कौन थीं अमृता देवी? जिनके नाम पर होगा राजस्थान जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड, सीएम गहलोत ने लगाई मुहर
कौन थीं अमृता देवी? जिनके नाम पर होगा राजस्थान जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड, सीएम गहलोत ने लगाई मुहर

अमृता देवी बिश्नोई : हिमालय क्षेत्र में वन संरक्षण को लेकर हुए चिपको आंदोलन से तो काफी लोग वाकिफ हैं। लेकिन, इससे सैकड़ों वर्ष पहले राजस्थान में भी चिपको आंदलोन हो चुका था, जिसका इतिहास बहुत ही मार्मिक है। इसमें पर्यावरण बचाने के प्रति जागरूक अमृता देवी बिश्नोई समेत 363 लोगों ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी, लेकिन सत्ता को झुका दिया था।
कौन थीं अमृता देवी बिश्नोई ?
1730 की बात है। राजस्थान में जोधपुर के महाराजा अभय सिंह एक नया पैलेस बनाना चाहते थे। लेकिन, अमृता देवी बिश्नोई ने अपने समाज के लोगों के साथ खेजड़ी के पेड़ों के संरक्षण के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। बिश्नोई समाज के लिए खेजड़ी का पेड़ बहुत ही पवित्र रहा है। महाराजा अभय सिंह ने पेड़ कटवाने के लिए अपने सिपाहियों को जालनाड़ी गांव भेजा, जिसे अब खेजड़ली गांव के नाम से जाना जाता है।
खेजड़ी के पेड़ के संरक्षण के लिए दी थी जान
बिश्नोई समाज की अगुवाई करते हुए अमृता देवी ने महाराजा के लोगों को पेड़ काटने से रोक दिया। जैसे ही अभय सिंह के आदमियों ने पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ियां उठाई, अमृता देवी ने एक पेड़ को पकड़ लिया। लेकिन, महाराजा के आदमी नहीं रुके और उन्होंने कुल्हाड़ियां चला दीं, जिससे अमृता देवी की जान चली गई। उनके पति का नाम रामो जी खोड था।
तीन बेटियों ने भी दे दी जान
कहा जाता है कि अमृता देवी के बाद उनकी तीन बेटियों आसू, रत्नी और भागु ने भी खेजड़ी पेड़ बचाने के लिए अपनी मां की तरह तरह ही उससे लिपट गई और उन सबका भी अमृता देवी वाला ही अंजाम हुआ।
49 गांवों के लोग शामिल थे
जोधपुर से करीब 26 किलोमीटर दूर खेजड़ली में उस दिन इस तरह से एक-एक करके 363 लोगों ने महाराजा के सैनिकों के हाथों अपने प्राण त्याग दिए, लेकिन जीते जी पेड़ नहीं काटने दिया। अमृता देवी की अगुवाई में हुए खेजड़ी पेड़ बचाओ संघर्ष में 49 गांवों के लोग शामिल थे।
पेड़ कटाई और शिकार पर प्रतिबंध लगाना पड़ा
कहते हैं कि जब इस नरसंहार का समाचार महाराजा अभय सिंह तक पहुंचा तो वे पश्चाताप में डूब गए। उन्होंने महल बनाने काम काम रोक दिया और बिश्नोई समाज से क्षमा मांगी। उन्होंने जलनाड़ी गांव से लड़की लेने और बिश्नोई गांव के आसपास शिकार पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
खेजड़ी राजवृक्ष घोषित
आज भी हर साल बिश्नोई समाज के लोग उसी स्थान पर सालाना खेजड़ली उत्सव का आयोजन करते हैं और अमृता देवी समेत शहादत देने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए जुटते हैं। 1983 में राजस्थान सरकार ने खेजड़ी वृक्ष को राजवृक्ष घोषित कर दिया था।