श्रीमान, जिला पुलिस अधीक्षक महोदय
विषय : वीआरएस हेतू
आदरणीय, मेरी उम्र 59 साल है, एक साल बाद मेरा पुलिस विभाग से रिटायरमेंट होना है। लेकिन में उससे पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति चाहता हूं। अगर वीआरएस नहीं दे सकते तो मुझे नॉन फील्ड कर दिया जाए। पुलिस लाइन या ट्रैफिक में ड्यूटी लगा दी जाए। क्योंकि रिटायरमेंट की उम्र में कानून की नई किताबें पढ़कर, उनके हिसाब से मामलों की जांच करना और डिजिटल एविडेंस यानी वीडियो सबूत जुटाना हमारे लिए मुश्किल है। इसी कारण से हम खुद को मामलों के इन्वेस्टिगेशन से दूर कर रहे हैं।
राजस्थान पुलिस के कई जांच अधिकारी इस तरह से लेटर लिखकर विभाग से वीआरएस मांग रहे हैं। पुलिस अधिकारियों के जरिए डीजीपी तक भी यह बात पहुंची है। पढ़िए- पूरी रिपोर्ट…
पुलिस अफसरों तक लेकर पहुंच रहे परेशानी
राजस्थान के थानों में तैनात सैकड़ों ASI और SI रिटायरमेंट के नजदीक हैं। जिन्होंने अपने जिला पुलिस अधीक्षकों को लेटर लिखते हुए वीआरएस मांगा है। लेटर में उन्होंने बताया है कि 25-30 साल की सर्विस में पुराने एक्ट उन्हें मुंह जुबानी याद थे। लेकिन नए एक्ट को याद करना और अपनी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट में उन धाराओं का इस्तेमाल करने में कई परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है।
वीआरएस मांगने वाले पुलिसकर्मियों ने 2 बड़ी वजहें बताई हैं…
1. सीखने की गई उम्र
भारतीय न्याय संहिता की धाराएं पढ़कर उन्हें समझना और उसके अनुसार इन्वेस्टिगेशन करने की अब हमारी उम्र नहीं रही। नई कानूनी किताब पढ़कर उसको अपनी जीवन शैली में लाना मुश्किल है। इससे इन्वेस्टिगेशन में लंबा टाइम लग रहा है, क्योंकि एक-एक धारा नए सिरे से पढ़कर, कानूनी जानकारों से पूछकर इस्तेमाल करना पड़ रहा है। इसी कारण से हम खुद को मामलों के इन्वेस्टिगेशन से दूर कर रहे हैं।
थाने में कोई परिवादी शिकायत देकर जाता है तो पहले पुरानी धाराओं के हिसाब से उसे लिखते हैं फिर कानून की किताब को खोलकर उनकी जगह नई धाराएं लगाने में समय लगता है। इससे भी ज्यादा परेशानी किसी हादसे की सूचना पर होती है। वहां मौके पर ही रिपोर्ट तैयार करनी होती है और उस दौरान नई धारा की कानूनी किताब साथ रखकर ले जाना हमारे लिए मुश्किल है।
2. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा-105 पड़ रही भारी
राजस्थान पुलिस के एक आरपीएस अफसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वीआरएस मांगने वाले पुलिसकर्मी BNSS के एक्ट-105 के कारण खुद को इन्वेस्टिगेशन अफसर बनने से दूर रखना चाहते हैं। धारा-105 के तहत पुलिस को किसी भी छापेमारी, जब्ती, तलाशी या सर्च ऑपरेशन के दौरान वीडियोग्राफी करनी होगी। यही सबसे बड़ी समस्या है।
क्या हुआ है बदलाव
पहले क्या? : पुलिस अधिकारियों को पहले डिजिटल एविडेंस पेश करने की कोई बाध्यता नहीं थी। कोर्ट भी एविडेंस एक्ट के तहत इन सबूतों को मान्यता नहीं देता था। जांच अधिकारी को रिपोर्ट में केवल घटना का ब्यौरा लिखकर देना पड़ता था।
अब क्या? : नए एक्ट (बीएनएसएस-105) के तहत डिजीटल एविडेंस भी इन्वेस्टिगेशन का पार्ट बन गया है। पुलिस को जांच रिपोर्ट में तो घटना का ब्यौरा लिखना पड़ेगा। साथ ही उस मुकदमे से जुड़ी जगह, स्थिति, कार्रवाई, जब्ती का वीडियो बनाना पड़ेगा। उस डिजिटल एविडेंस (रिकॉर्डेड वीडियो, ऑडियो या फोटो) को ई-साक्ष्य ऐप पर डाउनलोड करना पड़ेगा।
इस एक्ट का फायदा क्या? : राजस्थान हाईकोर्ट के वकील कुनाल शर्मा ने बताया कि डिजिटल सबूत होंगे तो किसी के आरोपों से पुलिस बच सकेगी। जांच करने वाले ऑफिसर के छुट्टी पर का भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कोर्ट को लिखित ब्यौरे के साथ डिजिटल एविडेंस में पूरे घटनाक्रम की व्याख्या मिल जाएगी।
इस एक्ट से पुलिसकर्मियों के सामने क्या परेशानी आ रही है, दो उदाहरण से समझते हैं
उदाहरण-1 : मान लीजिए पुलिस को सूचना मिली कि जयपुर के प्रतापनगर इलाके में जुआ खेला जा रहा है। इस दौरान पुलिस रेड करने जा रही है तो उसे पूरी कार्रवाई की वीडियोग्राफी करनी होगी।
अब इसमें दिक्कत यह है कि पुलिस को देखकर अक्सर जुआरी भागते हैं। उस दौरान उनकी वीडियोग्राफी करें या पीछा करते हुए पकड़ें? इस तरह कार्रवाई कर मुकदमा बनाने में बड़ी समस्या है।
उदाहरण-2 : मान लीजिए एक ट्रक में ड्रग्स ले जाया जा रहा था। सूचना मिलने पर पुलिस ने ट्रक पकड़ा और उसकी वीडियोग्राफी शुरू की। NDPS की पूरी कारवाई करने में इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को कम से कम 3-4 घंटे लगते हैं।
इतनी लंबी वीडियोग्राफी करना संभव नहीं है। अगर पूरी कार्रवाई की रिकॉर्डिंग नहीं की तो गलती से भी कोई पार्ट मिस हो जाने पर कोर्ट में सवाल उठ सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में भी जांच अधिकारी के लिए मुश्किल हो सकती है।
डीजीपी बोले- पुलिसकर्मियों से संपर्क में अधिकारी
राजस्थान पुलिस के डीजीपी यूआर साहू ने बताया कि 1 जुलाई से भारतीय न्याय संहिता लागू हो चुकी है। नए एक्ट को लेकर पुलिस अफसरों को परेशानी की बातें सामने आई हैं। कुछ पुलिसकर्मी जो रिटायरमेंट के नजदीक हैं, उन्होंने अपने जिले के पुलिस अफसरों से वीआरएस की मांग की है, ऐसी बात मेरी जानकारी में आई है।
उन पुलिसकर्मियों का कहना है कि उन्हें लाइन, ट्रैफिक या नॉन फील्ड कर दिया जाए…इन्वेस्टिगेशन करने का काम नए कानून में बड़ा पेचीदा है। ऐसे पुलिसकर्मियों के साथ पुलिस ऑफिसर बातचीत कर परेशानी को समझने का प्रयास कर रहे हैं।
वीडियो एविडेंस पुलिस के लिए कारगर हथियार- रिटायर्ड आरपीएस
रिटायर्ड आरपीएस अधिकारी अनिल गोठवाल का कहना है कि वीडियो एविडेंस पुलिस के लिए एक कारगर हथियार की तरह है। वीडियो एविडेंस बहुत अच्छा सबूत माना जाता है जिससे साक्षी चेंज नहीं हो सकता। इससे पुलिस कोर्ट में भी मुकदमा पुरजोर तरीके से रख सकती है। कोर्ट भी सवाल जवाब कर सकता है कि देखा आपने उसे समय यह एविडेंस दिया था और आज आप यह एविडेंस दे रहे हैं। जज के सामने सत्य का पता रहेगा।
गोठवाल ने कहा कि इससे पुलिसकर्मियों को घबराना नहीं चाहिए। हां, वीडियो एविडेंस जुटाने के लिए सरकार को सभी पुलिस स्टेशन में अधिकारियों को अच्छे उपकरण उपलब्ध कराने चाहिए। क्योंकि उन वीडियो को बतौर सबूत तुरंत किसी डेटाबेस पर अपलोड करना जरूरी है।
क्या हुए हैं बदलाव?
केन्द्र सरकार ने 164 साल बाद भारतीय दंड संहिता (IPC) में बदलाव किया। एक जुलाई से IPC बदल कर अब भारतीय न्याय संहिता (BNS), दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो गया है।
आईपीसी (IPC) में पहले 511 धाराएं थी, जबकि BNS में 358 धाराएं हैं। कुल 175 धाराएं बदली गई हैं। 8 धाराएं नई जोड़ी गई हैं। 22 धाराओं को खत्म कर दिया गया है। CRPC में 533 धाराएं थीं, इनमें 160 धाराएं बदली गई हैं। 9 नई धारा जोड़कर 9 को खत्म कर दिया गया है। 16 दशक बाद इतने बड़े बदलाव से पुलिस अफसरों से लेकर इन्वेस्टिगेशन पुलिसकर्मी तक परेशान हैं।