकों ने यहाँ सुंदर बावड़ियों, चरागाहों और हवेलियों का निर्माण करवाया था। पहले यह कस्बा ‘ओपन आर्ट गैलरी’ के रूप में जाना जाता था, लेकिन विकास और आधुनिकता की दौड़ में इसकी विरासत नष्ट हो रही है। हवेलियों के मालिकों की उदासीनता, प्रशासनिक लापरवाही और भूमाफियाओं की लालच के कारण फतेहपुर की ऐतिहासिक धरोहरें मिटती जा रही हैं।

ऐतिहासिक धरोहरें

1. नवाब अलिफ खां का ऐतिहासिक मकबरा

नवाब दौलत खां ने अपने पिता नवाब अलिफ खां की स्मृति में संवत 1683 में यह मकबरा बनवाया था, जो अपनी अद्भुत स्थापत्यकला के लिए प्रसिद्ध है। सरकारी लापरवाही एवं संरक्षण के अभाव में यह क्षतिग्रस्त होता जा रहा है।

2. नवाबी बावड़ी

संवत 1671 में नवाब अलिफ खां के निर्देश पर उनके पुत्र नवाब दौलत खां द्वितीय ने नागौर के कारीगर शेख महमूद की देखरेख में इस बावड़ी का निर्माण करवाया था। तत्कालीन समय में यह बावड़ी विश्व के 17 आश्चर्यों में शामिल थी। इतिहासकार द्वारका प्रसाद चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक आश्चर्य सप्तदशी में इसे विश्व के 17 आश्चर्यों में से एक माना है। आज यह बावड़ी कचरा घर बन चुकी है और आसपास के व्यावसायिक परिसरों और अन्य लोगों द्वारा इस पर अतिक्रमण कर लिया गया है।

3. जैन मंदिर

कस्बे का प्राचीन जैन मंदिर अपने स्वर्ण भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। नवाब फतेहखान जब फतेहपुर आए, तो अपने साथ जैन व्यापारी तुहीरमल जैन को भी लाए थे। इस मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की 1100 वर्ष पुरानी अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित है।

4. जंतर-मंतर

फतेहपुर कस्बे में चमड़िया कॉलोनी में जंतर-मंतर भी स्थित है। उत्तर भारत में कुल पाँच जंतर-मंतर हैं, जिनमें से एक यहाँ स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार, यहाँ के जंतर-मंतर की तुलना जयपुर के जंतर-मंतर से की जाती है। उस समय के वेद विशेषज्ञ यहां खगोलीय गणना कर पंचांग तैयार करते थे। यहाँ सूर्य घड़ी और नवग्रह घड़ी भी थी, लेकिन नवग्रह घड़ी चोरी हो चुकी है। चमड़िया परिवार की उपेक्षा के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर अब अंतिम सांसें गिन रही है।

5. मूंछों वाले राम-लक्ष्मण

शेखावत राजाओं ने फतेहपुर जीतने के बाद गढ़ परिसर में एक मंदिर बनवाया, जिसमें मूंछों वाले राम-लक्ष्मण की प्रतिमा स्थापित है। इतिहासकार गणेश बेरवाल के अनुसार, देश में केवल दो स्थानों पर मूंछों वाले राम-लक्ष्मण की प्रतिमाएँ हैं—एक फतेहपुर में और दूसरी ग्वालियर में।

6. सरस्वती पुस्तकालय

संवत 1967 में स्थापित सरस्वती पुस्तकालय में सैकड़ों दुर्लभ ग्रंथ और 13,000 से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। इनमें से कई ग्रंथ पाण्डुलिपियों के रूप में पत्तों पर लिखे गए हैं। स्कूलों में गाए जाने वाले गीत हे प्रभो आनंददाता की रचना कवि रामनरेश त्रिपाठी ने इसी पुस्तकालय में की थी।

7. रामगोपाल गनेड़ीवाल की छतरी

संवत 1943 में सेठ रामगोपाल गनेड़ीवाल ने अपने पिता सेठ हीरालाल की स्मृति में पूर्ण संगमरमर से इस छतरी का निर्माण करवाया था। इसे स्थानीय स्तर पर ‘सफेद ताजमहल’ के नाम से जाना जाता है। उस समय इसकी लागत दो लाख रुपए आई थी।

हेरिटेज सिटी के लिए विशेष बजट नहीं

राज्य सरकार ने फतेहपुर को ‘हेरिटेज सिटी’ घोषित किया, लेकिन इसके लिए कोई विशेष बजट नहीं दिया गया। जो बजट मिला, वह कहां खर्च हुआ, इसका कोई स्पष्ट विवरण उपलब्ध नहीं है। जैसे-जैसे विरासत नष्ट होती गई, पर्यटकों की संख्या में भी गिरावट आई। राज्य सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार, यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या आधी रह गई है।

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