[pj-news-ticker post_cat="breaking-news"]

नवाचार देश-दुनिया में बच्चों के मोबाइल इस्तेमाल पर पाबंदी


निष्पक्ष निर्भीक निरंतर
  • Download App from
  • google-playstore
  • apple-playstore
  • jm-qr-code
X
आर्टिकल

नवाचार देश-दुनिया में बच्चों के मोबाइल इस्तेमाल पर पाबंदी

बच्चों की सेहत-भविष्य बचाना है तो करना होगा ‘मोबाइल व्रत’

सीकर  बच्चों का पढ़ाई से मन भटक रहा है। नींद के बावजूद वे उनींदे हैं। बच्चे तनाव भरी चुप्पी में जी रहे हैं। इन सब का एकमात्र कारण है मोबाइल। अगर आप बच्चों को मोबाइल से बचाना चाहते हैं तो शुरुआत खुद ही करें। सप्ताह में एक बार या हर दिन कुछ घंटे का मोबाइल व्रत आपके बच्चे को भी मोबाइल से दूर रहने को प्रेरित करेगा। जी हां… मनोविज्ञानी तो ऐसा ही सख्त सलाह देते हैं। भारत में इस खतरे को भांपते हुए लोगों ने स्क्रीन टाइम कम करने के लिए ’मोबाइल व्रत’ का नवाचार शुरू कर दिया है।

कोटा, उदयपुर के कुछ गांवों में शाम 7 बजे बच्चों से ले रहे मोबाइल

हाल ही मेे मुंबई में बोहरा समाज के घर्मगुरुओं ने समाज के लोगों को संदेश देते हुए कहा कि 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों को मोबाइल से दूर रखें। इसका असर राजस्थान के बोहरा समाज में भी देखने को मिल रहा है। कोटा, डूंगरपुर, उदयपुर के कुछ गांवों में शाम 7 बजे के बाद बच्चों से मोबाइल ले लिया जाता है। अभिभावक भी शाम को दो घंटे मोबाइल से दूर रहने की कोशिश कर रहे हैं। महाराष्ट्र के अहिल्यानगर जिले के सौंदाला गांव में भी किया गया ऐसा प्रयोग चर्चा का विषय है। यहां रोजाना शाम सात से नौ बजे तक बच्चे ’मोबाइल व्रत’ रखते हैं। इसके अलावा गांव में गाली देने वाले पर जुर्माने का भी प्रावधान है।

स्क्रीन टाइम से बढ़ रहा डिप्रेशन

ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट कहती है कि अगर मोबाइल फोन बच्चों के आसपास रखते हैं तो इससे उनका ध्यान भटकता है। स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों में नींद में कमी और डिप्रेशन की शिकायत बढ़ रही है। मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग करने से डिप्रेशन का खतरा 5.1 फीसदी अधिक रहता है।

शिक्षानगरी में भी ‘मोबाइल व्रत’

कामयाबी के सपने, दुनिया जीत लेने का जज्बा और आगे बढऩे की उम्मीदें लेकर देशभर से हजारों विद्यार्थी हर साल कोटा व सीकर में दखिला लेते हैं। यहां के शिक्षण संस्थाओं ने बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के लिए कई नवाचार शुरू किए हैं। बच्चों को सप्ताह में एक दिन लैंड लाइन या की-पैड फोन से अभिभावकों से बात कराते हैं। इससे उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव दिख रहा है।

विदेशों में भी मोबाइल पर सख्ती

ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, ब्रिटेन, आयरलैण्ड, कनाडा, नाइजीरिया, ब्राजील, कंबोडिया, मिस्र, दक्षिण कोरिया व न्यूजीलैंड, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों में बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर सख्ती है। स्वीडन में दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मोबाइल इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक है। 2 से 5 साल, 6 से 12 साल तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम तय है। ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर रोक है। फ्लोरिडा में 14 से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर सकते।

मनोरोगी बना रहे

मोबाइल का अधिक उपयोग किशोर, युवा और वयस्क को मानसिक रोगी बना रहा है। सोशल मीडिया का ज्यादा उपयोग रिश्तों और सामाजिक संपर्क को कम कर रहा है। ज्यादा स्क्रीन टाइम की वजह से नींद की कमी, अवसाद, डिप्रेशन भूलने की समस्या बढ़ रही है। डॉ. शिवप्रसाद खेदड़, विभागाध्यक्ष, मनोरोग विभाग, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली

बदलते दौर में निश्चित तौर पर हर व्यक्ति की दिनचर्या का मोबाइल अभिन्न अंग बन गया है। सोशल मीडिया की वजह से युवाओं का स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है। इससे कई युवाओं के कॅरियर प्रभावित होने के मामले भी सामने आ रहे हैं। – डॉ. पीयूष सुण्डा, कॅरियर काउंसलर, सीकर

Related Articles